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आज के युवा और वैलेनटाइन डे

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com आगामी चौदह फरवरी को वैलेनटाइन डे से पहले वैलेनटाइन सप्ताह होता है. सात फरवरी को रोज डे था. प्रेम न बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाय की कहावत अब चरितार्थ नहीं होती. प्रेम खूब बाजार में बिक रहा है. तरह-तरह के उपहारों से दुकानें सजी हैं. कार्ड से लेकर चमकदार […]

क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kshamasharma1@gmail.com
आगामी चौदह फरवरी को वैलेनटाइन डे से पहले वैलेनटाइन सप्ताह होता है. सात फरवरी को रोज डे था. प्रेम न बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाय की कहावत अब चरितार्थ नहीं होती. प्रेम खूब बाजार में बिक रहा है.
तरह-तरह के उपहारों से दुकानें सजी हैं. कार्ड से लेकर चमकदार हीरे, जेवर, कपड़े, मोबाइल, घड़ियां, पर्स, बैग, कारें, बाइक- जिसकी जैसी हैसियत, वह अपने प्रिय को देने के लिए वैसा ही उपहार खरीद रहा है. बहुत से लोग शादी के लिए प्रपोज करने के लिए भी चौदह फरवरी यानी वेलेनटाइन डे को चुनते हैं.
वे दिन अब नहीं रहे, जब प्रेम का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता था. तब लड़कियों के लिए तो प्रेम छिपाने की और लड़कों के लिए ढोल बजा कर बताने की चीज था. प्रेम को तमाम तरह की वर्जनाओं से जोड़ा जाता था और लड़कियों के लिए प्रेम करना किसी अपराध की तरह था. अब तो शहरी मध्यवर्ग में ऐसी वर्जनाएं कम होती जा रही हैं.
एक चलन देखने में आ रहा है कि अगर प्रेम में सफलता नहीं मिली, तो बदला लेना भी आम बात हो गयी है. अकसर प्रेम में असफलता मिलने पर लोग हत्या करने और तेजाब फेंकने जैसे जघन्य अपराध करने से बाज नहीं आते.
बड़ी संख्या में लड़के और लड़कियां भी ऐसे अपराध करने लगे हैं. हाल ही में एक नर्स ने प्रेम में असफल होने पर एक डाॅक्टर पर तेजाब फेंक दिया. इस तरह देखें, तो प्रेम में होनेवाली भावुकता और इमोशनल बांडिंग तिरोहित सी होती जा रही है.
जिस अनुपात में इन दिनों रिश्ते टूट रहे हैं, उन्हें देख कर ताज्जुब होता है. जिससे प्रेम किया, ‘दे लिव्ड एवर आफ्टर’ जैसी भावनाओं को पाला-पोसा, उसी रिश्ते में ऐसा क्या हो गया कि वह कुछ साल या कुछ दिनों में ही टूट गया.
फेसबुक पर आज जो अपनी स्टेटस रिलेशनशिप में दिखा रहा है, कल वही खुद को सिंगल दिखाने लगता है. फिर कुछ दिनों में रिलेशनशिप में आ जाता है. हिंदी फिल्में चाहे इस बात का राग गाती रहें कि प्रेम एक बार ही किया जाता है, लेकिन असली जीवन अब इस बात की गवाही नहीं देता.
इन सब बातों को अगर युवाओं के नजरिये से देखें, तो इसमें कुछ गलत भी नहीं लगता है. अगर किसी से प्रेम किया, लेकिन बाद में लगा कि इससे पटरी नहीं बैठ रही, तो उस बेजान रिश्ते को जीवनभर ढोने से बेहतर है उसे खत्म कर देना. गुमराह फिल्म का गाना- ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों’ आजकल ठीक मालूम देता है.
आज का युवा कोई इमोशनल बैगेज ढोना नहीं चाहता. इसलिए एक रिश्ता टूटने पर थोड़े दिन के बाद अफसोस भी दूर हो जाता है. हो भी क्यों नहीं, आखिर जिंदगी बहुत बड़ी है. कब तक किसी का नाम जप कर कोई जी सकता है.
उसे अतीत को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना ही पड़ता है. देवदास और पारो का युग बीते जमाना हुआ. वेलेनटाइन डे युवा दौर की सच्चाई है. इसे पश्चिमी कह कर खारिज नहीं किया जा सकता. न ही युवाओं को प्रेम के लिए प्रताड़ित किया जाना चाहिए.

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