मयाली ( उत्तराखंड ) : प्रकृति की विनाशलीला ऐसी थी कि किसी को प्रतिवाद का मौका तक नहीं मिला और लोग काल के गाल में समाते चले गये.
लेकिन भयंकर बाढ़ और यमदूत की तरह दनदना कर गिरते विशाल पहाड़ों के मलबे के बीच गोपाल प्रजापति उन 11 लोगों के लिए एक नायक बनकर उभरे जिन्होंने न केवल उन्हें तूफानी नदियों से निकाला बल्कि प्रकृति के आगे घुटने टेकने को तैयार लोगों को जिंदगी के लिए संघर्ष करने को प्रेरित किया.
गुप्तकाशी से लौटते हुए गोपाल की बस एक धूलभरे रास्ते पर संकरी सड़क पर रोक दी गयी. बस के भीतर करीब 35 यात्री थे और सभी 60 की उम्र के महिला और पुरुष थे. यह बस उन्हें ऋषिकेश लेकर जाने वाली थी. बस में सवार कोई भी यात्री गोपाल के 40 तीर्थयात्रियों के उस समूह का हिस्सा नहीं था जो कुछ दिन पहले केदारनाथ के लिए निकला था.
प्रजापति ने बताया कि उनके समूह के केवल 15 यात्री जिंदा बचे. मध्य प्रदेश के शाहजहांपुर जिले से यह समूह उस दिन केदारनाथ में ही था जब प्रकृति ने कहर ढाना शुरु किया था.
जब पहाड़ के ऊपर से पहली बार मलबा गिरना शुरु हुआ तो 40 लोगों का यह समूह दो हिस्सों में बंट गया. इनमें से कुछ लोग प्रजापति के समूह में थे. कुछ ही मिनटों में विनाशलीला शुरु हो गयी. लेकिन प्रजापति ने हिम्मत का परिचय देते हुए ठाठे मारते नदी के पानी में से 11 बुजुर्गो को अपनी गोदी में उठाकर नदी पार करायी और उन्हें ऊंचे स्थान पर ले गए.
लेकिन दो महिलाएं उनकी आंखों के सामने नदी के तेज बहाव में बह गयीं. प्रजापति ने बताया, तीसरी महिला को हमें पीछे छोड़ना पड़ा. वह मर गयी थी. वह संकट को झेल नहीं पायी , बीमार पड़ गयी और विपदा के तीसरे दिन उसने मेरी गोदी में दम तोड़ दिया. इन लोगों ने उसी दिन केदारनाथ छोड़ दिया. वह 18 जून का दिन था.
वापसी के दौरान उन्हें अपने 40 लोगों के समूह में से बिछुड़े तीन लोग मिल गए. प्रजापति ने बताया, बादल फटने के बाद , हम दो दिन तक केदारनाथ के आसपास के जंगलों में रहे. पहला दिन तो केवल शरण लेने के लिए किसी सूखे और सुरक्षित स्थान की खोज में निकल गया. लेकिन छुपने के लिए कोई जगह नहीं मिली. इन लोगों ने एक दिन और इंतजार किया. गीली जमीन पर बैठे रहे और लगातार हो रही बारिश में भीगते रहे. लेकिन विपत्ति का यहीं अंत नहीं था.
प्रजापति ने बताया, हम कुदरत के रहम पर थे कि उसी दौरान कुछ लोग वहां आए. ये तीर्थयात्री नहीं थे बल्कि चाकुओं से लैस गुंडे थे. उन्होंने मुझसे 25 हजार रुपये नकद छीन लिए. उन्होंने बाकी बुजुर्गो को भी लूटा. आपबीती सुनाते हुए प्रजापति की आंखों से आंसू लुढ़क पड़े जिन्हें वह इतनी देर से रोकने का प्रयास कर रहे थे.
केदारनाथ से निकल कर इन लोगों को पैदल ही जंगलों से राह बनाते हुए सोनप्रयाग पहुंचने में छह दिन लगे. लेकिन छह दिन की यह यात्रा भी कोई आसान नहीं थी.
प्रजापति ने बताया, हम एक दुकान पर पहुंचे जिसके आगे बरामदा था. उसी समय बारिश शुरु हो गयी. हमने वहां रुककर बारिश के बंद होने का इंतजार करने का फैसला किया. लेकिन दुकान पर मौजूद लोगों ने कहा कि उस बरामदे में रुकने के लिए हर व्यक्ति को 300- 300 रुपया देना पड़ेगा.
प्रजापति के एक साथी ने आरोप लगाया, सरकार को केदारनाथ के आसपास ऐसे दुकानदारों के लाइसेंस रद्द कर देना चाहिए. ये सब अपराधी हैं. प्रजापति ने कहा कि जो लोग जिंदा बच गए , उनके जिस्म पर केवल कपड़े थे लेकिन इस हालत में भी उन्हें निशाना बनाया गया. इसी आपबीती को सुनाए जाने के दौरान प्रजापति की बस चालू हो गयी. कुछ स्वयंसेवकों ने उन्हें खाने के पैकेट और पानी की बोतलें दीं.
प्रजापति ने कहा, मैं ऋषिकेश जा रहा हूं. मैं इस जगह को जितना जल्द हो सके , छोड़ देना चाहता हूं. प्रजापति को लेकिन हो सकता है कि अभी उत्तराखंड में कुछ दिन और रुकना पड़े. उनके भाई अपने समूह के लापता लोगों की तलाश में मदद करने के लिए गुप्तकाशी में उनके साथ शामिल हुए हैं. प्रजापति ने कहा कि वह अभियान में मदद करने के लिए वापस आएंगे. उन्होंने कहा, मुझे नहीं पता कि बाकी लोग कहां हैं. मेरे साथ जो लोग हैं , मैं उन्हें ऋषिकेश छोडूंगा और उसके बाद फिर मदद के लिए लौटूंगा. मैं लोगों को इस तरह छोड़कर नहीं जा सकता.