इंदौर : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सात नाबालिग बच्चों को सोमवार को उनके माता-पिता को सौंपने का आदेश सुनाया. शासकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने धर्मांतरण की कथित कोशिश के विवादित मामले में हफ्तेभर पहले इन बच्चों को स्थानीय रेलवे स्टेशन से अपनी निगरानी में लिया था. उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा ने सातों बच्चों के परिजनों की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई की.
याचिकाकर्ताओं के वकील केपी गनगोरे ने संवाददाताओं को बताया, सुनवाई के दौरान युगल पीठ ने आदेश दिया कि मामले में पांच से 17 वर्ष की उम्र के सात बच्चों को उसके सामने पेश किया जाए. अदालत ने बच्चों की इच्छा जानकर उन्हें उनके माता-पिता को सौंपने का आदेश दिया. गनगोरे ने बताया कि इन बच्चों के परिजनों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि जीआरपी ने उनकी संतानों को पिछले सात दिन से अज्ञात स्थान पर अवैध हिरासत में रखा है.
जीआरपी के एक अधिकारी ने बताया कि 23 अक्तूबर को इन बच्चों को रेलवे स्टेशन से मुक्त कराया गया था. इसके साथ ही, इन्हें रेल से मुंबई ले जा रहे एक महिला और एक पुरुष को मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम की सम्बद्ध धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था. मामले की विस्तृत जांच की जा रही है.
स्थानीय हिंदू संगठनों का आरोप है कि इन बच्चों को बहला-फुसलाकर और लालच देकर धर्मांतरण के लिये मुंबई ले जाया जा रहा था. हालांकि, इनमें से कुछ बच्चों के माता-पिता का कहना है कि वे ईसाई धर्म मानते हैं और उनकी संतानें अपनी मर्जी से धार्मिक अध्ययन के लिये मुंबई जा रही थीं.