नयी दिल्लीः ‘मफलरमैन’ और ‘दिल्ली के बेटे’ अरविंद केजरीवाल अपने विरोधियों की विभाजनकारी राजनीति के उलट, आम आदमी से जुड़े मुद्दों और विकास के एजेंडे के साथ राजनीति में आगे बढ़ते जा रहे हैं. आज जनता के इस ‘आम आदमी’ अरविंद केजरीवाल ने लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव (2015) में केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी (AAP) ने धमाकेदार जीत हासिल करते हुए कुल 70 में 67 सीटों पर जीत हासिल कर अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिया था. ‘अन्ना आंदोलन’ से राष्ट्रीय फलक पर आए केजरीवाल वर्ष 2013 में पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे और उस चुनाव में आप ने सिर्फ 28 सीटों पर जीत हासिल की थी.
उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन विभिन्न मुद्दों को लेकर जल्द ही दोनों पक्षों में मतभेद उभर आए और 49 दिन बाद ही केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने 2020 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 70 सीटों में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि भाजपा के खाते में आठ सीटें आई है. नौ साल पहले 2011 में केजरीवाल ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले ‘लोकपाल आंदोलन” के बाद ‘आम आदमी पार्टी’ की नींव रखी थी.
आम आदमी पार्टी के गठन के बाद दिल्ली की राजनीति में एक नया विकल्प सामने आया. हालांकि, केजरीवाल की महत्वाकांक्षा आप को एक राष्ट्रीय पार्टी बनाने की थी लेकिन इसमें उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली.केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए उनके खिलाफ वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए.
उन्होंने 2017 में पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों में भी अपनी पार्टी की पैठ बनाने की कोशिश की. पंजाब में कुछ हद तक उन्हें कामयाबी मिली, लेकिन गोवा में उन्हें सफलता नहीं मिली. केजरीवाल 2013 में पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने और तब वह केवल 49 दिनों तक इस पद पर रहे थे लेकिन 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीटों पर ऐतिहासिक प्रचंड जीत दर्ज की. केजरीवाल के करीबी लोगों का कहना है कि उन्होंने पहले सख्त रवैये के साथ पार्टी को चलाया लेकिन बाद में उन्होंने काफी संतुलित रवैया अपनाया.