मुंबई : महाराष्ट्र में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बने देवेन्द्र फडणवीस ने एक सामान्य कॉरपोरेटर से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर कड़ी मेहनत से तय किया है. ऐसी चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फडणवीस को सत्ता की सीढ़ी चढ़ने में मदद की है.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी प्रमुख अमित शाह ने उनके संगठनात्मक कौशल को लेकर पार्टी के उनके वरिष्ठ नेताओं की तुलना में उन्हें तरजीह दी है.
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले 44 वर्षीय फडणवीस ने लंबे समय तक प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी जैसे दिग्गज नेताओं के सानिध्य में काम किया है. फडणवीस की आरएसएस में गहरी जडे हैं. महाजन और मुंडे की असमय मृत्यु ने, जबकि गडकरी के राष्ट्रीय मंच पर आ जाने से प्रदेश में पार्टी के नेतृत्व में एक शून्य पैदा कर दिया था लेकिन इससे युवा नेता के लिए महाराष्ट्र के सत्ता के केंद्र मंत्रालय तक के सफर की नयी राह भी खुली.
मराठा राजनीति और मराठा नेताओं के वर्चस्व वाले इस राज्य में चौथी बार विधायक बने फडणवीस भाजपा से अलग हो चुके सहयोगी दल शिवसेना के मनोहर जोशी के बाद ऐसे दूसरे ब्राह्मण नेता हैं जो मुख्यमंत्री बने हैं. वह मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने वाले राकांपा प्रमुख शरद पवार के बाद दूसरे सबसे युवा नेता भी हैं.
विधानसभा चुनाव में भाजपा के सबसे बडे दल के रुप में उभरने के बाद मृदुभाषी और युवा नेता फडणवीस इस शीर्ष पद के लिए स्पष्ट रुप से पसंदीदा नेता थे जिनके लिए पार्टी की प्रदेश कमेटी के कई नेताओं ने काफी लॉबिंग की थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के मजबूत समर्थन से वह सदा ही इस मुकाम तक पहुंचने के लिए निश्चिंत नजर आए.
चुनाव रैली में मोदी ने उनके लिए कहा था कि, देवेन्द्र देश के लिए नागपुर का तोहफा हैं. हालांकि, मोदी ने लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान अमेरिकी तर्ज पर चुनाव प्रचार किया था पर इनमें मिली जबरदस्त जीत का श्रेय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष फडणवीस को भी जाता है. शिवसेना और स्वाभिमानी शेतकारी पक्ष के साथ इस भगवा गठबंधन ने 48 लोकसभा सीटों में 42 पर जीत हासिल की थी.
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिवसेना से नाता टूटने के बावजूद भाजपा ने 288 सदस्यीय सदन में 122 सीटें हासिल की जबकि 2009 में उसे 46 सीटें ही मिली थीं. हालांकि, विधायक गोविंद राठौड की मृत्यु के बाद सदन में उसके 121 सदस्य ही रह गए हैं. संघ प्रचारक और भाजपा से विधान परिषद सदस्य दिवंगत गंगाधर फडणवीस के बेटे देवेन्द्र युवावस्था में ही राजनीति में उतर गए थे, जब वह 1989 में आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए थे.
गंगाधर को नागपुर के उनके साथी नेता और पूर्व पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी अपना राजनीतिक गुरु बताते हैं. महज 22 साल की उम्र में वह नागपुर स्थानीय निकाय से कॉरपोरेटर बन गए और 27 साल की आयु में 1997 में नागपुर के सबसे युवा मेयर चुने गए.
फडणवीस ने 1999 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और इसमें जीत हासिल की. एक अलग विदर्भ राज्य के इस मजबूत पैरोकार ने फिर कभी पलटकर पीछे नहीं देखा और लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की. वह फिलहाल सदन में नागपुर दक्षिण पश्चिम सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में कई नेताओं के उलट फडनवीस बेदाग रहे हैं.
कथित सिंचाई घोटाले को लेकर पिछली कांग्रेस…राकांपा सरकार को घेरने का श्रेय भी फडणवीस को जाता है. विदर्भ क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के लिए इस घोटाले को कई लोग प्राथमिक रुप से जिम्मेदार ठहराते हैं. विदर्भ का मुद्दा उनके दिल को इतना छू गया था कि अलग राज्य की मांग पर चर्चा के दौरान उन्होंने एक बार गुस्से में शिवसेना के एक विधायक को कह दिया था, विदर्भ से निकल जाओ. हालांकि, शिवसेना अलग विदर्भ राज्य के गठन के लिए महाराष्ट्र के विभाजन का लगातार विरोध करती रही है.
फडणवीस ने विधासभा चुनाव के दौरान विदर्भ समर्थक अपनी आवाज धीमी कर दी जब भाजपा पर शिवसेना ने आरोप लगा दिया कि यदि वह सत्ता में आती है तो राज्य का विभाजन कर देगी. भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी प्रशासनिक सुविधा के लिए छोटे राज्यों के पक्ष में है लेकिन नये राज्यों का गठन केंद्र के दायरे में है. सार्वजनिक जीवन में एक साफ सुथरी छवि होने और मोदी…शाह के मजबूत समर्थन के चलते नागपुर के यह युवा नेता सारी बाधाओं को पार कर विजेता बन कर उभरे.