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विश्व भारती के पूर्व कुलपति, पूर्व निबंधक व अध्यापिका को पांच-पांच साल की सजा

बोलपुर महकमा अदालत ने बुधवार को ही घोषित किया था दोषी जांच के दौरान संबंधित विश्वविद्यालयों ने की थी पुष्टि, गयी थी नौकरी पानागढ़ : फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर नौकरी के मामले में दोषी पाये गये विश्व भारती के पूर्व कुलपति दिलीप सिन्हा, पूर्व निबंधक (रजिस्ट्रार) दिलीप कुमार मुखोपाध्याय और फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर […]

बोलपुर महकमा अदालत ने बुधवार को ही घोषित किया था दोषी

जांच के दौरान संबंधित विश्वविद्यालयों ने की थी पुष्टि, गयी थी नौकरी

पानागढ़ : फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर नौकरी के मामले में दोषी पाये गये विश्व भारती के पूर्व कुलपति दिलीप सिन्हा, पूर्व निबंधक (रजिस्ट्रार) दिलीप कुमार मुखोपाध्याय और फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर नौकरी लेनेवाली मुक्ति देवी को बोलपुर महकमा अदालत ने गुरुवार को पांच-पांच वर्ष कारावास की सजा सुनायी. बुधवार को तीनों को कोर्ट ने दोषी करार दिया था. न्यायाधीश अरविंद मिश्र ने तीनों दोषियों को सजा सुनायी.

15 वर्ष पुराना है मामला :

गौरतलब है कि यह मामला 15 वर्ष पुराना है. 1996 में विश्व भारती प्रशासन ने अनुसूचित जाति-जन जाति संवर्ग से व्याख्याता की नौकरी के लिए विज्ञप्ति जारी की थी. मुक्ति देवी ने नौकरी के लिए आवेदन किया था. नियोजन प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें नौकरी दे दी गयी थी.

वर्ष 2000 में उन्होंने पीएचडी के लिए आवेदन जमा किया. विश्व भारती के संबंधित अधिकारी ने उससे संबंधित सर्टिफिकेट की मांग की. कुछ समय के बाद मुक्ति देवी ने अपना आवेदन वापस ले लिया. इससे संबंधित अधिकारी को संदेह हुआ तथा उन्होंने इसकी शिकायत कुलपति से की. तत्कालीन कुलपति ने इसकी जांच के आदेश दिये. जिन यूनिवर्सिटी से मुक्ति देवी ने सर्टिफिकेट लिया था, उन्होंने उन्हें स्नातक में अनुतीर्ण तथा स्नातकोत्तर में पढ़ाई न करने की जानकारी दी.

इस रिपोर्ट के आने के बाद पूरे मामले की जांच के लिए एकल कमेटी गठित की गयी. कमेटी ने सर्टिफिकेट को फर्जी बताते हुए पूरी नियोजन प्रक्रिया पर ही सवाल उठाया. कमेटी ने नियोजन से जुड़े तत्कालीन कुलपति तथा निबंधक के खिलाफ भी कार्रवाई की अनुशंसा कर दी. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद मुक्ति देवी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद इस मामले में स्थानीय थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. पुलिस ने जांच कर इस मामले में तीनों के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र जमा किया.

कोर्ट में चली लंबी सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने तीनों को दोषी करार दिया था. अतिरिक्त लोक अभियोजक ने बताया कि तीनों पर आइपीसी की धारा 467/467/468/469/471/474 के तहत मामला दायर किया गया था. तीनों अभियुक्तों को पांच-पांच वर्ष की सजा सुनायी गयी है. इस दौरान कोर्ट परिसर में उपस्थित तीनों के परिजनों के आंखों मे आंसू आ गये. परिजनों ने कहा कि वे इस निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगे. सजा के बाद कोर्ट ने सभी दोषियों को जेल भेज दिया.

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