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भारत बना दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश

भारत इस वर्ष चीन को पीछे छोड़ दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जायेगा. संयुक्त राष्ट्र ने अब इस पर मुहर लगा दी है. इस वर्ष एक जुलाई या उससे पहले ही भारत की आबादी चीन से अधिक हो जायेगी. यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश की युवा व कामकाजी आबादी की संख्या बच्चों व बुजुर्गों से अधिक है.

आरती श्रीवास्तव

अब तक यह अनुमान जताया जा रहा था कि भारत इस वर्ष चीन को पीछे छोड़ दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जायेगा. संयुक्त राष्ट्र ने अब इस पर मुहर लगा दी है. इस वर्ष एक जुलाई या उससे पहले ही भारत की आबादी चीन से अधिक हो जायेगी. यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश की युवा व कामकाजी आबादी की संख्या बच्चों व बुजुर्गों से अधिक है. यह एक अनूठी स्थिति है, जिसका भारत को लाभ मिलेगा. भारत के सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बनने में नवजात मृत्यु दर में कमी समेत तमाम कारणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. भारत की आबादी से जुड़े विभिन्न आयामों के बारे में जानिए…

संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक जनसंख्या के हालिया आकलन व अनुमान के अनुसार, जनसंख्या के मामले में भारत जल्द ही चीन से आगे निकल जायेगा. इस अनुमान के मुताबिक, अप्रैल 2023 में भारत की आबादी चीन के बराबर हो जायेगी और इस वर्ष एक जुलाई तक या उससे पहले यह चीन से आगे निकल जायेगी. संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार, एक जुलाई, 2023 को भारत की आबादी 1.429 अरब हो जायेगी, जो चीन से लगभग 30 लाख, (2.9 मिलियन) अधिक होगी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की आबादी में अभी कई दशक तक वृद्धि जारी रहेगी.

संयुक्त राष्ट्र के हालिया अनुमानों से पता चलता है कि भारत की जनसंख्या 2064-65 तक अपने चरम आकार पर पहुंच जायेगी और उसके बाद धीरे-धीरे इसमें कमी आनी शुरू होगी. जबकि चीन की जनसंख्या 2022 से गिरावट की ओर अग्रसर है. अनुमानों से संकेत मिलता है कि चीन की जनसंख्या में यह गिरावट जारी रहेगी और इस शताब्दी के अंत से पहले तक यह घटकर एक अरब से नीचे पहुंच सकती है. यहां यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि भारत भले ही इस वर्ष दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जायेगा, पर उसका अर्थ यह नहीं है कि देश में बड़ी संख्या में बच्चों का जन्म हो रहा है. आंकड़ों से पता चलता है कि देश की जनसंख्या वृद्धि दर में कई वर्षों से गिरावट दर्ज होती आ रही है.

प्रजनन दर में आयी है कमी

भारत के कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर)) की यदि बात करें, तो 1950 में जहां यह 5.73 थी, वह इस सहस्त्राब्दी के आरंभ में 3.30 पर पहुंच गयी और इस वर्ष यह गिरकर दो पर आ गयी. जो प्रतिस्थापना प्रजनन स्तर (रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी लेवल) 2.1 से भी कम हैं, जो लंबी अवधि में जनसंख्या को स्थिर करने के लिए जरूरी स्तर है. प्रजनन दर में यह गिरावट दुनिया के कई देशों में देखने में आयी है. यह बात भी महत्वपूर्ण है कि घटते प्रजनन दर के बावजूद देश की कुल आबादी में वृद्धि हो रही है. यह इस बात का संकेत है कि नवजात व शिशुओं के म‍ृत्यु दर में कमी आयी है. यह इससे भी इंगित होता है कि भारत में जन्म पर जीवन प्रत्याशा 1950 के 41.72 से बढ़कर 2023 में 72.5 पर पहुंच गयी है. प्रजनन दर में कमी का अर्थ यह भी है कि अब लोगों पर, विशेषकर महिलाओं पर अधिक बच्चे को जन्म देने का दबाव नहीं है. जो बताता है कि अब लोग अपने स्वयं के प्रजनन जीवन पर नियंत्रण रखने का निर्णय लेने में सक्षम हो रहे हैं.

जनसंख्या बढ़ने के कुछ प्रमुख कारण

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (एचएमएनएस) की 2021-22 की रिपोर्ट कहती है कि देश में नवजात मृत्यु दर (28 दिन तक की उम्र के बच्चे), शिशु मृत्यु दर (एक वर्ष से कम उम्र के बच्चे) और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी आ रही है. भारत की जनसंख्या में बढ़ोतरी के लिए ये तीनों कारण प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं. इस रिपोर्ट की मानें, तो 2012 में जहां देश में प्रति हजार बच्चों पर नवजात मृत्यु दर 29 थी, वह 2020 में घटकर 20 पर आ गयी. वर्ष 2012 में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार बच्चों पर 42 थी, वह 2020 में 28 पर आ गयी. वहीं, प्रति हजार बच्चों पर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर जहां 2012 में 52 थी, वह 2020 में कम होकर 32 पर आ गयी.

