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पुस्तक समीक्षा : मेरी धरती, मेरे लोग, आत्मसंवाद की शैली में आमलोगों की बात

कवि शेषेंद्र शर्मा समकालीन भारतीय और विश्व साहित्य के प्रतिष्ठित कवि माने जाते हैं. कवि शेषेंद्र शर्मा के कविता संकलनों का हिंदी अनुवाद किया है कवि अनुवादक ओमप्रकाश निर्मल ने. ‘मेरी धरती मेरे लोग’ मूलत: तेलुगु में प्रकाशित काव्य संग्रह है, जिसे हिंदी में अनुदित किया गया है. लेकिन इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता […]

कवि शेषेंद्र शर्मा समकालीन भारतीय और विश्व साहित्य के प्रतिष्ठित कवि माने जाते हैं. कवि शेषेंद्र शर्मा के कविता संकलनों का हिंदी अनुवाद किया है कवि अनुवादक ओमप्रकाश निर्मल ने. ‘मेरी धरती मेरे लोग’ मूलत: तेलुगु में प्रकाशित काव्य संग्रह है, जिसे हिंदी में अनुदित किया गया है. लेकिन इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कहीं पर भी अनुवादक कवि ने यह एहसास नहीं होने दिया कि पाठक अनुवाद को पढ़ रहा है. अनुवाद शैली इतनी प्रखर है कि भान होता है जैसे आप मूल पाठ ही पढ़ रहे हों.

संग्रह में 17 अध्याय हैं, जिसमें प्रथम अध्याय में शेषेंद्र शर्मा के व्यक्तित्व और रचनाओं के बोर में बताया गया है. दूसरे अध्याय में राजेंद्र कॉलेज छपरा बिहार के प्रोफेसर डॉ केदारनाथ लाभ ने कवि शेषेंद्र के बारे में लिखते हुए उन्हें युग चेतना का दहकता सूरज बताया है. वे कहते हैं -कवि आज के भारत को देखता है. उसे भारत गांवों में बसता दिखता है. कवि उसी भारत को अपनी अनुभूति में समाहित करता है.

कवि लिखते हैं- जो मेरे देश देश के शरीर पर दे दौड़ता

गांवों और बस्तियों से होता हुआ

जलती हुई रक्त नालिका की तरह

बहता है.

वही है मेरा पथ.

संग्रह की भूमिका डॉ विश्वंभरनाथ उपाध्याय ने लिखी है, जो राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हैं. वे लिखते हैं यह अनुदित कृति है. मूलत: तेलुगू में लिखी गयी, लेकिन पढ़ते वक्त मुझे नहीं लगा कि अनुदित कृति पढ़ रहा हूं. वे लिखते हैं ‘मेरी धरती, मेरे लोग’ में नारेबाजी नहीं गोताखोरी है.

कवि शेषेंद्र की तरफ से भी इसमें दो शब्द कहे गये हैं, जिसमें वे संकोच से अपने बारे में बता रहे हैं. वे कहते हैं, मेरी हर रचना ‘ऋतुघोष’ से ‘प्रेमपत्र’ तक एक तरह से आत्मकथा है. वो लिखते हैं मैंने जब भी आवाज उठायी, तो सिर्फ अपने लिए नहीं, तेलुगू जगत के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए उठायी. वे बताते हैं कि ओमप्रकाश निर्मल ने पूरे एक दशक तक मेहनत करके उनकी कविताओं का अनुवाद किया है.

सन 2004 में “मेरी धरती मेरे लोग’ महाकाव्य (तेलुगू) को नोबेल साहित्य पुरस्कार के लिए भारत वर्ष से नामित किया गया था. शेषेंद्र शर्मा की कविताओं की कुछ लोगों ने यह कहकर आलोचना की है कि वे आत्मसंवाद की विधि में लिखी हुई है. बावजूद इसके कवि की निपुणता पर सवाल नहीं उठाया जाता है.

कवि की निपुणता देखें-

मैं स्वेद-बिंदु हूं, मैं लोकबंधु हूं

मैं घना अंधकार पी रहा हूं

उन जंगलो में

जो वेदना से चीखते हैं.

उन पक्षियों के लिए जो लौटे नहीं.

“मेरी धरती मेरे लोग’ संग्रह का प्रकाशन साई लिखिता प्रिंटर्स , हैदराबाद ने किया है. पुस्तक का मूल्य 425 रुपये है.

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