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निजीकरण के लिए स्वायत्तता

डॉ धनंजय राय, असिस्टेंट प्रोफेसर , सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात jnudhananjayrai@gmail.com बीते 20 मार्च को वि श्ववि द्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा 60 उच्च शिक्षा संस्थानों को ‘स्वायत्तता’ प्रदान की गयी. यह उच्च शिक्षा और इसके जनतंत्रीकरण के सिद्धांत के विपरीत है. यह स्वायत्तता उन संस्थानों को दी गयी है, जिन्होंने यूजीसी के अनुसार ‘उच्च […]

डॉ धनंजय राय, असिस्टेंट प्रोफेसर , सेंट्रल

यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात
jnudhananjayrai@gmail.com
बीते 20 मार्च को वि श्ववि द्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा 60 उच्च शिक्षा संस्थानों को ‘स्वायत्तता’ प्रदान की गयी. यह उच्च शिक्षा और इसके जनतंत्रीकरण के सिद्धांत के विपरीत है. यह स्वायत्तता उन संस्थानों को दी गयी है, जिन्होंने यूजीसी के अनुसार ‘उच्च शैक्षणिक मानकों’ को बनाये रखा है. जिन उच्च शिक्षा संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान की गयी है, उनमें पांच केंद्रीय विश्वविद्यालय, 21 राज्य विवि , 24 डीम्ड विवि , 2 नि जी विश्वविद्यालय, और 8 स्वायत्त महाविद्यालय शामिल हैं. अब इन स्वायत्त संस्थानों को यूजीसी के दायरे में काम करते हुए नये पाठ्यक्रम, परिसर से बाहर के केंद्रों, कौशल विकास पाठ्यक्रम, अनुसंधान पार्क, और किसी अन्य नये शैक्षणिक कार्यक्रम को शुरू कर ने की स्वतंत्रता होगी.
इस संस्थानों के पास विदेशी शिक्षकों और छात्रों को भर्ती करने की भी आजादी होगी. शिक्षकों को ज्यादा भत्ते देने के साथ ही नये अकादमिक सहयोग और दूरस्थ कार्यक्रम चलाने की भी आजादी इन स्वायत्त संस्थानों को होगी. इस संदर्भ में दो बातें महत्वपूर्ण हैं. पहली, यूजीसी का यह कदम उच्च शिक्षा के निजीकरण की दिशा में चली आ रही लंबी प्रक्रिया का अगला हिस्सा है. दूसरा, नवउदारवाद के दौर में ‘स्वायत्तता’ का मतलब ही बदल दिया गया है. कमोबेश स्वायत्तता का आशय उच्च शिक्षा संस्था नों में सरकारों द्वारा हस्तक्षेप न कर ने की नीति और आर्थिक स्वतंत्रता के संदर्भ में समझा गया था.
इस तरह की स्वायत्तता को कोठारी आयोग से लेकर यशपाल समिति का पुरजोर समर्थ न हासिल था. नवउदारवादी परिभाषा में स्वा यत्तता का मतलब सरकार से किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं लेने से है. संस्थानों को अब खुद ही अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा कर ने के लिए पहल कर नी होगी. यूजीसी के इस कद म को वित्त मंत्रालय के (दिनांक 13 जनवरी, 2017) के नोट से समझा जा सकता है. वित्त मंत्रालय का यह नोट ‘अर्ध सरकारी संगठनों, स्वायत्त संगठनों, वैधानिकनिकायों’ आदि के कर्मचारियों, जो केंद्र सरकार द्वारा स्थापित और वित्त पोषित / नियंत्रित हैं, को संबोधित किया गया है. इस नोट में इनके संस्था नों के कर्मचारियों को केंद्र सरकार का कर्मचारी मानने से इनकार करते हुए इनका खर्च केंद्र सरकार पर कम करने की सलाह दी गयी है.
