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कुत्ते के डायलिसिस मामले में मंत्री को एमसीआइ की फटकार

वेस्ट बंगाल हेल्थ यूर्निवसिटी के कुलपति और पीजी के पूर्व निदेशक निशाने पर कोलकाता : वेस्ट बंगाल मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष तथा मंत्री डॉ निर्मल माझी, वेस्ट बंगाल हेल्थ यूर्निवसिटी के कुलपति एवं पीजी के तत्कालीन नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ राजेंद्र पांडेय और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक और एसएसकेएम पीजी के पूर्व निदेशक […]

वेस्ट बंगाल हेल्थ यूर्निवसिटी के कुलपति और पीजी के पूर्व निदेशक निशाने पर

कोलकाता : वेस्ट बंगाल मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष तथा मंत्री डॉ निर्मल माझी, वेस्ट बंगाल हेल्थ यूर्निवसिटी के कुलपति एवं पीजी के तत्कालीन नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ राजेंद्र पांडेय और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक और एसएसकेएम पीजी के पूर्व निदेशक प्रो. डॉ प्रदीप मित्रा को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) की नीति विषयक समिति ने चार वर्ष पुराने मामले में दोषी ठहराते हुए तीनों को कड़ी फटकार लगायी है.

गौरतलब है कि यह मामला जितना दिलचस्प है, उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण भी, क्योंकि चिकित्सक को समाज में भगवान का दर्जा दिया गया है. इस पेशे को तृणमूल कांग्रेस के नेता डॉ निर्मल माझी की राजनीतिक शक्ति‍ ने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. निर्मल माझी राज्य मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष हैं. यह घटना 10 जून 2015 की है. राज्य के सबसे बड़े व एक मात्र सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल एसएसकेएम (पीजी) में डायलिसिस के लिए राज्य के एक बड़े नेता के कुत्ता को भेजा गया था.

डॉ निर्मल माझी के कहने पर पीजी के तत्कालीन निदेशक प्रो. डॉ प्रदीप मित्रा ने पीजी में कुत्ते का डायलिसिस करने की अनुमति दी थी, लेकिन अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग में कार्यरत एक जूनियर डॉक्टर ने कुत्ते की डायलिसिस करने इनकार कर दिया. कुत्ते की डायलिसिस तो नहीं हुई, लेकिन मीडिया में इस खबर के आते ही सरकार सकते में आ गयी थी. बाद में सरकार ने इस घटना की लिपापोती करते हुए निदेशक प्रो डॉ प्रदीप मित्रा को पीजी के निदेशक पद से हटा कर सागर दत्त मेडिकल कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर तबादला कर दिया. वहीं इस मामले के सामने आने के बाद 10 जुलाई 2017 को पीबीटी के अध्यक्ष डॉ कुणाल साहा ने इस घटना की जांच के लिए एमसीआइ से अपील की थी.

इस मामले की सुनवाई करते हुए एमसीआइ ने राज्य के तीन वरिष्ठ चिकित्सकों को फटकार लगायी. इस विषय में डॉ साहा ने बताया कि अगर पीजी में कुत्ते का डायलिसिस कर दिया गया होता तो उस मशीन से किसी दूसरे मरीज का डायलिसिस किये जाने पर उसकी मौत तय थी. कुत्ते के शरीर के किटाणु उस मशीन के जरिए मरीज के शरीर में प्रवेश करते ही उसकी मौत हो जाती है. ऐसे में चिकित्सकों ने हत्या करने जैसे अपराध को किया है. उन्होंने कहा कि वह एमसीआइ के कदम से संतुष्ट नहीं हैं. वह इन तीनों चिकित्सकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई चाहते हैं, लेकिन एमसीआइ ने साबित जो जरूर किया है कि उक्त चिकित्सकों से गलती हुई है. इसलिए अब वे इस मामले को लेकर हाइकोर्ट जायेंगे.

कोलकाता : वेस्ट बंगाल मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष तथा मंत्री डॉ निर्मल माझी, वेस्ट बंगाल हेल्थ यूर्निवसिटी के कुलपति एवं पीजी के तत्कालीन नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ राजेंद्र पांडेय और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक और एसएसकेएम पीजी के पूर्व निदेशक प्रो. डॉ प्रदीप मित्रा को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) की नीति विषयक समिति ने चार वर्ष पुराने मामले में दोषी ठहराते हुए तीनों को कड़ी फटकार लगायी है.

गौरतलब है कि यह मामला जितना दिलचस्प है, उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण भी, क्योंकि चिकित्सक को समाज में भगवान का दर्जा दिया गया है. इस पेशे को तृणमूल कांग्रेस के नेता डॉ निर्मल माझी की राजनीतिक शक्ति‍ ने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. निर्मल माझी राज्य मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष हैं. यह घटना 10 जून 2015 की है. राज्य के सबसे बड़े व एक मात्र सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल एसएसकेएम (पीजी) में डायलिसिस के लिए राज्य के एक बड़े नेता के कुत्ता को भेजा गया था.

डॉ निर्मल माझी के कहने पर पीजी के तत्कालीन निदेशक प्रो. डॉ प्रदीप मित्रा ने पीजी में कुत्ते का डायलिसिस करने की अनुमति दी थी, लेकिन अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग में कार्यरत एक जूनियर डॉक्टर ने कुत्ते की डायलिसिस करने इनकार कर दिया. कुत्ते की डायलिसिस तो नहीं हुई, लेकिन मीडिया में इस खबर के आते ही सरकार सकते में आ गयी थी. बाद में सरकार ने इस घटना की लिपापोती करते हुए निदेशक प्रो डॉ प्रदीप मित्रा को पीजी के निदेशक पद से हटा कर सागर दत्त मेडिकल कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर तबादला कर दिया. वहीं इस मामले के सामने आने के बाद 10 जुलाई 2017 को पीबीटी के अध्यक्ष डॉ कुणाल साहा ने इस घटना की जांच के लिए एमसीआइ से अपील की थी.

इस मामले की सुनवाई करते हुए एमसीआइ ने राज्य के तीन वरिष्ठ चिकित्सकों को फटकार लगायी. इस विषय में डॉ साहा ने बताया कि अगर पीजी में कुत्ते का डायलिसिस कर दिया गया होता तो उस मशीन से किसी दूसरे मरीज का डायलिसिस किये जाने पर उसकी मौत तय थी. कुत्ते के शरीर के किटाणु उस मशीन के जरिए मरीज के शरीर में प्रवेश करते ही उसकी मौत हो जाती है. ऐसे में चिकित्सकों ने हत्या करने जैसे अपराध को किया है. उन्होंने कहा कि वह एमसीआइ के कदम से संतुष्ट नहीं हैं. वह इन तीनों चिकित्सकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई चाहते हैं, लेकिन एमसीआइ ने साबित जो जरूर किया है कि उक्त चिकित्सकों से गलती हुई है. इसलिए अब वे इस मामले को लेकर हाइकोर्ट जायेंगे.

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