दुनिया के कई देशों में घटी है जनसंख्या दर

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि केवल भारत ही नहीं, बल्कि 1970 के दशक से ही दुनिया के कई देशों की जनसंख्या दर में कमी आयी है, लेकिन प्रवासन के कारण इसमें अभी भी बढ़त जारी है. और सभी आबादी बुजुर्ग हो रही है. जिसका अर्थ है कि दीर्घायु लोगों की संख्या बढ़ रही है, और इसका स्वागत किया जाना चाहिए.

भारत की औसत आयु 28 हुई

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि प्रजनन दर में कमी और जीवन प्रत्याशा में बढ़त ने भारत की औसत आयु को भी बढ़ा दिया है. पर इसके बावजूद भी, तुलनात्मक रूप से देश की औसत आयु अभी भी काफी युवा है.

देश की आबादी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • 68 प्रतिशत है भारत की कुल जनसंख्या में 15 से 64 आयु वर्ग के लोगों की हिस्सेदारी. आमतौर पर इस आयु वर्ग को किसी भी देश की कामकाजी आबादी माना जाता है.

  • 26 प्रतिशत है देश में 10 से 24 वर्ष के लोगों की संख्या.

  • 25 प्रतिशत है 0 से 14 आयु वर्ग के लोगों की संख्या, देश की कुल

  • आबादी में.

  • 18 प्रतिशत हिस्सेदारी है 10 से 19 आयु वर्ग के लोगों की देश की जनसंख्या में.

  • 7 प्रतिशत है 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या देश में.

  • 71 वर्ष है नवजात (पुरुष) के जीने की संभावना (लाइफ एक्सपेक्टेंसी एट बर्थ), जबकि 74 वर्ष है एक नवजात (महिला) के जीवित रहने की संभावना.

  • 24 प्रतिशत है वैश्विक स्तर पर 10 से 24 आयु वर्ग की आबादी, 8,045 मिलियन की वैश्विक जनसंख्या में.

भारत-चीन में बढ़ रही है बुजुर्ग लोगों की संख्या

भारत और चीन दोनों ही देशों में बुजुर्ग लोगों की संख्या बढ़ रही है. यह वृद्धि बीती शताब्दी के मध्य के आसपास जनसंख्या में बढ़त से जुड़ी है, क्योंकि उस समय जन्मे लोग अब बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो रहे हैं. और मृत्यु दर में कमी आने के कारण अधिक लोगों के लंबी उम्र तक जीने की संभावना है. वर्ष 2023 से 2050 के बीच 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों की संख्या चीन में दोगुनी और भारत में दोगुनी से अधिक हो जाने की संभावना है. निःसंदेह ही इससे स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक बीमा प्रणालियों के लिए चुनौती पैदा होगी.

चीन की तुलना में भारत में बूढ़े होने की गति धीमी

रिपोर्ट में इस बात की संभावना भी जतायी गयी है कि 2040 तक चीन में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या 25 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों को पार कर जायेगी और 2050 तक यह आबादी कुल आबादी का 30 प्रतिशत हो जायेगी. जापान और दक्षिण कोरिया भी अपनी आबादी के तेजी से बुजुर्ग होने के अनुभव से गुजर चुके हैं, पर चीन की तुलना में उनकी आर्थिक वृद्धि कहीं अधिक रही है. पर संभावना है कि इस मामले में भारत की स्थिति चीन से भिन्न रहेगी. देश की बुजुर्ग आबादी का अनुपात कामकाजी आबादी से कम रहने की उम्मीद जतायी जा रही है. जो इंगित करता है कि भारत की आबादी के बूढ़े होने की गति चीन की तुलना में धीमी है.

सबसे बड़ी युवा शक्ति का लाभ उठा सकता है देश

संयुक्त राष्ट्र की मानें, तो चूंकि भारत के पास सबसे बड़ा युवा सूमह है, ऐसे में देश के 254 मिलियन (15 से 24 आयु वर्ग के) युवा देश को नवाचार, नयी सोच और स्थायी समाधान दे सकते हैं. यदि महिलाएं और लड़कियों को विशेषकर समाज शिक्षा और कौशल विकास का अवसर मिले, तकनीक और डिजिटल नवाचार तक उनकी पहुंच सुनिश्चित हो और सबसे महत्वपूर्ण है कि यदि उन्हें यह अधिकार मिले कि वे बच्चे को जन्म देने का निर्णय खुद ले सकें, तो स्थिति और भी बेहतर हो सकती है. इतना ही नहीं, इस समय देश में 25 से 64 वर्ष की उम्र के वयस्कों की संख्या 25 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और युवा से लगभग 20 प्रतिशत अधिक है. देश के कामकाजी उम्र के वयस्कों की संख्या में इस वृद्धि के जारी रहने का अनुमान है. यह स्थिति निश्चित तौर पर भारत के श्रम बल को मजबूती देगी, जिससे आर्थिक विकास को गति मिलेगी.

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