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फलस्तीन को क्यों है पीएम नरेंद्र मोदी से ढेरों उम्मीद?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फलस्तीन की यात्रा पर हैं. वे दुनिया के सबसे विवादित स्थल येरूशलम से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामल्ला पहुंचे हैं जहां उनका स्वागत उनके फलस्तीनी समकक्ष रामी हमदल्ला ने किया है. पीएम मोदी फलस्तीन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गये हैं. इतना ही नहीं वे इस्त्राइल […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फलस्तीन की यात्रा पर हैं. वे दुनिया के सबसे विवादित स्थल येरूशलम से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामल्ला पहुंचे हैं जहां उनका स्वागत उनके फलस्तीनी समकक्ष रामी हमदल्ला ने किया है. पीएम मोदी फलस्तीन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गये हैं. इतना ही नहीं वे इस्त्राइल जाने वाले भी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. इस्त्राइल व फलस्तीन के बीच का टकराव पूरी दुनिया में चर्चित है और सालों वैश्विक कूटनीति का यह अहम बिंदु रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की इन दोनों देशों की यात्रा उनके कूटनीतिक कौशल की ओर इशारा करता है. मोदी के पीएम बनने पर ऐसे कयास लगाये जा रहे थे कि इन दोनों देशों के प्रति भारत की परंपरागत कूटनीति में बदलाव आ सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि मोदी ने दोनों पक्षों से बेहतर रिश्ते का प्रयास किया. मोदी ने आज वहां कहा कि फलस्तीन के हितों को हमारा समर्थन सदैव से अटल रहा है.

मोदी के फलस्तीन दौरा मात्र तीन घंटे का है और वहां पहुंचने के साथ फलीस्तीन ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा. मोदी के इस दौरे से फलस्तीन के विशेषज्ञों को यह उम्मीद बंधी है कि इससे दोनों पक्षों में तनाव कम करने में मदद मिलेगी. हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा येरूशलम को फलस्तीन की राजधानी की मान्यता देने के बाद दोनों पक्षों में तनाव बढ़ा है.

फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन एक्जीक्यूटिव कमिटी के सदस्य अहमद मजदलानी ने कहा कि इस्राइल और भारत के बीच बेहतर संबंधों से फलस्तीनियों को मदद मिल सकती है. द यरूशलम पोस्ट ने मजदलानी के हवाले से कहा, ‘‘उनके बीच बढ़ते संबंध सकारात्मक हो सकते हैं क्योंकि अब भारत काइस्त्राइल पर अधिक दबाव है और वह हमारे पक्ष में दबाव बना सकता है.’

पिछले दिनों येरूशलम को राजधानी के रूप में मान्यता देने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ में वोटिंग हुई थी, जिसमें भारत ने इस्त्राइल के खिलाफ वोट दिया था. भारत के इस स्टैंड का नाखुशी जतायी थी. भारत सहित 128 देशों ने इस प्रस्ताव को खारिज किया था. हालांकि लगभग महीने भर पूर्व जनवरी मध्य में जब इस्त्राइल के पीएम बेंजामीन नेतन्याहू भारत के दौरे पर आये तो उन्होंने कहा कि हमारे रिश्ते एक वोट से प्रभावित नहीं हो सकते हैं.

हालांकि इस्त्राइल फलस्तीन के मुद्दे पर अपनी नीति को लेकर बहुत स्पष्ट है अौर वह यह कह चुका है कि अमेरिका के नेतृत्व वाली शांति प्रक्रिया के तहत ही आगे बढ़ेगी. इस्त्राइल को यह पता है कि भारत की कूटनीति स्वतंत्र है और वह अपने व्यापक हितों के अनुरूप अागे बढ़ता है. हर देश के प्रति भारत के स्वतंत्र कूटनीति को फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास स्वीकार करते हैं. फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने खुद कहा कि ‘‘किसी भी देश के पास अन्य देशों से संबंध कायम करने का अधिकार है.’

फलस्तीन के युवाओं को भी लगता है कि पड़ोसी जाॅर्डन व मिस्त्र के इस्त्राइल से कूटनीतिक रिश्ते हैं, तो भी भारत से उसके कूटनीतिक रिश्तों पर एतराज की वजह नहीं है. भारत आज विश्व की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी है. ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की मजबूत स्थिति है. अमेरिका का हमेशा से इस्त्राइल-फलस्तीन विवाद पर एकपक्षीय रुख रहा है, ऐसे में भारत उसके लिए एक उम्मीद है.

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