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पुतला जलाने से रावण नहीं जलता

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार शक्ति ही सृष्टि का मूल तत्व है- ‘शक्ति सृजति ब्रह्मांडम’. अदिति शक्ति का प्राचीन वैदिक नाम है और अदितिपुत्र होने के कारण ही सूर्य को ‘आदित्य’ कहा जाता है. सृष्टि के लिए अमृत और मृत्यु दोनों ही आवश्यक हैं. दोनों ही शक्ति के रूप हैं. एक में शक्ति का आविर्भाव होता है, […]

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

शक्ति ही सृष्टि का मूल तत्व है- ‘शक्ति सृजति ब्रह्मांडम’. अदिति शक्ति का प्राचीन वैदिक नाम है और अदितिपुत्र होने के कारण ही सूर्य को ‘आदित्य’ कहा जाता है. सृष्टि के लिए अमृत और मृत्यु दोनों ही आवश्यक हैं. दोनों ही शक्ति के रूप हैं. एक में शक्ति का आविर्भाव होता है, तो दूसरे में तिरोभाव होता है.

वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपने निबंध ‘शक्तिरूपा देवी को नमस्कार!’ में इन दोनों बिंदुओं पर विचार किया है. प्रकाश-अप्रकाश, स्थिति-संसार, उदय-अस्त दोनों के सहयोग से बननेवाले चक्र को उन्होंने ‘भवचक्र’ और ‘कालचक्र’ कहा है. उत्तरायण और दक्षिणायण में, चैत्र शुक्ल और आश्विन शुक्ल के दो नवरात्र इसी द्वंद्व के प्रतिनिधि वर्ष हैं. चैत्र नवरात्र में राम का जन्म हुआ था और आश्विन नवरात्र में राम ने रावण पर विजय पायी. ये दोनों पर्व शक्ति-पूजा के पर्व हैं. शक्ति की यह कल्पना केवल भारतीय धर्म और दर्शन में है.

राम और रावण मात्र दो पौराणिक पात्र नहीं हैं. बल्कि, वे प्रतीक हैं- हमारे भीतर और समाज के मंगल-अमंगल के, न्याय-अन्याय के, दैवी-दानवी शक्तियों के, सद-असद के, भलाई-बुराई के, कर्म-भोग के, त्याग-स्वार्थ के, त्याग-संग्रह के, संयम-असंयम के, धर्म-अधर्म के, निर्माण-ध्वंस के. रावण अधर्मरत है, अधर्मी है. राम अधर्म से डरते हैं. लेकिन, आज इसके एकदम विपरीत माहौल बन गया है, बनाया जा रहा है. चीजें उलटा दी गयी हैं.

अब अधर्मी लोग धर्म की बात कर रहे हैं, राष्ट्रद्रोही लोग राष्ट्रप्रेम पढ़ाने में लगे हुए हैं, रजोगुण में सने व्यक्ति उपदेश दे रहे हैं. वाल्मीकि ने राजा की गद्दी को ‘राष्ट्र के कल्याण हेतु’ कहा है. प्राचीन भारत का गुणगान करनेवालों को, संस्कृत वांङ्मय का नकली ढिंढोरा पीटनेवालों को वाल्मीकि का वह गीत पढ़ना चाहिए, जिसमें वे ‘अराजक राष्ट्र’ का वर्णन करते हैं. वाल्मीकि लिखते हैं- ‘अराजक राष्ट्र विनाश को प्राप्त हो जाता है.’

भारत अब एक ‘अराजक राष्ट्र’ बन रहा है, या यह कह लें कि इसे बनाया जा रहा है. पिछले दो-ढाई वर्ष से अराजक शक्तियां चारों ओर फैल रही हैं.

वाल्मीकि ने लिखा था- ‘अराजक देश में मनुष्य सभा नहीं कर पाते, प्रसन्न होकर उद्यान और घर नहीं बनवा सकते.’ फिल्म अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी को उनके अपने ही गांव (मुजफ्फनगर का बुढ़ाना गांव) में रामलीला करने से शिवसेना के उत्पातियों ने मना किया. अब क्या ऐसी शक्तियां सुल्तानपुर के उस मुसलिम परिवार को, जो सौ वर्ष से अधिक समय से रामलीला करवा रहा है, नहीं रोकेंगी? अयोध्या में मुसलिम परिवार वर्षों से रामलीला कर रहा है. बीते 2 से 4 अक्तूबर तक मध्य प्रदेश राज्य के सबसे बड़े शहर इंदौर में आयोजित इप्टा के 14वें राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन सत्र की कार्यवाही रोकनेवाले राम के वंशज थे या रावण के?

इस खौफनाक, कुटिल-जटिल, आततायी समय में रावण को कौन जला रहा है? दैवी और आसुरी शक्ति का युद्ध समाप्त नहीं हुआ है. क्या रावण ही रावण को जला रहा है? रावण के वंशजों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. दुर्गापूजा अब बाजार के अधीन है. रामलीला कम, बाजारलीला अधिक नजर आ रहा है. सब कुछ तमाशा बनाया जा रहा है. बाजार ने पर्व-त्योहार को गुमराह कर दिया है, उसकी प्राण-वायु हर ली गयी है. अब केवल चमक-दमक है, चाक-चिक्य है, प्रदर्शन-दिखावा है.

करोड़ों-अरबों के पंडाल क्यों बनते हैं? दरअसल, इन पंडालों में प्रतिद्वंद्विता होती है, आस्था नहीं. समाज के बड़े लोग इसका मुआयना कर श्रेणी-निर्धारण करते हैं. यह पगलाया समय है. रोज-रोज नयी धार्मिक संस्थाएं बन रही हैं. चंदा उगाही का अपना व्यापार है. अब भी ‘राक्षस-पद तल पृथ्वी टलमल’ है. पहले से कहीं अधिक ‘उगलता गगन घन अंधकार’ है. रावण ‘लंपट’ है, ‘खल’ है. रावण-दहन करनेवालों में ‘लंपट’ और ‘खल’ नहीं हैं, इसकी शिनाख्त कौन करेगा? ‘अन्याय जिधर है, उधर शक्ति’ है.

भारतीय समाज और संस्कृति को, यहां के पर्व-त्योहारों को कितना विकृत रूप दिया जा रहा है, इस पर समाज वैज्ञानिकों की अधिक दृष्टि नहीं है. राम को राज्य नहीं चाहिए था. आज के नेताओं को तो किसी भी प्रकार से केवल सत्ता चाहिए. महत्वपूर्ण न ब्राह्मण होना है, न विद्वान होना है. आचरण, कर्म ही महत्वपूर्ण है. रावण दोनों था. उसने सोने की लंका बनायी. सीता-हरण किया.

आज जो धन बनाने और अपहरण-बलात्कार में शामिल हैं, क्या वे रावण के वंशज नहीं हैं? तकरीबन बीस-तीस वर्ष पहले दशहरा पर्व को लेकर न दुर्गापूजा का ऐसा शोर था, न करोड़ों-अरबों रुपयों की बिक्री थी और न ऐसा रावण-दहन ही था. राम के जलाने से रावण जल जाता है, पर जब रावण ही रावण को जलाने लगे, तब? पुतला जलाने से रावण नहीं जलता.

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