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हमें भीड़ तंत्र से बचना होगा

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in आजादी के 70 साल बाद देश में भीड़ की हिंसा जैसे मुद्दे हमारे सामने आ खड़े हुए हैं. सभ्य समाज में इसका कोई स्थान नहीं है. समाज को इस पर चिंतन करना होगा कि भीड़ तंत्र हमें किस दिशा में ले जायेगा. हम भीड़ की हिंसा को […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
आजादी के 70 साल बाद देश में भीड़ की हिंसा जैसे मुद्दे हमारे सामने आ खड़े हुए हैं. सभ्य समाज में इसका कोई स्थान नहीं है. समाज को इस पर चिंतन करना होगा कि भीड़ तंत्र हमें किस दिशा में ले जायेगा. हम भीड़ की हिंसा को रोकने की बजाय उसका हिस्सा बन जाते हैं. यह गंभीर स्थिति है. इन घटनाओं से सीधे तौर से हम और आप जैसे आम लोग जुड़े हैं, प्राथमिक रूप से इनसे कोई राजनेता नहीं जुड़ा है.
हिंसा भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध है. भारतीय लोकतंत्र धार्मिक समरसता और विविधता में एकता की मिसाल है. यहां अलग-अलग जाति, धर्म, संस्कृति को मानने वाले लोग वर्षों से बिना किसी भेदभाव के रहते आये हैं. भारत जैसी विविधता दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलती. यह भारत की बहुत बड़ी पूंजी है और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि इसे बचा कर रखें, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भीड़ की हिंसा के मामले रह-रह कर हमारे सामने आ रहे हैं.
जब किसी व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाए, जब भीड़ उन्मादी हो जाए, अनियंत्रित हो जाए, तो निश्चित रूप से यह गहरी चिंता का विषय है. ऐसी घटनाओं से देश का माहौल तो खराब होता ही है, साथ ही राज्य की छवि पर भी दाग लगता है. समय के बदलाव के साथ समाज में कभी-कभी कुछ विकृतियां आ जाती हैं, लेकिन सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं स्वीकार्य नहीं हैं. भारतीय समाज हमेशा से मर्यादाओं को मानने वाला समाज रहा है. पुरातन काल को देखें, तो हम पायेंगे कि महाभारत के इतने बड़े संघर्ष के दौरान भी मर्यादाओं का हमेशा ध्यान रखा जाता था.
संघर्ष के दौरान एक दूसरे के सम्मान में कहीं कोई कमी नहीं रहती थी. भीष्म पितामह दूसरे पक्ष से लड़ रहे थे, लेकिन पांडव उनके पास जाते थे और पूरे संघर्ष के दौरान एक संवाद कायम रहा था, लेकिन चिंता तब और बढ़ जाती है जब ऐसे गंभीर विषय पर राजनीति शुरू हो जाती है. हम सब मिल बैठ कर इसका कोई समाधान निकालते नजर नहीं आते.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में स्पष्ट शब्दों में कहा कि झारखंड की हिंसा की घटना से उन्हें पीड़ा पहुंची है, वह आहत हुए हैं, दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए. लेकिन साथ ही प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मुद्दे पर किसी राज्य को बदनाम करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. यह राज्य की जनता का अपमान है.
ऐसे मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. देश का कानून ऐसी घटनाओं से निबटने में सक्षम है. हिंसा की घटनाओं को लेकर सरकार का देशभर में एक ही मापदंड है और हर नागरिक की सुरक्षा की गारंटी सरकार की जिम्मेदारी है.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इससे निकलने का रास्ता क्या है? मेरा मानना है कि जब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा हो, कोई राह नहीं दिखाई दे रही हो, तो ऐसे में एक ही व्यक्ति राह दिखा सकता है और वह हैं महात्मा गांधी.
