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इस जीत का संदेश

अनुज कुमार सिन्हा : भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी की है. माेदी लहर या माेदी की सुनामी से भी आगे बढ़ कर. तीन साै पार का लक्ष्य लिया ताे उसे पूरा भी किया. जिस रणनीति से माेदी आैर शाह मैदान में उतरे, यह उसी का नतीजा है कि कई राज्याें […]

अनुज कुमार सिन्हा : भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी की है. माेदी लहर या माेदी की सुनामी से भी आगे बढ़ कर. तीन साै पार का लक्ष्य लिया ताे उसे पूरा भी किया. जिस रणनीति से माेदी आैर शाह मैदान में उतरे, यह उसी का नतीजा है कि कई राज्याें में कांग्रेस खाता भी नहीं खाेल सकी.

यूपी में चाहे कांग्रेस हाे या सपा-गंठबंधन, सभी चित्त हाे गये. यूपी में ऐसी धारा बही जिसमें अमेठी से राहुल गांधी भी साफ हाे गये. 1977 के चुनाव के बाद गांधी परिवार का काेई सदस्य काेई चुनाव नहीं हारा था. तब इंदिरा गांधी रायबरेली से आैर संजय गांधी अमेठी से हारे थे. 42 साल बाद कांग्रेस काे वही अपमान झेलना पड़ा. राजस्थान, मध्यप्रदेश आैर छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में मिली हार काे सूद समेत वसूल लिया.
कांग्रेस या विपक्ष ने जितने तेज हमले माेदी पर किये, हर हमले का उसी तरीके से माेदी ने जवाब दिया. विपक्ष के हथियार से ही उसे चित्त किया. चाैकीदार चाेर है,कहना राहुल गांधी काे महंगा पड़ा. इसका जवाब मिला-हम भी चाैकीदार से. चाहे राष्ट्रवाद का मामला हाे, पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक का हाे या सिख दंगे पर सैम पित्राेदा द्वारा हुआ ताे हुआ कहने का मामला, भाजपा जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रही.
शाैचालय निर्माण, प्रधानमंत्री आवास याेजना, उज्जवला याेजना हाे या फिर गाेल्डन हेल्थ कार्ड का मामला हाे, घर-घर तक यह संदेश पहुुंचाने में भाजपा सफल रही कि सरकार ने उनके लिए क्या-क्या किया है. खास कर महिलाआें पर इसका बहुत ही गहरा असर पड़ा आैर यह चुनाव में दिखा भी.
इतनी बड़ी जीत में महिलाआें की बड़ी भूमिका रही है. इतनी बड़ी जीत आसान नहीं थी. यह कड़ी मेहनत, बेहतर रणनीति-कार्यान्वयन, बूथ स्तर पर प्लानिंग का परिणाम है. बिहार में जदयू, महाराष्ट्र में शिवसेना या झारखंड में आजसू के साथ तालमेल करने का निर्णय उसी रणनीति का हिस्सा था. इसका लाभ मिला.
अगर झारखंड की बात करें ताे 2014 के चुनाव में भाजपा काे 12 सीटें मिली थीं. भाजपा ने उस जीत काे बरकरार रखा है. दाेनाें चुनावाें पर गाैर करें ताे भाजपा इस बार भारी ही पड़ी है. खास कर वाेट प्रतिशत में. अगर खूंटी-लाेहरदगा काे अपवाद मानें ताे अन्य सीटाें पर भाजपा की जीत का अंतर लाखाें में है. पलामू, काेडरमा आैर हजारीबाग में आपस में प्रतियाेगिता रही कि काैन ज्यादा मताें से जीतता है. लगभग सभी पाैने पांच लाख मताें से जीते हैं.
यह बहुत बड़ी जीत है. गिरिडीह में भाजपा का टिकट काट कर आजसू काे दिया आैर जीत मिली लगभग ढाई लाख से. रांची में प्रत्याशी के चयन में असमंजस था. अंतिम क्षणाें में उतरे संजय सेठ. संगठन की ताकत आैर माेदी इफेक्ट देखिए. रांची में जीत का अंतर पाैने तीन लाख से ज्यादा. भाजपा के वरिष्ठ नेता मानते थे कि 50-60 हजार से जीत हाे सकती है. रांची में माेदी का राेड शाे कराया गया.
हर चरण के पहले प्रधानमंत्री ने आैर कई बार अमित शाह ने झारखंड का दाैरा किया. नतीजा सामने है. खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कमान संभाली थी. सभी नामांकन में गये. संताल काे भेदने का लक्ष्य बनाया. संतालपरगना ताे शिबू साेरेन आैर झारखंड मुक्ति माेरचा का गढ़ रहा है. खास कर दुमका. 2014 में भी वहां से भाजपा शिबू साेरेन काे हरा नहीं सकी थी. इस बार उस किले काे भाजपा ने भेद दिया.
भाजपा के लिए सबसे बुरी खबर रही अध्यक्ष लक्षमण गिलुवा का सिंहभूम से हारना. यह हार काेई अप्रत्याशित हार नहीं थी. जिस दिन गीता काेड़ा कांग्रेस में शामिल हुई थी, उसी दिन यह अंदाजा लगा लिया गया था वे चुनाव लड़ेंगी आैर जीतेगी भी. थाेड़ी उम्मीद थी कि शायद झामुमाे के कई नाराज विधायक अगर काम नहीं करें, ताे कुछ रास्ता बन सकता है.
ऐसा हुआ नहीं. बाबूलाल मरांडी की हार का दूरगामी असर पड़ेगा. कांग्रेस, राजद, झामुमाे आैर जेवीएम के साथ लड़ने के बावजूद भाजपा का जीत जाना भाजपा के मनाेबल काे बढ़ायेगा आैर इसका लाभ विधानसभा चुनाव में लेने का भाजपा प्रयास करेगी. तीन-तीन सांसदाें का टिकट काटना आसान काम नहीं था, जाेखिम भरा था.
अर्जुन मुंडा काे खूंटी से उतारने के अलावा पार्टी के पास काेई विकल्प नहीं था. वाेट बैंक की दृष्टि से सबसे कठिन सीट. मुकाबला कितना कठिन था, यह ताे जीत के अंतर से ही झलक रहा है. अन्नपूर्णा देवी काे राजद से भाजपा में लाना लंबी रणनीति का हिस्सा है आैर आगामी विधानसभा चुनाव में इसका लाभ मिल सकता है.
विधानसभा चुनाव के लिए वक्त कम बचा है. चार-पांच माह. इसी में दाेनाें काे तैयारी करनी है. जहां भाजपा (एनडीए) के सामने इस बढ़त काे सीटाें में बदलने की चुनाैती रहेगी, वहीं विपक्ष काे नयी रणनीति बनानी हाेगी.

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