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बिहारियों के योगदान की अनदेखी

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक,प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in महात्मा गांधी जीवन पर्यंत अहिंसा के पुजारी रहे, उनकी धरती गुजरात से तो ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि जब हम गांधी की 150वीं जयंती का उत्सव मना रहे हैं, गुजरात में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को बेवजह निशाना बनाया जा रहा […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक,प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
महात्मा गांधी जीवन पर्यंत अहिंसा के पुजारी रहे, उनकी धरती गुजरात से तो ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि जब हम गांधी की 150वीं जयंती का उत्सव मना रहे हैं, गुजरात में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को बेवजह निशाना बनाया जा रहा है. खौफ के कारण बड़ी संख्या में बिहारवासी गुजरात छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं. इसके पीछे कुछ स्थानीय राजनीतिज्ञों का हाथ बताया जा रहा है. अभी तक गुजरात सरकार ने जो कदम उठाएं हैं, वे नाकाफी साबित हुए हैं.
गुजरात के लोगों को शायद पता नहीं है कि बिहार के लोग मेहनतकश हैं और गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की जो आभा और चमक- दमक नजर आती है, उसमें बिहारियों का भारी योगदान है. यह आभा और चमक-दमक उनके बिना खो भी सकती है. इन राज्यों की विकास की कहानी बिना बिहारियों के योगदान के नहीं लिखी जा सकती है, लेकिन स्थानीय नेता राजनीतिक स्वार्थ के लिए बिहारियों को निशाना बना रहे हैं.
सोशल मीडिया पर बिहार और यूपी के लोगों के खिलाफ नफरत भरे संदेश फैलाये जा रहे हैं. उन्हें राह चलते पीटा जा रहा है. इस की वजह बतायी जा रही है कि साबरकांठा जिले में एक बच्ची से दुष्कर्म हुआ था, जिसमें बिहार के एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई थी. इसके बाद बिहार और यूपी के लोगों को निशाना बनाया जाने लगा और पूरे हिंदी भाषी समाज को कठघरे में खड़ा कर दिया गया. हिंसा को न रोक पाना गुजरात सरकार की विफलता भी है. यदि वहां बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है, तो दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन इसकी आड़ में किसी क्षेत्र विशेष के लोगों के खिलाफ हिंसा स्वीकार्य नहीं है. एक राज्य के लोगों को दूसरे राज्य में काम करने से रोका जाये, यह प्रवृत्ति देश हित में नहीं है. इसमें तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है.
पिछले कुछ समय से विभिन्न राज्यों से ऐसी चिंताजनक खबरें आती रही हैं, जिनमें बिहार के लोगों को निशाना बनाया गया है. इसके पहले जम्मू, बेंगलुरु, चेन्ने और तिरुवनंतपुरम से भी ऐसी खबरें आयीं थीं. यह हमें स्वीकार करना होगा कि देश में बिहार के लोगों की जैसी इज्जत होनी चाहिए, वैसी नहीं है. कुछेक राज्यों में इन्हें बिहारी कह कर बेइज्जत करने की कोशिश की जाती है. दरअसल, लोगों को बिहार की सैकड़ों साल पुरानी गौरवशाली परंपरा का ज्ञान नहीं है. बिहार का इतिहास चार से साढ़े चार हजार साल पुराना है.
सारण जिले में चिरांद गांव की बस्ती को बिहार की सबसे पुरानी बस्ती माना जाता है. बिहार के अस्तित्व की कहानी वहां से शुरू होती है और पूरे देश और दुनिया में फैलती है. बिहार से गौतम बुद्ध का नाता रहा है, जिनके उपदेशों को मानने वाले आज पूरी दुनिया में हैं. यहीं से महावीर जैसे विचारक आते हैं, जिनके द्वारा स्थापित जैन संप्रदाय देश का एक प्रमुख धर्म है. यह 24 जैन तीर्थकरों की कर्मभूमि रहा हैं. सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हुआ था. आज भी देश-विदेश से बड़ी संख्या में सिख धर्मावलंबी उनके जन्म स्थान पर मत्था टेकने आते हैं.
