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UP News: हाईकोर्ट ने बेसिक स्कूलों के शिक्षकों की इस तबादला नीति पर लगाई मुहर, सभी याचिकाएं निस्तारित

लखनऊ हाईकोर्ट ने जूनियर बेसिक स्कूलों के शिक्षकों के अंतर जनपदीय तबादला नीति पर एक अहम फैसले पर मुहर लगा दी. कोर्ट ने कहा कि इस नीति में कोई अवैधानिकता नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने शुक्रवार को जूनियर बेसिक स्कूलों के शिक्षकों के अंतर जनपदीय तबादला नीति पर एक अहम फैसले पर मुहर लगा दी. कोर्ट ने कहा कि इस नीति में कोई अवैधानिकता नहीं है. पति-पत्नी दोनों सरकारी नौकरी में होने पर उनकी एक ही स्थान पर तैनाती पर विचार किया जा सकता है, लेकिन यह कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं है. कोर्ट ने आगे कहा कि पति-पत्नि की एक स्थान पर तैनाती तभी संभव है, जब इससे प्रशासकीय आवश्यकताओं को कोई हानि न पहुंच रही हो. कोर्ट ने आदेश में बीते 26 जून को जारी तबादला सूची को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को निस्तारित करते हुए कहा कि न्यायिक समीक्षा के तहत हाईकोर्ट, कार्यपालिका या बेसिक शिक्षा परिषद को कोई खास नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है. जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ल की एकल पीठ ने पूजा कुमारी सिंह व अन्य सहायक शिक्षकों के तरफ से दायर 36 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया. इनमें बीते 26 जून की तबादला सूची और सरकार की तबादला नीति संबंधी विभिन्न आदेशों को चुनौती दी गई थी. तबादला नीति के ये आदेश बीते 2, 8 व 16 जून को दिए गए थे. कोर्ट ने कहा कि गंभीर बीमारी के आधार पर ट्रांसफर चाहने वाले याची शिक्षकों के मामले परिषद को समुचित निर्णय लेने को वापस भेजे जाते हैं.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यशोदा मैया को दी बेटी से मिलने की दी इजाजत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के बाल गृह में 15 महीने से रह रही 8 साल की मासूम को उसकी यशोदा मैया से मिलने की इजाजत दी. इसी मां ने नवजात बच्ची को सात साल तक पाल-पोसकर जीवनदान दिया था. डेढ़ साल पहले बच्ची पर हक जताने वालों के कारण मां-बेटी को जुदा होना पड़ा था. कोर्ट ने सरकार से डीएनए रिपोर्ट मांगी, लेकिन शुक्रवार को दाखिल नहीं हुआ. इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जल्द रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया. जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ के समक्ष आगरा की एक महिला ने अपनी मानद बेटी की सुपुर्दगी के लिए याचिका दाखिल की है. करीब साढ़े आठ साल पहले ठंड की रात में किन्नर ने टेढ़ी बगिया इलाके में रहने वाली महिला को यह नवजात बच्ची सौंपी थी. बच्ची को कोई खुले में छोड़ गया था. नवजात के लिए यह महिला यशोदा मां बन गई. खुद के चार बच्चे होते हुए भी यशोदा ने इस बच्ची को अपनाने में तनिक भी संकोच नहीं किया. कानूनी दांव-पेच का विचार किए बिना उसने बच्ची का तत्काल इलाज करवाकर पालन-पोषण करने लगी. मासूम सात साल तक उसके परिवार का अभिन्न अंग रही. स्कूल में दाखिला भी कराया. लेकिन इस बीच किन्नर की नीयत खराब हो गई और वह बच्ची को उठा ले गया.

पुलिस और चाइल्ड लाइन की मदद से बच्ची को फर्रुखाबाद से मुक्त कराया गया, बाल कल्याण समिति फर्रुखाबाद के यहां बच्ची ने यशोदा को ही अपनी मां के रूप में पहचाना और उनके साथ जाने की इच्छा जाहिर की. बच्ची यशोदा को सौंपी भी गई, लेकिन बाल कल्याण समिति आगरा ने आठ माह बाद ही कमजोर आर्थिक स्थिति का आधार जताते हुए बच्ची को फिर बाल गृह भेज दिया. समिति ने तर्क दिया था कि यशोदा की आमदनी इतनी नहीं कि वह बच्ची का पालन-पोषण कर सके. इस फैसले से परेशान यशोदा ने पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के यहां गुहार लगाई, लेकिन बच्ची उसके सुपुर्द नहीं की गई. बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने यह मामला राज्य बाल आयोग के समक्ष उठाया. आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बच्ची को देखभाल के लिए यशोदा को देने का आदेश दिया, लेकिन उसे माना नहीं गया.

धरना से नहीं माने तो गई हाईकोर्ट

पालनहार मां ने बच्ची को पाने के लिए जिला मुख्यालय पर धरना भी दिया, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा. यहां तक कि बेटी से मिलने पर भी पाबंदी लगा दी गई. आहत यशोदा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनके अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल ने दलील दी कि बच्ची ने हर बार यशोदा को ही मां बताते हुए साथ जाने की इच्छा जताई है. आधार कार्ड, जन्म व शैक्षिक प्रमाण-पत्रों में यशोदा ही उसकी मां है. बीते सात साल से बच्ची उन्हीं के परिवार में रह रही है. सभी से उसका भावनात्मक लगाव है. लिहाजा, बच्ची के लिए यशोदा ही असली मां है और उसका परिवार सर्वोत्तम संरक्षक. हाईकोर्ट ने आगरा प्रशासन से नाराजगी जताते हुए कहा है कि बाल कल्याण समिति ने बाल हित में फैसला नहीं लिया. प्रशासन से रिपोर्ट मांगते ही नया मोड़ तब आया, जब आगरा के नितिन गर्ग ने हाईकोर्ट में दावा किया कि बच्ची के वह जैविक पिता हैं. उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 में नवजात बच्ची घर से अगवा की गई थी, जिसकी एत्मादपुर थाने में एफआईआर भी दर्ज करवाई थी. कोर्ट ने नितिन गुप्ता को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने की अनुमति देते हुए डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया.

कोर्ट ने दिन में तीन बार की सुनवाई

बच्ची की मार्मिक कहानी को देखते हुए कोर्ट ने भी मानवीय दृष्टिकोण दिखाया. शुक्रवार सुबह 10.10 बजे ही कोर्ट ने सरकारी वकील से डीएनए रिपोर्ट के बारे में पूछा. यह रिपोर्ट शुक्रवार को ही आनी थी. नहीं आने की जानकारी पर कोर्ट ने सरकारी वकील को कारण पता करने के लिए समय दिया. 10.30 बजे सरकारी वकील ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात करके कोर्ट को बताया कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जानकारी मांगी जा रही है. कोर्ट ने फिर 12.15 बजे केस की सुनवाई की. बताया गया कि अभी लैब में जांच नहीं हो पाई है. इससे नाराज कोर्ट ने प्रयोगशाला के अधिकारियों को जांच करके जल्द रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया है. अगली सुनवाई 29 जनवरी 2024 को होगी. हाईकोर्ट ने यशोदा मां को बड़ी राहत देते हुए जिला प्रोबेशन अधिकारी की मौजूदगी में बच्ची से मिलने की इजाजत दे दी.

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