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आया प्यार का मौसम

डॉ कविता विकास स्वतंत्र लेखिका kavitavikas 28@gmail.com वसंत के चढ़ते ही फिजाएं रूमानी होने लगती हैं. रंग-बिरंगे फूल, अधखुली कलियां, हल्की सिहरन बढ़ा देनेवाली हवाएं और नरम- गुनगुनी धूप. प्यार करने के लिए और क्या चाहिए! इसलिए तो पश्चिमी देशों से आया वैलेंटाइन वीक भी इसी महीने में मनाया जाता है. बच्चे की उजली शफ्फाक […]

डॉ कविता विकास
स्वतंत्र लेखिका
kavitavikas 28@gmail.com
वसंत के चढ़ते ही फिजाएं रूमानी होने लगती हैं. रंग-बिरंगे फूल, अधखुली कलियां, हल्की सिहरन बढ़ा देनेवाली हवाएं और नरम- गुनगुनी धूप. प्यार करने के लिए और क्या चाहिए! इसलिए तो पश्चिमी देशों से आया वैलेंटाइन वीक भी इसी महीने में मनाया जाता है. बच्चे की उजली शफ्फाक मुस्कान, मां का निःस्वार्थ प्रेम, दोस्त के आश्वासन, पति का आकर्षण या प्रेमी के उद्गार सभी प्रेम के ही रूप हैं.
प्यार इनसे भी परे पनपता है. धरती के ऊपर आसमां का निहुरना, तपती जमीं पर मेघ-बूंदों का नर्तन, सूखी-सूखी शाखों में धानी-धानी पत्तियों का पुनरागमन, समुद्र की लहरों का पूनम के चांद को देख मचलना या फिर शीतल हवा के मंद झोंकों से आंखों का बंद हो जाना, ये प्यार के ही आयाम हैं. इतना विस्तृत कि कोई छोर नहीं, इतना गहरा कि कोई थाह नहीं. प्यार में दुनिया खूबसूरत हो जाती है.
अल्हड़ भावनाएं परिपक्व हो जाती हैं. प्रेम में दुनिया जीत लेने के भी किस्से हैं और प्राणोत्सर्ग की कथाएं भी़. इसलिए रानी पद्मावती और रानी रूपमती के किस्से अमर हैं. प्रेम जब जुनून बन जाता है तब सांप भी रस्सी-सा दिखाई देता है, वही रस्सी जिसके सहारे कालिदास ने उफनती नदी सहजता से पार कर ली़. प्रिय की चाहत बड़ी बलवती होती है. सबसे अनूठा प्रेम तो उन देशभक्तों का होता है, जो वतन की खातिर अपनी जान न्योछावर कर देते हैं. भक्त और भगवान का प्रेम भी वंदनीय है.
शबरी का निश्छल प्रेम राम को उसके जूठे बेर खाने को बाध्य करता है, तो सुजाता के हाथों खीर खा कर बुद्ध को बोध की प्राप्ति होती है. मीरा और राधा का कृष्ण के प्रति अनुराग किसी से नहीं छुपा है. इस प्रेम की अलख जिसमें जल जाती है, वह भी देवतुल्य हो जाता है. ढाई आखर का यह शब्द इतना बलशाली है कि यह विश्वबंधुत्व और आत्मवत सर्वभूतेषु जैसी व्यापक भावनाओं का अंकुर प्रस्फुटित कर देता है.
वसंत का संबंध प्रेम से है. वसंत यानी नवोन्मेष. अंग्रेजी कैलेंडर का फरवरी माह और हिंदी महीने का वसंत एक ही ऋतु का पर्याय है. इसलिए फरवरी को प्यार का महीना कहा जाता है. बहुत कम लोग प्रेम के क्षण-क्षण को जी पाते हैं.
प्रेम की उदात्त अवस्था यही है, जो धीरे -धीरे देह की परिधि तोड़ कर रूह तक पहुंच जाती है. इतनी गहराई में लोग उतर नहीं पाते. प्रेम के इस तल पर प्रेम असीम सुंदर होता है और परिवर्तनशील भी होता है. परिवर्तन प्रेम के स्थायित्व को लेकर होता है. जिसे अब तक हम प्रेम समझ रहे होते हैं वह विदा होकर अनंत प्रेम बन जायेगा.
कबीर प्रेम को दुरारोह और दुष्प्राप्य मानते हैं. उस तल पर जहां प्रकृति और निवृति, आसक्ति और अनासक्ति, लोक -परलोक एक साथ नहीं चलते, जहां क्षणिक का अंत हो जाता है और संपूर्ण ब्रह्मांड अपना लगने लगता है, वही प्रेम का सर्वोच्च रूप होता है. यानी, व्यक्ति का लोप और ईश्वरत्व का अनुभव. इसलिये कबीर कह गये हैं-‘प्रेम गली अति सांकरी, तामे दोउ न समाहिं.’

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