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तेजाब पीड़ितों को अब भी राहत का इंतजार

नयी दिल्ली : तेजाब पीड़ितों ने तेजाब फेंके जाने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए हाल ही में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है लेकिन उनका कहना है कि इसमें उनके लिए राहत वाली वह बात नहीं है जिसका उन्हें अपने लिए इंतजार है.राजधानी में शाहदरा के अशोक नगर में रहने […]

नयी दिल्ली : तेजाब पीड़ितों ने तेजाब फेंके जाने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए हाल ही में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है लेकिन उनका कहना है कि इसमें उनके लिए राहत वाली वह बात नहीं है जिसका उन्हें अपने लिए इंतजार है.राजधानी में शाहदरा के अशोक नगर में रहने वाली तेजाब पीड़ित रेणु ने भाषा से कहा ‘‘न्यायालय के फैसले में भविष्य वाली बात है. पर हमें क्या मिलेगा, इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है. मेरी 8 सजर्री हो चुकी हैं और अभी यह सिलसिला जारी रहेगा. मुझ पर 15 फरवरी 2006 को तेजाब फेंका गया था. तब मैं 19 साल की थी. मेरे लिए समय ठहर सा गया है. कह नहीं सकती कि आगे के इलाज के लिए पैसा कहां से आएगा. आगे मेरी जिम्मेदारी कौन उठाएगा.’’

गैर सरकारी संगठन ‘स्टॉप एसिड अटैक’ के कैम्पेन कोऑर्डिनेटर आशीष शुक्ला ने कहा ‘‘न्यायालय के फैसले में 3 लाख रुपये के मुआवजे का प्रावधान है. लेकिन यह भावी मामलों के लिए है. जो पीड़ित हैं, जिनका जीवन तेजाब के कारण तहसनहस हो चुका है, उनके लिए फैसले में अभी कुछ नहीं कहा गया है. सजर्री पर हुआ खर्च, भविष्य की योजना और काउंसलिंग आदि वह जरुरी बातें हैं जो पीड़ितों के जीवन से जुड़ी हैं.’’कॉस्मेटिक विशेषज्ञ डॉ सुरुचि पुरी ने कहा ‘‘ऐसे लोगों की सजर्री का सिलसिला लंबा चलता है और अगर तेजाब अंदर तक जा चुका हो तब तो घाव भरने में ही काफी समय लग जाता है. एंटीबायोटिक्स की हाई डोज से लेकर लेजर से उपचार तक की प्रक्रिया बहुत खर्चीली होती है.’’उन्होंने बताया ‘‘तेजाब डलने के बाद त्वचा पूरी तरह विकृत हो जाती है और पीड़ित अपना चेहरा देख ही कर दहल जाता है. इसके अलावा नाक, कान, होंठ, पलकें आदि की नाजुक त्वचा तेजाब से बहुत कस जाती है जिसे सामान्य करना जरुरी होता है. तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाएं तो काम करना बंद कर देती हैं.’’

रेणु के कान और आंख की तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं. वह कहती है ‘‘डॉक्टरों के अनुसार, शायद मेरी एक आंख की रोशनी ठीक हो जाए लेकिन इसकी उम्मीद 50 फीसदी ही है. अभी मेरे लिए बाहर निकलना मुश्किल है क्योंकि मामूली सी धूप में भी त्वचा में जलन होने लगती है. पहले तो गर्दन भी नहीं घुमा सकती थी. लेकिन अभी भी कड़ापन महसूस होता है.’’ रेणु को याद है कि उसके मकान में किराये पर रहने वाले व्यक्ति ने तीन माह का किराया नहीं दिया था. पिता के किराया मांगने पर उस व्यक्ति ने कहा कि वह 15 फरवरी को किराया दे देगा. ‘‘पिता ड्यूटी पर चले गए और मैं आंगन में भैंस को नहला रही थी. अचानक वह व्यक्ति एक मग ले कर पास आया और मुझ पर तेजाब फेंक कर भाग गया. मैं भी जली और भैंस भी जल गई.’’

छत्तीसगढ़
के भिलाई में रह रही एक तेजाब पीड़ित मनीषा की मां ने बताया ‘‘एक बार मनीषा की सजर्री सिर्फ इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि उसके पिता दुर्घटना में घायल हो गए थे और उनके इलाज पर बड़ी रकम खर्च हो गई. मैंने अपने गहने बेच दिए थे लेकिन पूरी रकम नहीं जुट पाई. नतीजा, मेरी बेटी के घावों में पस गया और डाक्टरों ने कहा कि उसे सेप्टीसेमिया (रक्त में संक्रमण) भी हो सकता है.’’

उन्होंने बताया ‘‘मनीषा की 16 सजर्री हो चुकी हैं लेकिन डाक्टरों के अनुसार अभी और सजर्री होगी. उसकी शादी तो अब नहीं हो सकती. जब तक हम हैं, उसके लिए करेंगे लेकिन हमारे बाद उसका क्या होगा? 22 सितंबर 1997 को हुए हादसे के बाद उसका चेहरा इतना विकृत हो चुका है कि वह न बाहर निकलना चाहती है और न ही कुछ करना चाहती है. अगर सरकार से कुछ मदद मिल जाती तो शायद कोई रास्ता भी मिलता.’’

रेणु ने कहा ‘‘जिंदगी नर्क से बदतर हो चुकी है. न तो मैं देख सकती हूं और न ही मुङो ठीक से सुनाई देता है. पांच भाई बहनों के परिवार में मैं सबसे बड़ी हूं. इलाज कराते कराते हमारी जमीन, मकान सब कुछ बिक गया. दो छोटी बहनें केवल इसलिए नहीं पढ़ पाई क्योंकि मेरे इलाज पर खर्च हो रहा था और मेरी देखभाल करनी थी. मैं चल भी नहीं सकती थी. आज चल सकती हूं लेकिन भविष्य अंधकारमय है. अगर न्यायालय इस बारे में सोचे तो.’’

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