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सुप्रीम कोर्ट ने मूक-बधिर बलात्कार पीड़िता को 15 लाख रुपये मुआवजा देने का दिया आदेश

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हार्इकोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए हिमाचल प्रदेश की मूक बधिर बलात्कार पीड़िता को 15 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. बलात्कार पीड़िता ने एक बच्ची को जन्म दिया था. हार्इकोर्ट ने राज्य सरकार को इस महिला को हर महीने मुआवजे के रूप में एक निश्चित […]

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हार्इकोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए हिमाचल प्रदेश की मूक बधिर बलात्कार पीड़िता को 15 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. बलात्कार पीड़िता ने एक बच्ची को जन्म दिया था. हार्इकोर्ट ने राज्य सरकार को इस महिला को हर महीने मुआवजे के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था.

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न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ शुरू में हार्इकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं थी, परंतु बाद में उसने सोचा कि पीड़ित की अशक्तता को देखते हुए उसे मुआवजे के भुगतान की राशि के बारे में उचित व्यवस्था करने की आवश्यकता है. इसके बाद शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश हार्इकोर्ट के आदेश में सुधार करके पीड़िता को मुआवजे के रूप में 30,000 रुपये प्रतिमाह जीवन पर्यंत भुगतान करने का निर्देश दिया. पीड़िता युवती 80 फीसदी अशक्त है.

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम हार्इकोर्ट के आदेश में, जो पीड़ित को मुआवजे के भुगतान से संबंधित है, में सुधार करना उचित समझते हैं और निर्देश देते हैं कि सरकार पीड़ित को देय मुआवजे की 15 लाख रुपये की धनराशि हिमाचल प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव की सलाह से राष्ट्रीयकृत बैंक में ब्याज वाली सावधि जमा योजना में जमा कराये.

पीठ ने कहा कि इस सावधि जमा राशि पर मिलने वाली ब्याज की रकम हर महीने निकाली जा सकने वाली होनी चाहिए और यह पीड़ित लडकी के माता-पिता को उस समय तक दी जानी चाहिए, जब तक वे जीवित हैं. पीठ ने यह निर्देश भी दिया कि समय-समय पर उचित कदम उठा कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस राशि का उपयोग पीडित के कल्याण पर ही हो रहा है.

राज्य सरकार की ओर से पेश सरकारी वकील वरिंदर कुमार शर्मा ने कहा कि हार्इकोर्ट के निर्देशानुसार हर महीने भुगतान करने की बजाय इस मामले में न्याय के हित में पीड़ित को एक मुश्त राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाना चाहिए. राज्य सरकार ने हार्इकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि बलात्कार पीड़ित को जीवन भर मुआवजा देने के लिए कोई योजना नहीं है और मुआवजे की राशि योजना के विपरीत है.

राज्य सरकार का यह भी कहना था कि पीड़ित की मृत्यु होने या 80 फीसदी अथवा इससे अधिक की अशक्तता के मामले में अधिकतम एक लाख रुपये मुआवजे का ही प्रावधान है. हार्इकोर्ट ने 29 जून, 2016 को बलात्कारी रजनीश उर्फ विकी की अपील खारिज करते हुए कहा था कि पीड़ित दोहरी अलाभकारी स्थिति में है, क्योंकि उसे अपने बच्चे के साथ ही खुद की भी परवरिश करनी है.

हमीरपुर की सत्र अदालत ने 26 जून, 2015 को बलात्कार के दोषी रजनीश को 10 साल की सश्रम कैद और 20 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनायी थी. इस मामले में पीड़ित के माता पिता द्वारा 26 दिसंबर, 2013 को दर्ज करायी गयी प्राथमिकी के अनुसार दोषी ने उनकी बेटी के मूक-बधिर होने का लाभ उठाते हुए कई बार उसका बलात्कार किया और उसे गर्भवती कर दिया था.

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