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रेमन मैगसेसे पुरस्कार विजेता टीएम कृष्णा और बेजवाड़ा विल्सन की शख्सीयत से जुड़े अहम तथ्य

नयी दिल्ली : वर्ष 2016 के रेमन मैगसेसे पुरस्कार की घोषणा हो चुकी है. पुरस्कार पाने वालों की सूची में इस बार दो भारतीय कर्नाटक संगीतकार टीएम कृष्णा और सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन शामिल हैं.इस पुरस्कार के लिए दो भारतीयों के अलावा चार अन्य को चुना गया है जिनमें फिलीपीन के कोंचिता कार्पियो-मोरैल्स, इंडोनेशिया के […]

नयी दिल्ली : वर्ष 2016 के रेमन मैगसेसे पुरस्कार की घोषणा हो चुकी है. पुरस्कार पाने वालों की सूची में इस बार दो भारतीय कर्नाटक संगीतकार टीएम कृष्णा और सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन शामिल हैं.इस पुरस्कार के लिए दो भारतीयों के अलावा चार अन्य को चुना गया है जिनमें फिलीपीन के कोंचिता कार्पियो-मोरैल्स, इंडोनेशिया के डोंपेट डुआफा, जापान ओवरसीज कोऑपरेशन वालंटियर एवं लाओस के ‘‘वियंतीएन रेसेक्यू’ शामिल हैं.

40 वर्षीय कृष्णा चेन्नई में पैदा हुए हैं और उन्हें यह पुरस्कार संस्कृति में सामाजिक समग्रता सुनिश्चित करने के लिए मिला है. उन्होंने अपनी कला से भारतीय समाज में व्याप्त विभाजन को भरने का प्रयास किया और जाति तथा वर्ग के भेद को तोड़कर इस बात को स्थापित करने की कोशिश की कि संगीत सिर्फ एक आदमी के लिए नहीं सबके लिए है.

वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन की पहचान बोर्ड और ट्रस्टियों ने एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की है जिसने मानव जीवन में गरिमा को स्थापित करने पर जोर दिया. उन्होंने अपनी नैतिक ऊर्जा का उपयोग भारत में दलितों की स्थिति में सुधार के लिए किया. उन्होंने अपमानजनक मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन और दलितों को प्राकृतिक जन्मसिद्ध अधिकार दिलाने के लिए जमीनी स्तर पर लड़ाई लड़ी. 50 साल के विल्सन पिछले 32 साल से अपनी मुहिम चला रहे हैं. भारत में अनुमानित 600,000 मैला ढोने वाले हैं जिनमें से 300,000 के आसपास को उन्होंने मुक्त कराया है.

50 वर्षीय विल्सन के प्रशंसात्मक उल्लेख में कहा गया है, ‘‘मैला ढोना एक वंशानुगत पेशा है और 1,80,000 दलित घर भारत भर में 7,90,000 सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत शुष्क शौचालयों को साफ करते हैं, मैला ढोने वालों में 98 प्रतिशत महिलाओं एवं लड़कियों को बहुत मामूली वेतन दिया जाता है. संविधान एवं अन्य कानून शुष्क शौचालयों और लोगों से मैला ढोने पर प्रतिबंध लगाते हैं लेकिन इन्हें लागू नहीं किया गया है क्योंकि सरकार ही इनकी सबसे बडी उल्लंघनकर्ता है.’ विल्सन का जन्म एक ऐसे दलित परिवार में हुआ जो कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड्स कस्बे में मैला ढोने का काम करता था. वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य हैं.
स्कूल में उनके साथ एक बहिष्कृत की तरह व्यवहार किया जाता था. अपने परिवार की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ बेजवाडा के मन में बहुत गुस्सा था लेकिन उन्होंने बाद में अपने इस गुस्से का इस्तेमाल मैला ढोने के उन्मूलन की मुहिम चलाने में किया.’

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