ऐसे भी लोग हो सकते हैं, जो गांधी को आज के दौर में अप्रासंगिक मान बैठे हों. वे तर्क दे सकते हैं कि मौजूदा दौर में अहिंसा का सिद्धांत अव्यावहारिक है. मेरा मानना है कि गांधी के पास आज भी देने के लिए बहुत कुछ है. मौजूदा दौर में गांधी के सिद्धांतों और आदर्शों की जरूरत एक बार फिर बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही है. मौजूदा दौर की चुनौतियों की काट महात्मा गांधी के पास ही है.
गांधी को अपने हिंदू होने पर गर्व था और वह अत्यंत धर्मनिष्ठ हिंदू थे, परंतु उन पर अन्य धर्मों का प्रभाव भी था. गांधी का कहना था कि उनकी आस्था सहिष्णुता पर आधारित है. महात्मा गांधी के पास अहिंसा, सत्याग्रह और स्वराज नाम के तीन हथियार थे. सत्याग्रह और अहिंसा के उनके सिद्धांतों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने अधिकारों और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. यही वजह है कि इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन अहिंसा के आधार पर लड़ा गया.
महात्मा गांधी धार्मिक व्यक्ति होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे. वह विपरीत परिस्थितियों में भी ऐसा रास्ता निकालने में सक्षम थे, जो दुनिया को प्रेम की राह पर ले जाता है. उनका पूरा आंदोलन हिंसा के खिलाफ रहा और उन्हें सफलता मिली. उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य अहिंसक समाज के निर्माण को बनाया. गांधी कहा करते थे कि हिंसा करने वाले दो व्यक्तियों के बीच मुकाबला होता है, तो जीत अधिक हिंसक की होती है.
चंपारण किसान आंदोलन, अहमदाबाद के श्रमिकों की सफल हड़ताल, खेड़ा किसान आंदोलन, सार्वजनिक अवज्ञा आंदोलन, चौरी चौरा की हिंसा के बाद आंदोलन को स्थगित कर अहिंसा का संदेश, डांडी यात्रा में नमक कानून के खिलाफ पहल और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन जैसे अनेक अहिंसक आंदोलन इसके उदाहरण हैं.
कहा जाता है कि गांधी को समझना आसान भी है और मुश्किल भी. सन् 1909 में गांधी जी ने चर्चित पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ लिखी थी. उन्‍होंने यह पुस्तक इंग्लैंड से अफ्रीका लौटते हुए जहाज पर लिखी थी. जब उनका एक हाथ थक जाता था, तो दूसरे हाथ से लिखने लगते थे.
यह पुस्तक संवाद शैली में लिखी गयी है. गांधी इसमें लिखते हैं कि हिंसा हिंदुस्तान के दुखों का इलाज नहीं है. उनका कहना था कि हिंदुस्तान अगर प्रेम के सिद्धांत को अपने धर्म के एक सक्रिय अंश के रूप में स्वीकार करे और उसे अपनी राजनीति में शामिल करे, तो स्वराज स्वर्ग से हिंदुस्तान की धरती पर उतर आयेगा.
महात्मा गांधी का मानना था कि नैतिकता, प्रेम, अहिंसा और सत्य को छोड़ कर भौतिक समृद्धि और व्यक्तिगत सुख को महत्व देने वाली आधुनिक सभ्यता विनाशकारी है. यही कारण है कि वह किसी सभ्यता के साथ थोपे जा रहे प्रभुत्व, हिंसा और सांस्कृतिक दासता का हमेशा विरोध करते थे. अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर नजर डालें, तो हम पायेंगे कि पूरी दुनिया उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है, खासकर मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में धार्मिक विचारधारा के आधार पर भौगोलिक सत्ता कायम करने की कोशिश की जा रही है.
हमारा यह सौभाग्य है कि अब तक हम इन सबसे प्रभावित नहीं हुए हैं, लेकिन यह बात भी हम सब लोगों को साफ होनी चाहिए कि आर्थिक हो या फिर सामाजिक, किसी भी तरह की प्रगति शांति के बिना हासिल करना नामुमकिन है. इसलिए हमें अपने सामाजिक ताने-बाने को हर कीमत पर बनाये रखना होगा.

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