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लोकसभा चुनाव के परिणाम पर टिकी हैं वाममोरचा की निगाहें

कोलकाता : माकपा समर्थित वाममोर्चा ने लगातार 34 साल तक पश्चिम बंगाल पर शासन किया था और फिर 2011 में करारी हार के बाद वह सत्ता से हट गयी थी. तब से वाममोरचा का जनाधार लगातार घट रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने के कारण वाममोर्चा का प्रदर्शन […]

कोलकाता : माकपा समर्थित वाममोर्चा ने लगातार 34 साल तक पश्चिम बंगाल पर शासन किया था और फिर 2011 में करारी हार के बाद वह सत्ता से हट गयी थी. तब से वाममोरचा का जनाधार लगातार घट रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने के कारण वाममोर्चा का प्रदर्शन शायद एक बार फिर बेहद खराब रहे.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में वाम मोर्चा ने 29.5 फीसदी वोट शेयर के साथ राज्य की 42 में से दो सीट जीती थीं. दो साल बाद विधानसभा चुनाव में वोट शेयर घटकर 24 फीसदी रह गया, जोकि 2011 के विधानसभा चुनाव में 41 फीसदी था. वाममोर्चा का बाद के कई उपचुनाव में और बुरा हाल होता गया और राज्य में विपक्ष की जगह भाजपा लेती गयी.

राजनीतिक विश्लेषक विमल शंकर नंदा ने कहा कि उसके बाद से कोई ऐसी बात नहीं हुई, जिससे पता चले कि मोर्चे के वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई हो. अगर बीते कुछ सालों का ट्रेंड जारी रहा तो वे अपने जनाधार का बड़ा हिस्सा भाजपा के हाथों गवां देंगे.

नंदा के मुताबिक, वाममोर्चा उत्तर बंगाल के रायगंज और बालूरघाट तथा कोलकाता के पास यादवपुर में अच्छी टक्कर दे सकता है. राजनैतिक विज्ञान के प्रोफेसर नंदा ने कहा कि इन तीन सीटों के अलावा वाममोर्चा कहीं कुछ करने की स्थिति में नहीं दिख रहा है. उनके लिए कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. पांच साल पहले उन्होंने दो सीट जीती थीं.

माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य श्यामल चक्रवर्ती ने कहा, ‘अगर चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों तो हम बहुत अच्छा करेंगे. लोग तृणमूल कांग्रेस से काफी नाराज हैं.’

उन्होंने कहा कि अब वाममोर्चे के वे पुराने कार्यकर्ता लौटने लगे हैं, जो भाजपा में चले गए थे. हालात बदल रहे हैं. माकपा के विधायक सुजन चक्रवर्ती ने कहा, ‘लोग तृणमूल से छुटकारा चाहते हैं, जो बदलाव के वादे के साथ सत्ता में आई थी. राज्य के लोग अब बदलाव चाहते हैं और इस पार्टी द्वारा राज्य में राजनीति और संस्कृति के अपराधीकरण, सांप्रदायिकरण और इसे भ्रष्ट करने से नाराज हैं.’

उन्होंने कहा कि राज्य में भाजपा का आधार बढ़ाने के लिए तृणमूल जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से तृणमूल ने ही राज्य में भाजपा को प्रवेश दिया और इसकी राजनीति की वजह से भाजपा फली फूली.’

वाममोर्चे ने इस बार कांग्रेस से समझौते की कोशिश की, लेकिन मोर्चे के घटक फारवर्ड ब्लाॅक ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया और गठबंधन के लिए कांग्रेस के साथ वार्ता की मेज पर बैठने तक से इनकार कर दिया.

हालांकि वाममोर्चे ने कांग्रेस के खिलाफ बहरामपुर और मालदा दक्षिण सीट से उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया लेकिन वाममोर्चे की घटक रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) ने बहरमपुर से अपना प्रत्याशी उतार दिया. इस पर वाममोर्चे के चेयरमैन बिमान बोस ने नाराजगी जतायी.

उन्होंने कहा कि आरएसपी को अपना प्रत्याशी हटाना होगा लेकिन आरएसपी ने साफ मना कर दिया. आरएसपी के राज्य सचिव क्षिति गोस्वामी ने कहा कि हमने सीट कांग्रेस के लिए तब छोड़ने का फैसला लिया था, जब कांग्रेस से गठबंधन की बात चल रही थी. जब गठबंधन ही नहीं हुआ तो सीट क्यों छोड़ें.

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