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वैसे तो देवी हैं बेटियां पर सरस्वती से बैर

।।राजेन्द्र कुमार।।लखनऊ: कई शक्ति पीठों वाले यूपी में नवरात्र के पर्व पर लड़कियों को देवी मानकर पूजा तो जाता है, परन्तु सूबे के लाखों अभिभावक इन देवियों को पढ़ाने-लिखाने में यकीन नहीं रखते. जिसके चलते ही प्रदेश की 43 फीसदी लड़कियों ने कभी भी स्कूल का मुंह ही नहीं देखा. लड़कियों के बारे में इस […]

।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊ: कई शक्ति पीठों वाले यूपी में नवरात्र के पर्व पर लड़कियों को देवी मानकर पूजा तो जाता है, परन्तु सूबे के लाखों अभिभावक इन देवियों को पढ़ाने-लिखाने में यकीन नहीं रखते. जिसके चलते ही प्रदेश की 43 फीसदी लड़कियों ने कभी भी स्कूल का मुंह ही नहीं देखा. लड़कियों के बारे में इस विरोधाभासी नजरिये का ही नतीजा है कि बीते दस वर्षो में तमाम कोशिशों के बावजूद महिलाओं की साक्षरता दर 57.2 फीसदी का आंकड़ा ही छू पायी है. राज्य में पुरुषों की साक्षरता का औसत 77.3 फीसदी है. पुरुष और महिला साक्षरता दर में 20.1 फीसदी का अंतर सूबे में नारी सशक्तीकरण की मुहिम के कमजोर होने का संकेत है. गत 30 मई को जनगणना 2011 के यहां जारी हुए आंकड़ों से यह हकीकत उजागर हुई है.

इसके साथ ही जनगणना के आंकड़ों ने उन सरकारी दावों की भी पोल खोलकर रख दी है, जिनमें महिलाओं की साक्षरता दर में तीव्र बढ़ोत्तरी की बात कही जा रही थी. हकीकत यह है कि आज भी सूबे के ग्रामीण क्षेत्रों में 46 प्रतिशत से अधिक महिलाएं अपना नाम लिखना तक नहीं जानती. वर्ष 2011 की जनगणना से साबित हुई इस सच्चाई पर सूबे में महिला साक्षरता को बढ़ावा देने में जुटी प्रोफेसर निधि कहती हैं ‍कि राज्य में लड़कियों के साक्षर न होने की मुख्य वजह ऐसे माता पिता हैं, जिन्हें लड़कियों के शादी ब्याह की जल्दी रहती है.

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पढ़ने की उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है. कम उम्र में विवाह के तुरन्त बाद लड़कियां गर्भधारण कर लेती हैं. बाद में वह अनेच्छापूर्वक गर्भधारण को बाध्य होती हैं. जीवन की इस आपाधापी में उन्हें पढ़ने-पढ़ाने की सुध ही नहीं रहती. निधि बताती है कि तमाम सरकारी सर्वे की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि सूबे में 6-17 वर्ष आयुवर्ग में सिर्फ 64 फीसदी लड़कियां स्कूल जाती हैं, जबकि लड़के 74 फीसदी. शहरों में 6 से 14 वर्ष आयुवर्ग में स्कूल जाने वाली लड़कियों की दर लड़कों से अधिक है, लेकिन 15-17 वर्ष आयुवर्ग में लड़कियां पिछड़ जाती हैं. इसकी वजह संभवत: गरीबी व सामाजिक असुरक्षा की भावना है, जिसके चलते अभिभावक जवान होती बेटियों को स्कूल भेजने के बजाय जल्दी से जल्दी ब्याह करके अपनी जिम्मेदारी से निश्चिन्त हो जाना चाहते हैं.

15 से 17 वर्ष आयु वर्ग में सिर्फ 43 फीसदी शहरी लड़कियां स्कूल जाती हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 28 फीसदी. ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा संस्थानों का अभाव इसकी एक वजह है. वैसे सर्वशिक्षा अभियान व अन्य सरकारी योजनाओं का यह असर जरूर है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी 6 से 10 वर्ष आयु वर्ग में 78 फीसदी लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं. यह दर इसी आयु वर्ग में शहरी लड़कियों के स्कूल जाने की दर के लगभग बराबर है. नारी सशक्तीकरण की सरकारी दुंदुभि के बीच जनगणना के यह आंकड़े सूबे में महिला साक्षरता के बारे में पूरे नजरिए की पोल खोल रहे हैं, जिसे अब गंभीरता से लेकर सरकार को उचित कदम उठाने हैं, ताकि सूबे में हर महिलाओं को शिक्षित करने का सपना पूरा किया जा सके. निधि कहती हैं कि सरकार को इस मामले में अब सख्त कदम उठाने होंगे तभी सूबे के लोग अपनी देवी जैसी बेटी को पढ़ाने की पहल करेंगे, वरना उन्हें सरस्वती से दूर ही रखेंगे.

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