मुंबई : पांच रुपये का पॉपकॉर्न मल्टीप्लेक्सों में 250 रुपये का क्यों हो जाता है? इस बात की चर्चा हम और आप भी करते हैं. मल्टीप्लेक्सों की मनमानी की यह बात अब कोर्ट में पहुंच गयी है और सरकार से जवाब मांगा गया है.
जी हां, बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि मल्टीप्लेक्सों में बाहर से खाने की चीजों को ले जाने की इजाजत देने से सुरक्षा को खतरा कैसे हो सकता है.
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और अनुजा प्रभुदेसाई की पीठ मंगलवारको दायर किये गये राज्य सरकार के हलफनामे पर प्रतिक्रिया दे रही थी.
इसमें कहा गया है कि मल्टीप्लेक्सों में बाहर से खाने की चीजों को लाने पर लगायी गयी रोक में वह हस्तक्षेप करना जरूरी नहीं समझती है क्योंकि इससे अव्यवस्था या सुरक्षा संबंधी मसले पैदा हो सकते हैं.
पीठ ने रेखांकित किया कि अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को घर से या बाहर से खाने की चीजें ले जाने पर रोक नहीं है. अदालत ने कहा कि सरकार का हलफनामा कहता है कि इस तरह का कोई कानून या नियम नहीं है, जो सिनेमा हॉल में लोगों को बाहर से खाने-पीने की चीजों को ले जाने से रोकता हो.
उच्च न्यायालय ने कहा, थिएटरों में खाने की चीजें ले जाने से किस तरह की सुरक्षा चिंताएं हो सकती हैं? लोगों के सिनेमा हॉल के अलावा किसी भी अन्य सार्वजनिक स्थान पर खाने का सामान ले जाने पर रोक नहीं है.
पीठ ने जानना चाहा, अगर लोगों को घर का खाना विमान में ले जाने की इजाजत दी जा सकती है तो थिएटरों में क्यों नहीं? उन्होंने पूछा, आपको किस तरह की सुरक्षा संबंधी समस्याओं का अंदेशा है?
अदालत ने मल्टीप्लेक्स ओनर्स असोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील इकबाल चागला की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि कोई सिनेमाघरों के अंदर खाना ले जाने की इजाजत मांगने के लिए अपने मौलिक अधिकारों का हवाला नहीं दे सकता है.
पीठ ने कहा, मल्टीप्लेक्सों में खाना बहुत महंगा बेचा जाता है. घर से खाना लाने पर रोक लगाकर आप परिवारों को जंक फूड खाने के लिए मजबूर कर रहे हैं. अदालत में वकील आदित्य प्रताप के जरिये जनहित याचिका दायर की गयी है जिसमें मल्टीप्लेक्सों में बाहर से खाना लाने पर रोक को हटाने की मांग की गयी है.