नयी दिल्ली: संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित ‘धर्मनिरपेक्ष और सामजवादी’ शब्दों पर बहस करने की जरुरत बताने संबंधी एक केंद्रीय मंत्री के बयान पर लोकसभा में विपक्ष ने कडी आपत्ति जताई, हालांकि सरकार ने इन दोनों शब्दों को हटाने के किसी प्रस्ताव से इंकार किया.
कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में शून्यकाल में यह मुद्दा उठाया. इसके साथ ही उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के मदर टेरेसा के बारे की गई विवादास्पद टिप्पणी को भी उठाना चाहा लेकिन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने इसकी अनुमति नहीं दी.
सिंधिया ने कहा कि केंद्रीय मंत्री ‘‘रविशंकर प्रसाद ने हाल में संविधान की प्रस्तावना पर बहस की जरुरत बताई थी और शिवसेना ने भी उसका समर्थन किया था. उच्चतम न्यायालय कई बार कह चुका है कि ये शब्द संविधान का अभिन्न अंग हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम मंत्री के बयान की निंदा करते हैं और सरकार से इस बारे में स्पष्टीकरण चाहते हैं.’’
संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने हालांकि कहा कि संविधान की प्रस्तावना संबंधी बयानों से सरकार का कुछ लेना देना नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘ सरकार की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं है. 1976 में जो समावेश किया गया था उसमें किसी तरह के परिवर्तन का कोई सवाल नहीं है.’’गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रकाशित विज्ञापनों में मूल प्रस्तावना में शामिल उक्त दो शब्दों को प्रकाशित नहीं करने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि इसके कोई अर्थ नहीं निकाले जाने चाहिए.
विपक्षी सदस्यों ने भागवत द्वारा मदर टेरेसा के बारे में की गई कथित टिप्पणी को भी उठाने की जोरदार कोशिश की लेकिन अध्यक्ष ने इसे खारिज करते हुए कहा, ‘‘संस्थान की ओर से प्रतिक्रिया देने के लिए कोई नहीं है. मेरे भी कुछ अधिकार हैं. मैं अनुमति नहीं दे रही हूं.’’