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कोल ब्लॉक:केंद्र-सीबीआइ आमने-सामने!

नयी दिल्ली:कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला में सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की इजाजत के सवाल पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) और केंद्र में टकराव की सी स्थिति बनती दिख रही है. सीबीआइ ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसे इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों पर मुकदमा दायर करने के लिए सरकार की […]

नयी दिल्ली:कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला में सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की इजाजत के सवाल पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) और केंद्र में टकराव की सी स्थिति बनती दिख रही है. सीबीआइ ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसे इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों पर मुकदमा दायर करने के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है. इसके विपरीत केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा था कि भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरण में न्यायालय की निगरानीवाले मामलों में भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ जांच के लिए पहले अनुमति लेना अनिवार्य है.

सीबीआइ ने छह पृष्ठ के हलफनामे में दावा किया है कि कोर्ट की निगरानीवाले मामलों में केस दायर करने के लिए सरकार से मंजूरी या पहले अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है. ब्यूरो ने 2जी स्पेक्ट्रम प्रकरण में शीर्ष अदालत के निर्णय का हवाला दिया है, जिसमें सरकार के लिए अन्य मामलों में भी मुकदमा चलाने की अनुमति देने हेतु समय सीमा निर्धारित की गयी है. हलफनामे के अनुसार, ‘कोर्ट की निगरानीवाले मामलों में अदालतें नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनेवाले या अभिभावक के रूप में काम करती हैं. ऐसे मामलों में कानून की धारा 6-ए के तहत प्रदत्त संरक्षण का उद्देश्य पहले ही हासिल कर लिया गया होता है. इसलिए ऐसे मामलों में सरकार से पहले मंजूरी लेना जरूरी नहीं है.’ सीबीआइ ने कहा कि इसके अलावा धारा 6-ए की कोई अन्य व्याख्या इसे निर्थक बना देगी, क्योंकि इससे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा और यह उस मकसद को ही निष्पफल कर देगी, जिसके लिए इस धारा को शामिल किया गया है.

आंतरिक व विशेष वकील से तथ्य साझा करने की अनुमति मांगी

जांच एजेंसी ने एक अन्य अर्जी में शीर्ष अदालत से कोयला खदान आवंटन घोटाला प्रकरण में अपने आंतरिक और विशेष वकीलों से तथ्यों को साझा करने की अनुमति मांगी है, क्योंकि फाइनल रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए ऐसे मामले के सारे तथ्यों पर वकीलों व अभियोजकों के साथ विचार-विमर्श की जरूरत है. एजेंसी ने कहा है कि अभियोजकों और विशेष वकीलों के नाम सीलबंद लिफाफे में 29 अगस्त तक न्यायालय को सौंप दिये जायेंगे. कोर्ट ने आठ मई को सीबीआइ को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि जांच के विवरण किसी भी व्यक्ति या मंत्री सहित किसी प्राधिकारी या विधि अधिकारी और सीबीआइ के वकीलों के साथ साझा नहीं किये जायें.

सीबीआइ ने मांगे 236 दस्तावेज,189 उपलब्ध नहीं

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया कि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने 236 दस्तावेज मांगे थे. इनमें से 189 ‘उपलब्ध’ नहीं हैं. कोयला मंत्रलय ने शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा है कि किसी भी फाइल या दस्तावेज की अनुपलब्धता के बारे में ‘जांच और समीक्षा’ के लिए अंतर मंत्रलयीन समिति गठित की गयी है. यह समिति एक महीने के भीतर इन फाइलों को खोजने के लिए उचित कार्रवाई के बारे में सुझाव देगी. हलफनामे में गुमशुदा दस्तावेजों का विवरण देते हुए मंत्रलय ने कहा है कि कोयला खदान आवंटियों और आवेदकों की सात फाइलें, 173 आवेदन और नौ अन्य दस्तावेजों की यह खोज कर रही है. हलफनामे के अनुसार 43 फाइलों में से 21 सीबीआइ को पहले ही सौंपी जा चुकी हैं. इसके अलावा 15 फाइलें जांच ब्यूरो को सौंपने के लिए उपलब्ध है और सीबीआइ से कहा गया है कि वह इन्हें एकत्र कर लें. शेष सात फाइलों को खोजने के प्रयास जारी हैं. हलफनामे के अनुसार, अब तक सीबीआइ को जांच के लिए मूल 769 फाइलें, दस्तावेज और दूसरे कागजात दिये जा चुके हैं. इनमें 497 फाइलें, 163 आवेदन, 40 कार्यसूची के कागजात, 10 फीडबैक फॉर्म पुस्तिका और 33 अन्य दस्तावेज शामिल हैं. इसी तरह जांच एजेंसी को 26 सीडी भी उपलब्ध करायी गयी हैं.

हलफनामे में क्या

_दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेंट कानून की धारा 6-ए और भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 19 के बारे में शीर्ष अदालत के फैसलों में स्पष्ट है कि यदि कोर्ट के निर्देश पर या न्यायलाय की निगरानी हो रही है, तो ऐसे मामले में मुकदमा चलाने के लिए अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है.

_पहले मंजूरी लेने की अवधारणा के पीछे नौकरशाहों को ‘दुर्भावनापूर्ण व परेशान करने वाली जांच’ की ‘धमकी’ और ‘अपमान’ से संरक्षण प्रदान करने का मकसद है. इसका मतलब प्रकरण की जांच की निगरानी करने के न्यायालय के अधिकार को निलंबित करना होगा.

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