बिहार का उल्लेख वेदों, पुराणों और प्राचीन महाकाव्यों में मिलता है. ईसा पूर्व में इस क्षेत्र पर बिंबसार, पाटलिपुत्र की स्थापना करने वाले उदयन, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक ने राज किया.
इसके पश्चात कुषाण शासकों का समय आया और बाद में गुप्त वंश के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बिहार पर राज किया. राजा विशाल का गढ़, जिसे आज वैशाली के रूप में जाना जाता है, वहां गणतंत्र ने पहली बार आकार ग्रहण किया था और साढ़े सात हजार से अधिक प्रतिनिधि मिलकर पूरे इलाके का शासन चलाते थे, जबकि पूरी दुनिया में कहा जाता है कि लोकतंत्र यूरोप से आया, जबकि यूरोप से पहले हमें वैशाली में लोकतांत्रिक व्यवस्था का उदाहरण देखने को मिलता है. यहीं चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी ने मौर्य वंश की नींव डाली.
यहीं अशोक जैसे राजा हुए, जिसने प्रेम से दुनिया को जीतने की बात कही. यहां जनक जैसे राजा हुए हैं और याज्ञवल्क्य जैसे विचारक. मैत्रेयी और गार्गी जैसी विदुषी महिलाएं बिहार से ही आती हैं. मिथिला में शंकराचार्य से मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने शास्त्रार्थ किया. यहां चाणक्य, वात्स्यायन, आर्यभट्ट, चरक, नागार्जुन जैसे विद्वानों ने समय-समय पर जन्म लिया और देश एवं दुनिया को अपने विचारों से दिशा दी है.
बिहार की माटी के सपूत डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने. जयप्रकाश नारायण ने यहीं से इमरजेंसी के खिलाफ बिगुल फूंका. देश को बड़े-बड़े लेखक, विचारक, प्रशासक और मेधावी युवक उपलब्ध कराने का सिलसिला आज भी जारी है. जमींदारी उन्मूलन से लेकर पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का कानून पहले बिहार में लागू होता है. बाद में उसे पूरा देश अपनाता है.
कहने का आशय यह कि बिहार का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है और हर बिहारवासी को इस पर गर्व होना चाहिए.लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा दौर में हमारे समक्ष अनेक चुनौतियां हैं. हम अभी तक शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं. अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद, बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में पिछड़ा हुआ है. बिहार के अधिकांश लोग कृषि से जीवन यापन करते हैं, लेकिन बिहार का एक बड़ा इलाका हर बाढ़ में डूबता आया है.
कोसी और सीमांचल के इलाके को बाढ़ से आज भी मुक्ति नहीं मिल पायी है. अगर इससे मुक्ति मिल जाये, तो इस पूरे इलाके की तस्वीर बदल सकती है. हमें बिहार में ही शिक्षा और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, ताकि लोगों को बाहर जाने की जरूरत ही न पड़े. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अच्छी शिक्षा के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती. आज हर साल दिल्ली और दक्षिण के राज्यों में पढ़ने के लिए बिहार के हजारों बच्चे जाते हैं. राजस्थान के कोटा में बिहार और झारखंड के हजारों बच्चे कोचिंग के लिए जाते हैं. हमें बिहार को शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित करने की जरूरत है.
आज जरूरत है कि हम ऐसा ढांचा विकसित करें कि हमारे बच्चों को पढ़ाई और कोचिंग के लिए बाहर जाने की जरूरत ही न पड़े. इस दिशा में हमें प्रयास करने होंगे. मेरा मानना है कि बिहार और झारखंड दो सहोदर भाई है. दोनों मिलकर विकास का नया मॉडल स्थापित कर सकते हैं. बिहार के पास उद्योग नहीं है, लेकिन बड़ी संख्या में प्रशिक्षित कामगार हैं. झारखंड में उद्योग हैं और यहां तेजी से औद्योगीकरण हो रहा है.
इसका फायदा बिहार उठा सकता है. इसके लिए दोनों राज्यों को साझा विषयों पर बात करनी होगी. समय आ गया है कि बिहार भविष्य की ओर देखे. पिछली बार जो प्रयास किये, उनसे सीख लेकर उत्साह के साथ आगे बढ़े. बिहार आगे बढ़ेगा, तभी देश आगे बढ़ेगा.

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