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लंबी छलांग के लिए बेसिक्स से शुरुआत की जरूरत

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।।विजय बहादुर।।

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हालिया समाप्त हुए पांच टेस्ट मैच क्रिकेट श्रृंखला में इंग्लैंड ने भारत को 4-1 से हरा दिया, जबकि ये माना जा रहा था कि वर्तमान भारतीय टीम विदेशी पिचों पर भी किसी भी टीम को हराने की क्षमता रखती है. अब विदेशी पिचों पर खेलने की क्षमता पर एक्सपर्ट्स और पूर्व क्रिकेट प्लेयर्स सवालिया निशान लगा रहे हैं, लेकिन इस हार के बाद भी एक पहलू जो सकारात्मक नजर आता है, वो है भारतीय तेज गेंदबाजों का शानदार प्रदर्शन.

न सिर्फ इस श्रृंखला में, बल्कि इससे पहले साउथ अफ्रीका में भी भारतीय तेज गेंदबाजों ने बेहतर प्रदर्शन किया था. आज भारत में उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह, इशांत शर्मा, भुनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी और कई अन्य तेज गेंदबाज 140 -145 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गेंदबाजी करते हैं. माइकल होल्डिंग व ग्लेन मैक्ग्रा से लेकर दुनिया के सभी बड़े नाम इस तेज गेंदबाजी अटैक की तारीफ कर रहे हैं.

जमीनी स्तर पर इसका आंकलन करेंगे, तो ये लगेगा कि सभी टीमों में इतनी रफ्तार से गेंदबाजी करनेवाले प्लेयर्स हैं. ये कौन सी बड़ी बात है, लेकिन जब भारत के क्रिकेटिंग इतिहास को खंगालेंगे, तो आज तेज गेंदबाजों की इतनी बड़ी फौज का होना बहुत ही सुखद अनुभूति देता है.
भारत ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया, तो वर्ष 1932 में अमर सिंह और निशार ने गेंदबाजी की कमान संभाली थी. उस समय से लेकर वर्ष 1978 तक भारतीय टीम में कपिलदेव के आने तक शायद ही कोई तेज गेंदबाज था. कपिलदेव को भी विशुद्ध तेज गेंदबाज से ज्यादा स्विंग गेंदबाज माना जाता है.
भारतीय टीम में पहले तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ थे. वो लगातार 140 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गेंदबाजी की क्षमता रखते थे. उसके बाद जहीर खान और आशीष नेहरा टीम में आए. आज 10-15 क्रिकेट खिलाड़ी इस स्तर के गेंदबाज हैं, लेकिन ये कोई एक दिन में नहीं हुआ. शुरुआती दौर से ही ये माना जाता रहा है कि भारत में बेहतर बल्लेबाज होते हैं और पाकिस्तान में बेहतर गेंदबाज. चूंकि पाकिस्तान के लोग आनुवांशिक रूप से शारीरिक तौर से मजबूत कद-काठी के होते हैं और ये सही भी था, क्योंकि भारत में क्रिकेटिंग हीरो सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप वेंगसरकर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, विराट कोहली जैसे बल्लेबाज हुए. उसके बरक्स पाकिस्तान में क्रिकेटिंग हीरो इमरान खान, सरफराज नवाज, वसीम अकरम, वकार यूनुस जैसे गेंदबाज हुए. कोई ये मानने को भी तैयार नहीं था कि भारत में कोई विशुद्ध तेज गेंदबाज भी हो सकता है.
अपनी ऑटोबायोग्राफी में कपिलदेव ने अपने साथ घटी एक बहुत ही दिलचस्प घटना का जिक्र किया है. कपिलदेव जिक्र करते हैं कि वो लगभग 13 साल के होंगे, तो वो एक क्रिकेट कैंप में ट्रायल के लिए गये थे. क्रिकेट कैंप में उन्हें और दूसरे बच्चों को खाने के लिए दो रोटी दी गयी थी. कपिल जिक्र करते हैं कि दो रोटी से उनका पेट नहीं भरता था. उन्होंने कैंप के इंचार्ज को कहा कि मुझे ज्यादा डाइट की जरूरत है, तो इंचार्ज ने पूछा क्यों ? मैंने उन्हें बताया कि मैं एक तेज गेंदबाज हूं. इसलिए मुझे ज्यादा मेहनत करने के कारण ज्यादा खुराक की जरूरत होती है. इंचार्ज ने उपहास के लहजे में कहा कि आजतक तो भारत में तेज गेंदबाज पैदा ही नहीं हुआ, तुम कहां से आ गए ? ये घटना भारत में तेज गेंदबाजी की दयनीय हालत की कहानी बयां करती है.
वर्ष 1987 में चेन्नई में मशहूर ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज डेनिस लिली के नेतृत्व में एमआरएफ फेस फाउंडेशन की स्थापना की गयी. देशभर से टैलेंटेड युवा तेजगेंदबाजों को खोजकर ट्रेनिंग, स्किल डेवलपमेंट, मानसिक और शारीरिक विकास का काम इस अकादमी में किया जाने लगा.
इस अकादमी से भारत सहित दुनिया के कई अन्य देशों के युवा तेज गेंदबाज निखर कर सामने आने लगे. जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद, विवेक राजदान, इरफान पठान, मुनाफ पटेल, श्रीसंत, आरपी सिंह, चामिंडा वास, मिचेल जॉनसन, ग्लेन मैक्ग्रा, ब्रेट ली जैसे बहुत ही बेहतरीन तेज गेंदबाज इस फाउंडेशन से निकले. जिस देश में लोग ये मान कर चल रहे थे कि तेज गेंदबाज होना आनुवांशिक रूप से भी संभव नहीं है, वहां 25 -30 साल में तेज गेंदबाजों की लंबी फौज खड़ी हो गयी.
आइपीएल शुरू होने के बाद हमलोगों ने देखा है कि कैसे नयी-नयी प्रतिभाएं सामने आ रही हैं. भारतीय क्रिकेट नये स्तर तक पहुंच गया है. क्रिकेट को छोड़ दें, तो हाल में संपन्न एशियाई खेलों में भी भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा है. हॉकी, जिसमें भारत का स्तर गिर रहा था, आइसीएल शुरू होने के बाद आज भारत पुनः हॉकी में विश्व स्तर पर शीर्ष पांच देशों में आ गया है.
कहने का आशय है कि सबसे पहले हमें अपनी कमी पहचान कर उससे उबरने के लिए कार्ययोजना बनाने की जरूरत है. रातोंरात सुधार या बेहतरी की उम्मीद बेमानी है. बहुत बड़े बदलाव के लिए बेसिक्स में जाने की जरूरत है. उसपर काम करने की जरुरत है. एक-एक स्टेप आगे बढ़ कर चीजों को उच्चतम स्तर पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए. चीजें रातोंरात बदलने की उम्मीद बेमानी है. विदेशों में चाहे वो खेल का मैदान हो या कोई अन्य क्षेत्र. चीजें सिर्फ इसलिए बेहतर नहीं हैं कि वहां के लोग ज्यादा प्रतिभावान हैं, बल्कि वहां बहुत कम उम्र से ही कोई व्यक्ति अपनी रुचि के हिसाब से क्षेत्र चुन कर कैरियर बनाता है.

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