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और बढ़े करदाताओं की संख्या

संदीप बामजई आर्थिक मामलों के जानकार sandeep.bamzai@gmail.com नवंबर, 2016 में हुई नोटबंदी के नकारात्मक पहलुओं को तो हर कोई जानता है, लेकिन इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं, जिन्हें हम सबको जानना चाहिए. नोटबंदी का सबसे जबर्दस्त सकारात्मक पहलू यह रहा कि इस दौरान डेटा माइनिंग खूब हुई. इस डेटा माइनिंग से ही यह पता […]

संदीप बामजई
आर्थिक मामलों के जानकार
sandeep.bamzai@gmail.com
नवंबर, 2016 में हुई नोटबंदी के नकारात्मक पहलुओं को तो हर कोई जानता है, लेकिन इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं, जिन्हें हम सबको जानना चाहिए. नोटबंदी का सबसे जबर्दस्त सकारात्मक पहलू यह रहा कि इस दौरान डेटा माइनिंग खूब हुई. इस डेटा माइनिंग से ही यह पता चला कि देशभर में कितने ही ऐसे लोग हैं, जो लाखों-करोड़ों तो कमाते हैं, लेकिन वे टैक्स जरा भी नहीं भरते. उस दौरान ऐसी-ऐसी सूचनाएं बाहर आयीं, जिनसे यह पता चला कि लाखों-करोड़ों कमाने के बाद भी बहुत ही कम टैक्स भरनेवाले लोग भी हैं.
इस तरह से सरकार के पास यह डेटा आ गया िक कौन टैक्स भरने लायक है, तो आयकर विभाग ने उनको नोटिस भेजना शुरू कर दिया, जिसके चलते कुछ लोग टैक्स भरने लगे. रेड पड़े, सीजर हुए और रिसर्च हुए कि कौन-कौन टैक्स चुरा रहा है, तब जाकर डेटा इकट्ठा हुआ. यही वजह है कि बीते दो-तीन सालों में टैक्स भरनेवालों की तादाद में इजाफा हुआ है. यह तो रही पहली सकारात्मक बात.
दूसरी जो सबसे बड़ी सकारात्मक बात थी, वह यह कि बचत का वित्तीयकरण (फिनांसियलाइजेशन ऑफ सेविंग) होने लगा, जिससे सोना या कॉपर में निवेश करनेवाले लोग म्यूचुअल फंड में निवेश करने लगे. अप्रत्यक्ष रूप से लोगों की एक बड़ी तादाद ने स्टॉक मार्केट में इक्विटी (शेयर) खरीदना शुरू कर दिया. इस तरह से शेयर बाजार में बैलेंस बना रहा.
बीते वित्त वर्ष में करदाताओं ने दस लाख करोड़ रुपये का टैक्स दिया. भारत जैसे देश में दस लाख करोड़ इनकम टैक्स कुछ भी नहीं है. लेकिन, अगर पिछले तीन साल का रिकॉर्ड देखा जाये, तो यही नजर आता है कि टैक्स देनेवाले बढ़ रहे हैं.
बीते वित्त वर्ष में यह भी देखा गया कि देश की कुल आबादी में सात करोड़ से ज्यादा लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न (आइटीआर) फाइल किया, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 में 6.92 करोड़ लोगों ने आइटीआर फाइल किया था. लेकिन, अगर भारत की पूरी आबादी के एतबार से देखा जाये, तो महज सात करोड़ लोगों द्वारा आइटीआर फाइल करना और इस संख्या से कुछ कम लोगों द्वारा टैक्स भरा जाना, एक तरह से बहुत ही कम है, बल्कि कुछ भी नहीं है.
ऐसे में सरकार अगर यह आंकड़ा देती है कि एक करोड़ रुपये की आय वाले लोगों की संख्या देश में एक लाख चालीस हजार है, तो यह संख्या एक मजाक-सी लगती है. दरअसल, बीते सोमवार को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी)ने एक आंकड़ा जारी किया कि देश में साल 2014-15 में एक करोड़ रुपये से ज्यादा आमदनी का खुलासा करनेवाले करदाताओं की तादाद 88,649 थी. और अब साल 2017-18 में यह तादाद बढ़कर 1,40,139 हो गयी है, जो कि कुल 60 प्रतिशत की वृद्धि कही जा सकती है. महज दिल्ली में ही एक लाख से ज्यादा ऐसे लोग पाये जा सकते हैं, जो सालाना एक करोड़ रुपये से ज्यादा कमाते हैं.
