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आख़िर राजू सेठ को ग़ुस्सा क्यों आता है?

हम अक्सर बातचीत में कहते हैं कि नाम में क्या रखा है, नाम से होता क्या है. लेकिन कुछ की ज़िंदगी नाम के कारण कैसे बदल जाती है ये राजू सेठ की कहानी बताती है. बिहार के रोहतास ज़िले के न्यू सिंघौली इलाके के राजू सेठ बिना किसी अपराध के बस नाम की ग़फ़लत के […]

हम अक्सर बातचीत में कहते हैं कि नाम में क्या रखा है, नाम से होता क्या है. लेकिन कुछ की ज़िंदगी नाम के कारण कैसे बदल जाती है ये राजू सेठ की कहानी बताती है.

बिहार के रोहतास ज़िले के न्यू सिंघौली इलाके के राजू सेठ बिना किसी अपराध के बस नाम की ग़फ़लत के कारण न केवल जेल जा चुके हैं बल्कि अभी भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने को मजबूर हैं.

वाक़या साल 2015 के 26 दिसंबर की शाम पांच बजे के करीब का है. राजू सेठ अपने ठेले पर अंडे के कारोबार में लगे थे कि डालमियानगर पुलिस उनके पास आ धमकी.

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राजू नाम के कारण ग़फ़लत

राजू बताते हैं, "पुलिस जब पहुंची हम तब प्याज़ छील रहे थे. पुलिस ने पहले नाम पूछा और फिर उन लोगों ने चलने को कहा तो मैंने मना कर दिया. इसके बाद पुलिस ने कहा कि आपके ऊपर केस है, आपका बेल टूटा हुआ है."

राजू सेठ को पता था कि उनके ही इलाके के एक राजू गुप्ता पर सड़क दुर्घटना से जुड़ा मामला चल रहा है और उसकी मौत भी एक दूसरे सड़क हादसे में हो चुकी है.

ऐसे में राजू सेठ ने कहा, "जिनका केस है उनको हम जानते हैं. वे मर चुके हैं. आप जांच कर लीजिए."

लेकिन राजू के मुताबिक पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी.

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पुलिस ने नहीं सुनी दलील

राजू सेठ के मुताबिक पुलिस ने अदालत के काग़जों से उनके नाम का न मिलान किया, न ही उनसे उनके पहचान का कोई कागज़ मांगा. पुलिस ने उनकी कोई दलील भी नहीं सुनी.

26 दिसंबर का दिन शनिवार का था. इसके बाद राजू सेठ ने दो दिन हवालात में काटे. सोमवार 28 दिसंबर को उन्हें जेल भेज दिया गया.

नए साल का स्वागत उन्होंने जेल में किया और फिर मोहल्ले के लोगों की मदद से 2016 के सात जनवरी को ज़मानत पर छूटे.

राजू के पड़ोसी सुरेश ने उन्हें जेल से बाहर निकालने में मदद की थी.

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दोनों के पिता का नाम भी एक

राजू सेठ 26 दिसंबर, 2015 के वाक़ये को कुछ इस तरह याद करते हैं, "राजू की गिरफ्तारी के बाद मैंने राजू गुप्ता और राजू सेठ के मामले के बारे में पता किया और थाने पर गया. वहां मैंने कहा कि राजू गुप्ता अलग हैं और आपने जिसे गिरफ्तार किया है वह राजू सेठ हैं. राजू गुप्ता मर चुके हैं इसलिए मामले की जांच के बाद जो करना है करें."

सुरेश आगे बताते हैं, "ऐसा कहने पर भी थाने से जवाब मिला कि नाम, पता और पिता का नाम मिल रहा है इसलिए हम इनको जेल भेजेंगे."

राजू की परेशानी भरी कहानी का एक इत्तेफ़ाक यह भी है कि दोनों राजू के पिता का भी नाम श्याम लाल है.

राजू गुप्ता का घर राजू सेठ के घर से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर है. वहां उनकी पत्नी बबीता देवी और भाई कृष्णा गुप्ता से मुलाकात होती है. कृष्णा भी पेशे से ड्राइवर हैं.

कृष्णा बताते हैं, "राजू सेठ ने आकर अपनी परेशानी बताई थी. इसके बाद मेरे भाई के साले सुबोध कुमार ने उनका मृत्यु प्रमाण पत्र कोर्ट में जमा करवा दिया है."

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ग़ैर-ज़मानती वॉरंट

राजू गुप्ता पर एक सड़क हादसे के सिलसिले में 13 सितंबर, 2014 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे.

इस हादसे से जुड़े मामले में वह एकाध बार कोर्ट में हाज़िर भी हुए.

लेकिन जब वह लगातार अदालत से ग़ैर-हाज़िर रहने लगे तो कोर्ट ने उनके ख़िलाफ नवंबर 2015 में ग़ैर-ज़मानती वॉरंट जारी कर दिया गया.

पुलिस ने इसी वॉरंट के आधार पर राजू गुप्ता की जगह राजू सेठ को गिरफ्तार कर लिया था.

जबकि राजू गुप्ता तो इस कारण अदालत नहीं पहुंच पा रहे थे क्योंकि 2015 के 14 अप्रैल को एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो चुकी थी.

कर्ज़ में डूब गए राजू सेठ

इस कोर्ट-कचहरी के चक्कर में राजू सेठ कर्ज़ में डूब गए हैं. बीते करीब डेढ़ साल में इन्हें लगभग बीस बार अदालत के चक्कर काटने पड़े हैं.

राजू के मुताबिक एक बार सासाराम कोर्ट जाने में करीब पांच सौ रुपए खर्च हो जाते हैं. पहले वह दिन में गाड़ी चलाने का काम भी कर लेते थे लेकिन ये काम अब छूट गया है.

वह कहते हैं, "हम डिस्टर्ब हैं. बच्चों की पढ़ाई छूट गई. एक बेटा हमारे चलते होटल में झूठा धोने लगा तो एक ईंट भट्ठे पर काम करने को मजबूर है. पत्नी को भी अब दूसरे के घरों में काम करना पड़ता है. गाड़ी चलाने के लिए बैठते हैं तो कांपने लगते हैं. हम अब गाड़ी नहीं चला पाते. माथा काम नहीं करता है."

बिखर गए सपने

राजू के सपने कई थे लेकिन अब वो भी बिखर गए हैं.

राजू कहते हैं, "बढ़िया से काम-धाम चल रहा था. लड़कों को पढ़ा-लिखा के दर-दुकान करा देना चाहते थे. किसी के लिए चाय की दुकान तो किसी के पान की गुमटी शुरू करने का मन था. उसमें ही हम भी लगे रहते. अब सब चौपट हो गया. लगता है अब कुछ नहीं कर पाएंगे."

ज़िला पुलिस देर से ही सही राजू सेठ की मुश्किलों को दूर करने के लिए हरकत में आई है.

डेहरी अनुमंडल के पुलिस उपाधीक्षक अनवर जावेद कहते हैं, "इस मामले से संबंधित सीनियर अफसरों की चिट्ठी आई है. हम जांच-पड़ताल कर रहे हैं. इस मामले में अगर किसी पुलिस अधिकारी की लापरवाही सामने आती है तो उन पर कार्रवाई होगी."

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