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तला-भुना और सिका

अक्सर हम तली-भुनी चीजों को चटखारे लेकर खाते हैं. अब सवाल उठता है कि क्या खाद्य पदाथों को तल, भून या सेक देने से उनका स्वाद बढ़ जाता है? नहीं. इस बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत… इस बारे में दो राय नहीं कि तले व्यंजन चाहे कितने ही स्वादिष्ट […]

अक्सर हम तली-भुनी चीजों को चटखारे लेकर खाते हैं. अब सवाल उठता है कि क्या खाद्य पदाथों को तल, भून या सेक देने से उनका स्वाद बढ़ जाता है? नहीं. इस बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
इस बारे में दो राय नहीं कि तले व्यंजन चाहे कितने ही स्वादिष्ट क्यों न हों, अंततः हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह ही होते हैं. हमारे पुरखे भले ही कटोरा भर घी पी लेते रहे हों, अब उस तरह की वर्जिश वाली जिंदगी हमारी नहीं है और न ही तेल-घी या दूसरी कोई चिकनाई मिलावट से मुक्त समझे जा सकते हैं.
इसलिए भुने-सिके व्यंजनों की तरफ खाने के शौकीनों का ध्यान जाने लगा है. हकीकत यह है कि चिकनाई के अभाव में हमारी जीभ कुछ स्वाद महसूस ही नहीं कर सकती और न ही खानेवाले को तृप्ति का एहसास होता है.
अब सवाल यह उठता है कि क्या भुने और सिके खाद्य पदार्थ वास्तव में पौष्टिक तथा निरापद समझे जा सकते हैं? क्या तले व्यंजनों की पारंपरिक पाकविधि को इस तरीके से बिना बेस्वाद बनाये तैयार किया सकता है?
हमारे जिन मित्रों ने समोसे केक की तरह सेक कर (बेक कर) बनाने की कोशिश की है, वे खुद अपनी पीठ चाहे जितनी थपथपा लें, लेकिन मेहमानों को संतुष्ट करने में पूरी तरह कामयाब नहीं हुए हैं. पकौड़ों वाले प्रयोग तो और भी दिल तोड़नेवाले साबित हुए हैं. ‘एयर फ्रायर’ जैसे मंहगे उपकरण भी एक सीमा तक ही उपयोगी नजर आते हैं.
हां, जब पराठे तवे की जगह तंदूर में पकाये जाते हैं, तब शिकायत करनेवालों की तादाद बहुत बड़ी नहीं होती. इसी तरह तंदूरी चाट के नाम पर जो भुनी सब्जियां या चटपटे पनीर के टिक्के सीकों से बिंधे निकलते हैं, अनायास मुंह में पानी भर देते हैं. संक्षेप में इस निष्कर्ष तक पहुंचने में जल्दबाजी न करिये कि सिर्फ तला भोजन ही स्वादिष्ट हो सकता है.
हमारा मानना है कि भारतीय खानपान में पकाने की सभी विधियों का संतुलित प्रयोग होता रहा है, किंतु हाल के वर्षों में भुने, सिके तथा उबले व्यंजनों की नाजायज उपेक्षा होने लगी है. जरा याद करें कि आलू-कचालू की चाट या पिंडी चने उबले होने पर भी कितने मजेदार यानी जायकेदार होते हैं.
असलियत यह है कि खाने के बुनियादी स्वाद नमकीन, मीठा, खट्टा, कड़वा, तीखा, कसैला तलने-भूनने या सिकाई पर निर्भर नहीं होते, बल्कि अपना जादू जगाते हैं मिठास, खटास, कड़वाहट, कसैलापन या नमकीन, तीखापन महसूस करनेवाले पदार्थों, मसालों, फलों वनस्पतियों की मदद से.
विडंबना यह है कि मसाले के नाम पर मिर्च, धनिया, जीरा, हल्दी ने अपना साम्राज्य इस कदर फैला रखा है कि ‘काली कमली पर चढ़े न दूजा रंग’ वाले अंदाज में किसी और मसाले को स्वाद मंच पर उतरने ही नहीं देते.
बहुत हुआ तो अनेक मसालों का गरम मसाले या चाट-तंदूरी मसाले सरीखा मिश्रण सभी व्यंजनों को एक ही स्वाद के रंग में रंग देता है. हमारी जीभ जिस स्वाद को चखती है, उसको जीवनदान देती है गंध. यही वजह है कि जुकाम लगने पर सारा खाना हमें फीका लगने लगता है.
नमक और चीनी की तानाशाही तो और भी जबर्दस्त है. हमको इनकी ऐसी आदत पड़ गयी है कि फलों-सब्जियों के कुदरती जायके हम भुला चुके हैं. चाय-कॉफी हो या फिर दूध-दही-छाछ, नमक या चीनी के बिना ये हमारे गले के नीचे नहीं उतरते. सौंफ, जावित्री-जायफल जैसे सौम्य मसालों पर नमक मिर्च चीनी या कृत्रिम खटास अनायास छा जाती है.
यह याद दिलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि खाने या पेय का तापमान भी उसके स्वाद को प्रभावित करता है. अपने खान-पान का भरपूर और स्वास्थ्यप्रद आनंद लेने के लिए तले की बैसाखी को छोड़ दें, तो बेहतर है!
रोचक तथ्य
भारतीय खानपान में पकाने की सभी विधियों का संतुलित प्रयोग होता रहा है, किंतु हाल के वर्षों में भुने, सिके तथा उबले व्यंजनों की नाजायज उपेक्षा होने लगी है.
खाने के बुनियादी स्वाद नमकीन, मीठा, खट्टा, कड़आ, तीखा, कसैला तलने-भूनने या सिकाई पर निर्भर नहीं होते, बल्कि अपना जादू जगाते हैं मिठास, खटास, कड़आहट, कसैलापन या नमकीन, तीखापन महसूस करनेवाले पदार्थों, मसालों, फलों वनस्पतियों की मदद से.

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