ऐसे में, पूरे देश में अगर साल 2017-18 में एक करोड़ रुपये से ज्यादा आमदनी का खुलासा करनेवाले करदाताओं की तादाद 1,40,139 है, तो मैं समझता हूं िक इस आंकड़े पर जश्न मनाने के बजाय आयकर विभाग को यह देखना चाहिए कि कई लाख लोग जो सालाना करोड़ रुपये कमाते हैं, उन्हें टैक्स भरने के लिए कैसे प्रेरित किया जाये.
गुड़गांव को एमएनसी (मल्टी नेशनल कंपनी) की राजधानी कहा जाता है, वहां हजारों लोग होंगे, जिनकी आय एक करोड़ से ज्यादा होगी.
बेंगलुरु को भारत का सिलिकॉन वैली कहा जाता है, वहां पर भी ऐसे हजारों हैं, जिनकी आय करोड़ों में है. ऐसे में पूरे देश से महज एक लाख चालीस हजार लोग ही एक करोड़ रुपये की आय का खुलासा करनेवाले मिले हैं, तो मैं समझता हूं कि इस आंकड़े को दुरुस्त किये जाने की जरूरत है.
बहरहाल, भारत सरकार और सीबीडीटी ने करदाताओं के संबंध में जो बातें बतायी हैं, उनसे एक बात तो साफ है कि टैक्स को छुपानेवाले लोगों से टैक्स भरवाने में अभी कई साल लगेंगे. हालांकि, जीएसटी के आने से एक अच्छी चीज यह हुई है कि अब व्यापारी और दुकानदार भी टैक्स के दायरे में आने लगे हैं और टैक्स भरनेवालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. हालांकि, अगर इस आंकड़े को देखा जाये कि देश में 60 प्रतिशत लोग कृषि क्षेत्र से हैं, यानी 60 प्रतिशत लोग टैक्स देने से बच जाते हैं, क्योंकि कृषि क्षेत्र पर टैक्स आयद नहीं है.
जाहिर है, हर कोई टैक्स से बचने के लिए खुद को किसान बताता फिरना चाहेगा और ऐसे लोग हैं भी, जो काम तो कुछ और करते हैं, लेकिन बताते खुद को किसान हैं. इसी घालमेल के चलते लाखों लोग टैक्स देने से खुद को बचा लेते हैं. मेरा मानना है कि जो लोग किसान न होकर भी खुद को किसान बताते हैं, उन्हें टैक्स के दायरे में लाने के लिए आयकर विभाग और सीबीडीटी को कोशिश करनी होगी.
हमारे देश की इतनी बड़ी जनसंख्या और कृषि क्षेत्र को टैक्स से छूट देने की बात के मद्देनजर देखा जाये, तो फिलहाल भारत में टैक्स भरनेवालों का स्केल कुछ भी नहीं है. बीते वर्ष में जो 6.92 करोड़ लोगों ने आइटीआर फाइल किया है, यह कतई नहीं है कि इतने लोगों ने टैक्स भी भरे हैं.
इसमें टैक्स भरनेवालों की संख्या तो बहुत कम है, बाकी तो सिर्फ आइटीआर ही फाइल करते हैं, अपना बैलेंस सीट बनाने और यह दिखाने के लिए कि देखो हमने आइटीआर भर दिया. बहुत से लोग यह दिखाने के लिए आइटीआर भरते हैं कि उनकी आय तो टैक्स के दायरे में आती ही नहीं है.
इसलिए इस देश में फिलहाल बड़ी दिक्कत इस बात की है कि लोग टैक्स भरने के लिए सामने आते ही नहीं हैं. यही वजह है कि जब एक करोड़ की आमदनी वालों का आंकड़ा जारी होता है, तो लोगों के लिए यह बड़ी खबर बन जाती है कि देखो देश में करोड़पतियों की संख्या बढ़ रही है.
उद्योग, व्यापार या कंपनी चलानेवालों की बात अगर रहने भी दिया जाये, तो इस देश में इतनी नेशनल अौर मल्टीनेशनल कंपनियां हैं, जिनमें शीर्ष पदों पर काम करनेवाले सैलरी क्लास की सालाना आय क्या लाखों में होगी? बिल्कुल नहीं.
मल्टीनेशनल कंपनियाें में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों का बैलेंस सीट अगर सामने रख दिया जाये, तो साफ पता चल जायेगा कि हाई सैलरी क्लास के लोग ही लाखों में होंगे. इसलिए सीबीडीटी को चाहिए कि वह अपनी कोशिशों का दायरा बढ़ाये.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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