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स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होने वाली दूसरी शादी को पहली शादी के संतानों ने बताया अवैध, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

शादी के 13 साल बाद जिसमें एक मुस्लिम महिला ने हिंदू पुरुष से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दूसरी शादी की थी, पति की मौत के बाद उसके बच्चों ने यह दावा किया है कि उसके पिता की दूसरी शादी वैध नहीं थी क्योंकि उनकी सौतेली मां ने अपने पहले पति से तलाक नहीं लिया था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सामने यह बड़ा सवाल है कि क्या स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी होती है तो बच्चों को उस शादी पर आपत्ति जताने का हक है या नहीं.

शादी के 13 साल बाद जिसमें एक मुस्लिम महिला ने हिंदू पुरुष से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दूसरी शादी की थी, पति की मौत के बाद उसके बच्चों ने यह दावा किया है कि उसके पिता की दूसरी शादी वैध नहीं थी क्योंकि उनकी सौतेली मां ने अपने पहले पति से तलाक नहीं लिया था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सामने यह बड़ा सवाल है कि क्या स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी होती है तो बच्चों को उस शादी पर आपत्ति जताने का हक है या नहीं.

याचिकाकर्ता के अनुसार, विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) पति-पत्नी को सामाजिक दबाव से बचाने के लिए है, इसलिए अधिनियम विशेष रूप से कहता है कि विवाह के पंजीकरण के बाद केवल दो व्यक्ति पति-पत्नी ही इस पर आपत्ति कर सकते हैं.

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ के समक्ष गुरुवार को सुनवाई याचिका में संपत्ति के उत्तराधिकार का मुद्दा उठाया गया.

यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के सामने 2016 में तब आया था जब 2015 में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने वाले पुरुष की मौत हो गयी और संपत्ति विवाद में उसके बच्चे कोर्ट पहुंचे और अपने पिता की दूसरी शादी को यह कहते हुए अवैध बताया कि उनकी सौतेली मां ने पहले पति से तलाक नहीं लिया था.

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महिला के तरफ से उपस्थित वकील का कहना है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत जो शादी होती है, उसकी वैधता पर सवाल उठाने का हक बच्चों को नहीं है. वहीं बच्चों की तरह से उपस्थित वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह विवाह नहीं था क्योंकि महिला ने अपने पति को कानूनी तरीके से तलाक नहीं दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर विचार करने के लिए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही यह तय हो पायेगा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होने वाली शादियों पर बच्चों को आपत्ति करने का हक है या नहीं.

Posted By : Rajneesh Anand

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