शैलपुत्री दुर्गा का ध्यान
वन्दे वांछित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाले, वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा को वंदना करता हूं.
आदिशक्ति दुर्गा की महिमा – 1
भगवती दुर्गा पराम्बा महेश्वरी जगजननी जगदीश्वरी भवानी की महिमा अचित्रय, अपार और नितांत अभेद्य है. उनकी कृपा से ही उनके स्वरूप का ही नहीं, उनके रूप का भी परिज्ञान संभव है. देवताओं ने भगवती दुर्गाके स्वरूप के संबंध में कहा कि आप ही सबकी आधारभूता हैं, यह समस्त जगत् आपका अंशभूत है, क्योंकि आप सबकी आदिभूता अव्याकृता परा प्रकृति हैं. श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णन है-
"सर्वाश्रयारिवत्रमिदं जगदंशभूत-
मव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्लमाद्या।"
वे परमकरुणामयी एवं कल्याणस्वरूपिणी शिवा हैं. वे ही भगवती दुर्गा महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी हैं, वे पर और अपर से परे रहनेवाली परमेश्वरी हैं. शास्त्रों के अनुसार समस्त विश्व का उद्भव, धारण और लभ महाशक्ति दुर्गा के द्वारा तथा शक्ति में ही होता है. दूसरे शब्द में कहा जा सकता है-"समस्त विश्व महाशक्ति का ही विकास है. "चिति स्वत्रंतता विश्व सिद्धिहेतो" का भी यही तात्पर्य है. देवी भागवत में स्वयं देवी कहती हैं-"सर्वे रवल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्।" अर्थात् "समस्त विश्व मैं ही हूं, मुझसे भित्र सनातन या अविनाशी तत्व दूसरा कोई नहीं है." दुर्गा के विषय में प्राणाधिक रहस्य में कहा है- लक्ष्य करने योग्य मायारूप है-अलक्ष्य ब्रह्मरूप है, इस प्रकार भगवती अभयस्वरूपा है- माया शवल ब्रह्मरूपा है.
(क्रमश:)
प्रस्तुति : डॉ. एन. के. बेराशारदीय नवरात्र : पहला दिन