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दक्षिण भारत में समुद्र के औसत जलस्तर,प्लेट टेक्टोनिक्स का होगा अध्ययन

नयी दिल्ली : भारत के दक्षिण सागरीय क्षेत्र में समुद्र के औसत जलस्तर, प्लेट टेक्टोनिक्स के सही आकलन के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के समविभव क्षेत्र (जियोआयड लो) का अध्ययन किया जायेगा. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक अधिकारी ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान समुद्र के औसत तल, प्लेट टेक्टोनिक्स का […]

नयी दिल्ली : भारत के दक्षिण सागरीय क्षेत्र में समुद्र के औसत जलस्तर, प्लेट टेक्टोनिक्स के सही आकलन के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के समविभव क्षेत्र (जियोआयड लो) का अध्ययन किया जायेगा.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक अधिकारी ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान समुद्र के औसत तल, प्लेट टेक्टोनिक्स का सही आकलन के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के समविभव क्षेत्र (जियोआयड लो) का अध्ययन किया जायेगा.’’ अधिकारी ने कहा कि यह मूलत: समुद्र के गहरे तल में पृथ्वी की संरचना और भूगर्भीय गतिविधियों का भी अध्ययन होगा. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के समविभव क्षेत्र (जियोआयड लो) के बारे में विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों में एक राय नहीं है, इसी को ध्यान में रखते हुए वैश्विक स्तर पर चर्चा में रहे इस विषय की बारीकियों की पड़ताल करने का निर्णय किया गया है.

समुद्र तल, संसाधनों एवं अन्य गतिविधियों के अध्ययन के लिए सरकार ने ‘समुद्र चलित शोध पोत’ खरीदने का निर्णय किया है. अधिकारी ने बताया कि इस उद्देश्य के लिए कुछ ही दिन पहले संसद में अनुदान की मांग के तहत धनराशि मंजूरी की गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के समविभव क्षेत्र (जियोआयड लो) विज्ञान में शोध का नया विषय है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तल के मुख्य आवरण में दबाव का क्षेत्र बनने के कारण पैदा होता है जबकि दूसरा विचार यह है कि तल के उपरी आवरण के घनत्व में अंतर के कारण ऐसा होता है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल के गुरुत्व मॉडलों और उपग्रह आधारित अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कई वैश्विक भूगर्भीय गतिविधियों के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के समविभव क्षेत्र (जियोआयड लो) के तरंगदैध्र्य का लम्बा होना अहम बताया गया है. लेकिन इसका कोई ठोस एवं सत्यापित कारण सामने नहीं आया है. इसी को ध्यान में रखते हुए यह अध्ययन किये जाने फैसला किया गया है.

इस परियोजना के तहत अंडमान से सुमात्रा तक के क्षेत्र के बारे में अध्ययन किया जायेगा. इसके साथ ही 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत जीवाश्म भूकंप विज्ञान के तहत विगत में हुए भूकंप के समय, विकास एवं उससे जुड़ी अन्य गतिविधि का अध्ययन करने की योजना बनाई गई है.

हिमालयी क्षेत्र में जीवाश्म भूकंप विज्ञान के तहत अध्ययन का मुख्य जोर विगत में प्लेटों के उथल पुथल और इससे जुड़े फॉल्टों, भूंकपीय स्नेत क्षेत्र होगा जिसके माध्यम से भूकंप के आकार और इसके कारण आने वाली विकृतियों का अनुमान लगाया जायेगा. इसके तहत भूगर्भ भौतिकी तकनीकी का उपयोग करके शैलों एवं चट्टानों एवं अन्य विकृतियों एवं बदलाव का अध्ययन करके भूकंप का अनुमान लगाया जायेगा.

वैज्ञानिकों का कहना है कि जब एक हजार, दस हजार या एक लाख साल पहले के काल के बारे में अध्ययन किया जाता है तब भूगर्भशास्त्री यह देखते हैं कि चट्टानों की रुपरेखा कैसी है, किस तरह से मुड़ी हुई है, किस ओर घुमी हुई है, किस तरह के परिवर्तन सामले आए हैं. इन्हीं विश्लेषनों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि उस काल में क्या हुआ होगा. जीवाश्म भूकंप विज्ञान अध्ययन में इन्हीं तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.

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