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राहुल गांधी के सामने चुनौतियां

नीरजा चौधरी राजनीतिक विश्लेषक राहुल गांधी के कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया की टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ ही दिन में गुजरात में वोट पड़नेवाले हैं, जिसके लिए राहुल ने बीते दिनों कई सारी रैलियां कीं. राहुल ने नामांकन कर दिया है और अब यह अनिश्चितता पूरी तरह से खत्म हो गयी है […]

नीरजा चौधरी

राजनीतिक विश्लेषक

राहुल गांधी के कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया की टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ ही दिन में गुजरात में वोट पड़नेवाले हैं, जिसके लिए राहुल ने बीते दिनों कई सारी रैलियां कीं.

राहुल ने नामांकन कर दिया है और अब यह अनिश्चितता पूरी तरह से खत्म हो गयी है कि कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा. आगामी 11 दिसंबर को यह औपचारिक ऐलान हो जायेगा कि राहुल गांधी अगले कांग्रेस अध्यक्ष होंगे. कांग्रेस को राहुल के हाथ में कमान देने में बहुत वक्त लगा है. भाजपा में यह पहले ही हो चुका था. साढ़े तीन-चार साल पहले अटल-आडवाणी युग खत्म हो गया था और मोदी-शाह युग शुरू हो गया था. कांग्रेस में इसे लेकर कोई दुविधा नहीं थी कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन होगा, क्योंकि यह निर्णय भी खुद सोनिया और उनके अपनों को ही लेना था. फिर भी वक्त ज्यादा लगा और अब गुजरात चुनाव के दौरान यह स्पष्ट हो पाया.

गुजरात चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है. इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर गुजरातियाें ने एक संकेत दिया है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पार्टी में दो पावर सेंटर नहीं रहेगा. दरअसल, पहले दो टीम होती थी- एक सोनिया गांधी और उनके सहयोगी-समर्थक नेताओं की टीम और दूसरी, राहुल गांधी की टीम.

इसका असर यह होता था कि कभी-कभार नीतियों के निर्माण में दोनों टीमों की अलग-अलग राय होती थी, जो पार्टी के संगठन स्वरूप में एका नहीं रख पाती थी. लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा और राहुल के नेतृत्व की ही पार्टी के भीतर नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होगी.

पूरी कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के बीच यह साफ संदेश गया है कि अब कांग्रेस का नेतृत्व युवा राहुल के हाथों में है. यानी अंतत: एक पीढ़ीगत बदलाव हुआ है कांग्रेस पार्टी के भीतर. अब राहुल के सामने चुनौतियां भी यहीं से खड़ी होती हैं.

कांग्रेस के लोगों को यह आभास हो रहा है कि अब देश का मिजाज बदल रहा है. ऐसे में पार्टी को बेहतर करने की उम्मीद ज्यादा है. कांग्रेस गुजरात चुनाव जीते या हारे, लेकिन राहुल के नेतृत्व को वे पसंद कर रहे हैं.

मान लीजिए कि राहुल के मौजूदा नेतृत्व के चलते अगर गुजरात चुनाव में कांग्रेस को 80-85 सीटें मिलती हैं, तो राहुल एक नेता बन जायेंगे, मुकाबले कांग्रेस अध्यक्ष के. हालांकि, यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि गुजरात चुनाव में कांग्रेस की जीत होगी, लेकिन राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता है, इस ऐतबार को मानते हुए अगर यह मान लिया जाये कि कांग्रेस जीत जायेगी, तो फिर राहुल गांधी सिकंदर बन जायेंगे, जैसे 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी बने थे.

अब सवाल है कि राहुल के युवा नेतृत्व में पार्टी में क्या हर स्तर पर नये बदलाव, नयी ऊर्जा और नयी नीतियां आयेंगी? दरअसल, यही देखना महत्वपूर्ण है कि राहुल इन सारी चीजों को कैसे ले आ पाते हैं. साथ ही, चुनौती यहां यह होगी कि उन्हें युवाओं को साथ लेकर चलना भी है और वरिष्ठ नेताओं को छोड़ना भी नहीं है. वैसे राहुल ने गुजरात के तीन युवा नेताओं का समर्थन करके इसकी शुरुआत कर दी है.

दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि साल 2019 के आम चुनाव में राहुल क्या कमाल कर पाते हैं और कांग्रेस पार्टी के साथ ही विपक्ष को भी कैसे एकजुट कर पाते हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते उनकाे यह करना पड़ेगा कि वे पार्टी में ऊपर के स्तर पर एक मजबूत फ्रंट बनायें और निचले स्तर पर हर चुनावी क्षेत्र में लोगों से संपर्क बढ़ायें. साल 2014 में भाजपा को मिले 31 प्रतिशत वोट को छोड़ दें, तो राहुल के पास अगले आम चुनाव में बाकी वोटों को साधने की बड़ी चुनौती होगी.

कांग्रेस को अपना युवा नेतृत्व देकर क्या राहुल गांधी एक नेता के रूप में अपना कद बढ़ा पायेंगे? क्या उनका नेतृत्व कोई बड़ा कमाल कर पायेगा? क्या वे कुछ ऐसा करेंगे कि लोग (हर पार्टी के लोग) उनको सुनेंगे? क्या कांग्रेस को संजीवनी मिल पायेगी? ये सारी चीजें इस बात पर निर्भर करती हैं कि राहुल आगामी चुनाव जीतते हैं या नहीं.

राहुल के चुनाव जीतने पर ही लोग उन्हें नयी नजर से देख पायेंगे, लोग उन्हें नेता मान पायेंगे, नहीं तो कुछ भी नहीं होगा. इसकी शुरुआत गुजरात से ही है, और अगले साल कई महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हैं, जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से ही है. इस काम के लिए राहुल गांधी के पास वक्त भी नहीं है, मुश्किल से चार-पांच महीने ही होंगे. इसलिए उनके लिए चुनावों को जीतना बहुत जरूरी हो गया है, क्योंकि उसके बिना कांग्रेस का भला नहीं होनेवाला है.

लोग कह रहे हैं कि अमेरिका की यात्रा के बाद से राहुल की छवि बदल गयी है और वे पहले की तरह हर जरूरी वक्त पर भाग जानेवाले नजर नहीं आ रहे. इस छवि को उन्हें तोड़ने की जरूरत है. गुजरात में वे जिस तरह से डटे हुए हैं, उससे लोग उन्हें एक नयी नजर से देख भी रहे हैं.

लेकिन, वे ऐसा कब तक रह पाते हैं, इसे देखना होगा. दो चीजें राहुल को अपने भीतर गांठ बांध लेनी होगी- एक, हर हाल में राजनीतिक मैदान में डटे रहना और दूसरी, हर हाल में चुनाव जीतना. इसके लिए उन्हें हर तरह की रणनीति बनानी होगी. भाजपा में जिस तरह जीत की भूख है, उसका मुकाबला किये बिना कांग्रेस जीत के नये आयाम नहीं गढ़ सकती. राहुल को अभी इसे साबित करना है, तभी वे खुद को बेहतरीन नेता के रूप में भी साबित कर पायेंगे.

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