एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को अपने अध्यक्ष पद को छोड़ने की घोषणा की, जिसके बाद से भारतीय राजनीतिक जगत में कयासों का दौर जारी है. कहीं अगले एनसीपी चीफ को लेकर चर्चा हो रही है तो कोई पवार के इस कदम मास्टरस्ट्रोक बता रहा है, मगर पवार के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन को अध्ययन किये बिना उनके द्वारा उठाए गए इस कदम का आकलन नहीं हो सकता
शरद पवार महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश के बड़े नेताओं में से एक हैं. महज 27 साल की उम्र में शरद पवार विधायक बन गए थे. उनका सियासी सफर 50 साल से भी ज्यादा का है. शरद पवार के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव हैं, मगर पवार कभी हारते हुए नहीं दिखे. उन्होंने भारतीय राजनीति में जो रुतबा हासिल किया है वो हर किसी के लिए संभव नहीं, यही वजह है की विरोधी भी उनका नाम सम्मान से लेते हैं.
शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को पुणे के बारामती में हुआ था. उनके पिता एक कोऑपरेटिव सोसायटी में वरिष्ठ पद पर थे. मां स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने वाली वह इकलौती महिला थीं. पूर्व क्रिकेटर सदाशिव शिंदे की बेटी प्रतिभा शरद पवार की पत्नी हैं. एक इंटरव्यू में प्रतिभा ने बताया था कि शादी से पहले शरद पवार ने एक ही संतान पैदा करने की शर्त रखी थी. 1967 से 90 तक शरद बारामती सीट पर काबिज रहे, उसके बाद से यह सीट उनके भतीजे अजित पवार के पास है. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले साल 2009 से बारामती की सांसद हैं.
शरद पवार ने बेहद कम उम्र में ही राजनीति में अच्छी पकड़ बना ली थी. जब वह 27 साल के थे, तब पहली बार विधायक चुन लिए गए थे. साल 1967 में वह पहली बार विधायक चुने गए. इसके बाद शरद पवार सियासत की बुलंदियों तक पहुंचे. सियासत में उनके शुरुआती संरक्षक तत्कालीन दिग्गज नेता यशवंत राव चव्हाण थे.
आपातकाल के दौरान शरद पवार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बगावत कर दी. इंदिरा से बगावत करने के बाद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी. साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई. राज्य के मुख्यमंत्री बने. साल 1980 में इंदिरा सरकार की जब वापसी हुई तो उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. तब 1983 में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन किया. उस साल हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार पहली बार बारामती से चुनाव जीते लेकिन साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को मिली 54 सीटों पर जीत ने उन्हें वापस प्रदेश की राजनीति की ओर खींच लिया. शरद पवार ने लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व किया.
साल 1987 में वो वापस अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में वापस आ गए. तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. पवार उन दिनों राजीव गांधी के करीबी बन गए. पवार को साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिली. चव्हाण को साल 1988 में केन्द्र में वित्त मंत्री बनाया गया. 1990 के विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में 141 पर कांग्रेस की जीत पाई लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाने में कामयाब रहे. इसके साथ पवार तीसरी बार सीएम बनने में कामयाब रहे.
बात साल 1991 की है. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई. देशभर में अजीब स्थिति थी. प्रधानमंत्री पद को लेकर चर्चा होने लगी. तब शरद पवार का नाम उन तीन लोगों में आने लगा, जिन्हें कांग्रेस के अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था. पवार के अलावा इस दौड़ में नारायण दत्त तिवारी और पी वी नरसिम्हा राव शामिल थे. नारायण दत्त तिवारी साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार की वजह से पीएम बनने से रह गए. ये मौका दूसरे सीनियर नेता पी वी नरसिम्हा राव को मिल गया जबकि शरद पवार को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली. लेकिन फिर शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति के लिए वापस भेजा गया.
ये बात है साल 1998 की. मध्यावधि लोकसभा चुनाव के बाद शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए, लेकिन साल 1999 में जब 12वीं लोकसभा भंग हुई तो शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए. पवार और कुछ अन्य नेता नहीं चाहते थे कि विदेशी मूल की सोनिया पार्टी का नेतृत्व करें. सोनिया का विरोध करने के चलते पार्टी से उन्हें निष्कासित कर दिया गया. कांग्रेस से निष्कासन के बाद शरद पवार ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया.
शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर पार्टी जरूर बनाई लेकिन साल 1999 के महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जनादेश न मिलने पर कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार भी बना ली. साल 2004 से साल 2014 तक पवार लगातार केंद्र में मंत्री रहे. साल 2014 का लोकसभा चुनाव शरद पवार ने ये कहकर नहीं लड़ा कि वो युवा नेतृत्व को पार्टी में आगे लाना चाहते हैं.
शरद पवार के नाम महाराष्ट्र का सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है. वह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. पवार 2005 से 2008 तक बीसीसीआई के चेयरमैन रहे और 2010 में आईसीसी के अध्यक्ष बन.
शरद पवार ने कैंसर से जंग जीती शरद पवार ने कैंसर से जंग जीती है. एक टीवी चैनल में पवार ने बताया कि 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें कैंसर का पता चला था. इलाज के लिए न्यूयॉर्क गए. वहां के डॉक्टरों ने भारत के ही कुछ एक्सपर्ट्स के पास जाने को कहा. तब कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने 36 बार रेडिएशन का ट्रीटमेंट लिया.