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दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों पर प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक अनुज कुमार सिन्हा की त्वरित टिप्पणी

– अनुज कुमार सिन्हा- दिल्ली चुनाव का परिणाम भाजपा के लिए सबक है. एक माह पहले तक दिल्ली में भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में थी लेकिन एक माह में भाजपा तीन-चार सीट पर (जो भी अंतिम आंकड़ा आये) सिमट गयी. यह सही है कि इस चुनाव में केजरीवाल का जादू चला. दिल्ली के मतदाताओं […]

– अनुज कुमार सिन्हा-

दिल्ली चुनाव का परिणाम भाजपा के लिए सबक है. एक माह पहले तक दिल्ली में भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में थी लेकिन एक माह में भाजपा तीन-चार सीट पर (जो भी अंतिम आंकड़ा आये) सिमट गयी. यह सही है कि इस चुनाव में केजरीवाल का जादू चला. दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा की अपेक्षा केजरीवाल पर ज्यादा भरोसा किया. भाजपा ने पूरी ताकत लगायी थी, अपने दिग्गजों को मैदान में उतारा था, उसके बाद भी बुरी हार हुई. इसके पीछे बड़ा कारण है पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं-नेताओं पर भरोसा नहीं करना.

भाजपा की जिन लोगों ने 20-30 सालों से सेवा की, उनपर भरोसा नहीं कर किरण बेदी को मैदान में उतारना महंगा पड़ा. भाजपा में किसी में हिम्मत नहीं है कि वह नेतृत्व के निर्णय पर सवाल उठाये. अंदर ही अंदर भाजपा नेताओं में आग सुलग रही थी. भले ही इन नेताओं ने विरोध नहीं किया लेकिन यह भी सत्य है कि पूरे मन से काम नहीं किया. हो सकता है कि किरण बेदी की जगह किसी और नेता को उतारा होता तो भी केजरीवाल की ही जीत होती, लेकिन शायद इतनी बड़ी जीत नहीं होती.

इस बात को मानना होगा कि केजरीवाल और आप ने गरीब तबके के लोगों में बड़ी जगह बनायी. लोगों को यह बताने में आप सफल रही कि वह जनता की पार्टी है. झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवालों के बीच जा कर जिस तरीके से केजरीवाल और आप के नेता-कार्यकर्ताओं ने समय बिताया, उनके सुख-दुख में शामिल हुए, उससे आप का जनाधार मजबूत हुआ. दिल्ली की जनता पानी-बिजली के संकट से जूझ रही है. बस्तियों में तो और भी बुरा हाल है.

केजरीवाल दिल्ली के मतदाताओं में यह मैसेज भेजने में सफल रहे कि भाजपा कारपोरेट घरानों के करीब है और अगर भाजपा सत्ता में आती है तो दिल्ली की जनता की समस्याओं का हल नहीं निकल सकता. भाजपा के नेता जमीनी हकीकत को पहचान नहीं सके. चुनाव प्रचार के दौरान जिस भाषा का प्रयोग भाजपा के नेताओं ने किया, उससे भी उसे घाटा ही हुआ.

70 में 65-66 सीट (जो भी अंतिम आंकड़ा आये) जीतना ऐसी जीत है जो विरले मिलती है. बिहार में चुनाव होने हैं. भाजपा के लिए चिंतन का वक्त है. लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा का महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में जो विजय अभियान चल रहा था, उस पर रोक लग गयी है. भाजपा नेताओं को यह देखना होगा कि उसकी कौन सी आदत जनता पसंद नहीं कर रही है. बिहार में राजनीतिक संकट जितना लंबा चलेगा, भाजपा उतनी ही बदनाम होगी.

बेहतर होगा कि भाजपा आत्ममंथन करे और कमियों को पहचाने, उसे दूर करे.आयातित नेता भाजपा का कल्याण नहीं कर सकते. भाजपा के पास ऐसे हजारों नेता हैं, जो किनारे पड़े हैं. ऐसे समर्पित नेताओं को सही जगह पर बैठा कर, जिम्मेवारी सौंप कर, उन पर भरोसा कर ही पार्टी का कल्याण हो सकता है. दिल्ली का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए आइ-ओपनर साबित हो सकता है.

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