इन सभी संस्था नों को खुद ही आर्थिक स्रोत उत्पन्न कर ने की हिदायत दी गयी है. इन कर्मचारियों को सरकार बिना हिचक सातवें वेतन आयोग द्वारा निर्धारित वेतन वृद्धि का 70 प्रतिशत देने को तैयार है. इससे ज्यादा के लिए आर्थिक सलाहकार का सुझाव महत्वपूर्ण होगा. दूसरे शब्दों में, वेतन वृद्धि का 30 प्रतिशत खर्च खुद ही जुटाने के लिए उन्हें मजबूर होना होगा. यूजीसी द्वारा जारी अधिनियम 2017 विश्ववि द्यालयों का वर्गीकरण करता है. यह स्वायत्तता की नयी परिभाषा देता है, जिससे निजीकरण की प्रक्रिया और उच्च शिक्षा में पदानुक्रम का रास्ता प्रशस्त होता है.
इस अधिनियम के अनुसार, तीन तरह के विवि तीन तरह की ‘ग्रेडिंग’ के आधार पर होंगे. पहली सूची में वह विवि होंगे, जिनको राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् (एनएएसी) ने 3.5 या इससे ज्यादा की ग्रेडिंग दी है या नेशनल इंस्टी ट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) की सूची में पिछले दो साल से 50 के अंदर रैंकिंग प्राप्त हुई है. दूसरी सूची में ऐसे विवि होंगे, जिन्हें एनएएसी से 3.01-3.49 की ग्रेडिंग प्राप्त हुई हो या एनआईआरएफ रैंकिंग में 50 से 100 के बीच स्था न लगातार दो साल तक मिला हो. जो भी विवि पहली या दूसरी सूची में शामिल नहीं होंगे, उन्हें स्वतः ही तीसरी सूची में मान लिया जायेगा.
पहला परिणाम यह होगा कि वर्गीकृत स्वायत्तता विश्वविद्यालयों के बीच वर्गीकृत संबंध बनायेगी. इससे विश्वविद्यालयों के बीच जो सहज- समान संबंध होना चाहिए था, वह तितर-वितर हो जायेगा. दूसरा परिणाम पाठ्यक्रम में बदलाव से संबंधित है. इससे स्वायत्त विवि को स्व- वित्तपोषित पाठ्यक्रम को शुरू कर ने का पूरा अधिकार मिल गया है. इस रेगुलेशन के अनुसार, श्रेणी एक के विवि , नये पाठ्यक्रम / कार्यक्रम / वि भाग / संकाय / केंद्र को स्व-वित्तपोषण के रूप में शुरू कर सकते हैं, जिसके लिए आयोग की स्वीकृति जरूरी नहीं होगी. तीसरा, स्वायत्तता के नाम पर उच्च शिक्षा के निजीकरण की पुरजोर कोशिश है. स्वायत्तता का यहां आशय स्व-वित्तपोषि त पाठ्यक्रमों के माध्यमों से उन विषयों को पढ़ाने से है, जिसका आकर्षण बाजार में है. चौथा, इससे उन पाठ्यक्रमों का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा, जो समाज के लिए तो जरूरी हैं, लेकिन बाजार उनको तिरस्कृत भाव से देखता है. पांचवा, स्व-वित्तपोषण पाठ्यक्रमों में उस वर्ग के लिए एडमिशन लेना बहुत ही मुश्किल हो जायेगा, जिसके पास पैसे नहीं हैं यानी जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं.
सरकार की इस पहल से यह साफ लगता है कि स्वायत्तता के नाम पर सरकार द्वारा उच्च शिक्षा से मुंह मोड़ लेने की कोशिश है. यह नवउदारवादी बाजार और विचार दोनों की जरूरत है. स्वायत्त संस्थान और स्व-वित्तपोषण पाठ्यक्रम दोनों उच्च शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के खिलाफ माने जाते हैं. उच्च शिक्षा में केंद्र सरकार सिर्फ 2.9 प्रतिशत ही खर्च कर ती है. लोकतंत्र और लोकतंत्रीकरण के लिए यह जरूरी है कि सरकार द्वारा शिक्षा पर खर्च बढ़ाया जाये. इसके लिए स्वायत्त संस्थान और स्व-वित्तपोषण पाठ्यक्रम को नकारने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

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