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विश्व अस्थमा दिवस आज : पुरुषों की तुलना में महिलाएं अस्थमा से ज्यादा पीड़ित
विश्व में 200 मिलियन और भारत में 20 मिलियन लोग अस्थमा की चपेट में बदलती जीवन शैली युवाओं के लिए खतरा बन गयी है. शहरों में खत्म होते खेल मैदान से बढ़ा इनडोर गेम्स का चलन युवाओं को अस्थामा का मरीज बना रहा है. अस्थामा के मरीजों में अब युवाओं और बच्चों की संख्या बड़ों […]
विश्व में 200 मिलियन और भारत में 20 मिलियन लोग अस्थमा की चपेट में
बदलती जीवन शैली युवाओं के लिए खतरा बन गयी है. शहरों में खत्म होते खेल मैदान से बढ़ा इनडोर गेम्स का चलन युवाओं को अस्थामा का मरीज बना रहा है. अस्थामा के मरीजों में अब युवाओं और बच्चों की संख्या बड़ों से दोगुनी हो गयी है. विशेषज्ञों की मानें तो खेल मैदान की कमी के चलते युवा इनडोर गेम्स को प्राथमिकता दे रहे हैं.
इनडोर गेम्स के दौरान घर के पर्दे, गलीचे व कॉरपेट में लगी धूल उनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है. इससे उनमें एलर्जी और अस्थामा की बीमारी हो रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक हम युवाओं के लिए संतुलित जीवन शैली का चुनाव नहीं करेंगे, यह समस्या बढ़ती ही जायेगी. इतना ही नहीं, घर की चारदीवारी में बंद रहनेवाले युवा जब कॉलेज जाने के लिए घर से बाहर निकलते हैं, तो धूल व धुएं के कण से भी उन्हें एलर्जी होने की आशंका बढ़ जाती है.
आरजी कर मेडिकल कॉलेज के चेस्ट विभागाध्यक्ष प्रो डॉ सुष्मिता कुंडू तथा डॉ पवन अग्रवाल के अनुसार अस्थमा के विषय में जागरूकता के लिए हर साल मई के पहले मंगलवार को पूरे विश्व में अस्थामा दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष 2 मई यानी मंगलवार को इस दिवस का पालन किया जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग 200 मिलियनलोग इस बीमारी की चपेट में हैं. भारत में भी यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है. भारत में लगभग 20 मिलियन लोग इसकी चपेट में हैं.
महिलाएं अधिक पीड़ित
हार्मोन में बदलाव के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाएं अस्थमा से अधिक पीड़ित हो रही हैं. डॉ कुंडू ने बताया कि आम तौर पर 40 से 45 वर्ष की उम्र के पहले महिलाएं इस बीमारी की चपेट में आती हैं.
जेनेटिक यानी माता-पिता में से किसी एक को इस बीमारी के शिकार होने पर उनके बच्चों को अस्थामा होने की आशंका बनी रहती है. इस बीमारी को दवा के जरीये नियंत्रण में रखा जा सकता है. कम उम्र के लोग अस्थमा तथा बुजुर्गों में सीओपीडी देखी जाती है. इन दोनों बीमारियों के लक्षण लगभग एक ही होते हैं. इसलिए लोग अस्थामा व सीओपीडी को समझने की गलती कर बैठते हैं.
बचपन में ही अस्थामा लोगों को बनाता है शिकार
यह एक जेनेटिक बीमारी है. आम तौर पर लोग बचपन में ही इसके चंगुल में फंस जाते हैं. नियमित रक्त परीक्षण और छाती के एक्स-रे द्वारा इसकी पहचान की जाती है. डॉ कुंडू ने कहा कि दोनों ही बीमारी सांस नली की समस्या के कारण उत्पन्न होती है. आम तौर पर प्रदूषण व जेनेटिक क्रिया के कारण लोगों में यह बीमारी देखी जाती है. सांस में सूजन व इसके छिद्रों के बंद पड़ने से अस्थामा या सीओपीडी की समस्या देखी जाती है. सांस लेने में तकलीफ, सांस छोड़ते समय आवाज निकलना, अत्यधिक खांसी का होना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.
क्या है अस्थमा
अस्थमा एक चिरकालिक बीमारी है. यह रोग व्यक्ति के श्वास को प्रभावित करता है. अस्थमा की वजह से शरीर के वायु मार्ग के संकीर्ण होने की वज़ह से वायुमार्ग श्वसन नली की परतों में सूजन आ जाती है. इसके कारण सांस लेते और छोड़ते समय फेफड़ों में हवा का प्रवाह कम हो जाता है.
तंबाकू का सेवन, एलर्जी पैदा करनेवाले तत्व अथवा रासायनिक पदार्थों, एलर्जी और श्वसन संक्रमण आदि इसके खतरे को अधिक बढ़ा सकते हैं. कुछ दवाइयां, अत्यधिक ठंडा मौसम, शारीरिक व्यायाम और तनाव आदि अस्थामा के दौरों की शुरुआत अथवा ट्रिगर्स को पैदा कर सकते हैं. आम तौर पर अस्थमा का प्रभाव अचानक ही देखा जाता है.
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