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मुकदमों के बोझ से दबी सरकार मंत्रालयों में करेगी विधि अधिकारी की नियुक्ति

नयी दिल्ली : सबसे ज्यादा मुकदमों में वादी रहने वाली सरकार ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का फैसला किया है जो सुनिश्चित करेंगे कि केवल अंतिम रास्ते के तौर पर ही अदालतों का रुख किया जाए और जिन मामलों में जीतने की संभावना बहुत कम हैं, उन्हें अदालतों में नहीं […]

नयी दिल्ली : सबसे ज्यादा मुकदमों में वादी रहने वाली सरकार ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में विधि अधिकारियों को नियुक्त करने का फैसला किया है जो सुनिश्चित करेंगे कि केवल अंतिम रास्ते के तौर पर ही अदालतों का रुख किया जाए और जिन मामलों में जीतने की संभावना बहुत कम हैं, उन्हें अदालतों में नहीं ले जाया जाए.

पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की 2010 की राष्ट्रीय मुकदमा नीति की समीक्षा कर रही नरेंद्र मोदी सरकार ने नये मामले दायर करते समय या लंबित मामलों में बचाव करने के दौरान मुकदमेबाजी पर समग्र दृष्टिकोण के लिए प्रत्येक केंद्रीय विभाग में विधि अधिकारी नियुक्त करने की पेशकश की है.
नयी नीति के पीछे सोच यह है कि अदालत का रुख केवल तब किया जाए जब सरकार यह मान ले कि मुकदमा ही एकमात्र जरिया है. सरकार के जिस मामले में जीतने के आसार बेहद कम होंगे उन मामलों में आगे नहीं बढा जाएगा. सरकार जिन मामलों में एक पक्ष है, उनमें अधिकतर सेवा विवादों और अप्रत्यक्ष करों से संबंधित हैं. मसौदा नीति में कहा गया है अदालतों में लंबित मामलों के साथ ही राजस्व पर भी बोझ बढता है, साथ ही सार्थक प्रशासन से सरकार का ध्यान भी बंटता है.मुकदमों का आधिकारिक आंकडा उपलब्ध नहीं है लेकिन विधि मंत्रालय का मानना है कि उच्च न्यायपालिका में 46 प्रतिशत मामलों में सरकार वादी है. 2010 में उच्चतम न्यायालय में 57,179 मामले और 2011 के अंत तक 24 उच्च न्यायालयों में 42,17,903 मामले लंबित थे.
अंतिम विधि और कार्मिक पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में विधि सचिव पी के मल्होत्रा को उद्धृत किया है कि सरकार को विभिन्न अदालतों और न्यायाधिकरणों में सबसे बडा वादी माना जाता है.
कमेटी ने मल्होत्रा के हवाले से कहा है, इस छवि को बदलने के लिए सरकार एक नई नेशनल लिटिगेशन पॉलिसी यानि राष्ट्रीय मुकदमा नीति का प्रस्ताव ला रही है जिसमें विभाग के भीतर हरेक अदालती मामले या आदेश पर सूक्ष्मता से गौर किया जाएगा कि मामले में मुकदमा किया जाए या विभाग को अदालती फैसला स्वीकार कर लेना चाहिए और उसका क्रियान्वयन करना चाहिए. मंत्रालय में सूत्रों ने कहा है कि मसौदा नीति जल्द ही सचिवों की कमेटी को भेजी जाएगी जो प्रस्ताव पर विस्तार से विचार करेंगे. इसके बाद मंत्रियों का एक अनौपचारिक समूह नीति पर अंतिम निर्णय लेगा और इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय कैबिनेट को भेजा जाए

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