नेशनल कंटेंट सेल
-गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही छात्रा
पीरियड्स एक ऐसा विषय, जिस पर बता करने से महिलाएं शर्माती हैं. महानगरों में यह स्थिति कमोबेश नहीं, लेकिन गांव व छोटे शहरों में आज भी इस विषय पर महिलाएं बात नहीं करना चाहती. अपनी संस्था के माध्यम से समाज की सोच को बदलने के लिए बनारस की स्वाति सिंह ने इसे खत्म करने का बीड़ा उठाया है. उनकी मुहिम माहवारी के मुद्दे पर यूपी के ग्रामीण इलाकों में जेंडर, यौनिकता, संस्कृति, स्वास्थ्य और स्वच्छता की दिशा में तेजी से काम कर रही हैं. वे इस विषय पर जागरूकता, व्यवहार परिवर्तन व सतत विकास को केंद्र में रखकर काम कर रही हैं.
वह माहवारी की शर्म के खिलाफ लड़ने के साथ-साथ इसे महिला रोजगार से जोड़ कर देख रही हैं. अपनी इस मुहिम के जरिये उन्होंने शर्म के विषय को केंद्र में रखकर इसे दूर करने की दिशा में जो काम शुरू किया है, इसे वह स्टार्टअप की तरह ही देखती हैं. इसके माध्यम से वह सैनिटरी पैड बनाने का भी काम कर रही हैं. उनकी मुहिम इस वक्त पचास से ज्यादा गांवों तक पहुंच चुकी है.
अब गांव की महिलाएं सूती कपड़े की मदद से सैनिटरी बनाने में जुट गयी हैं. स्वाती ने बताया कि उनकी इस मुहिम का मिशन पीरियड्स के विषय पर स्वस्थ माहौल बनाना, ग्रामीण महिलाओं के बीच सूती सेनेटरी पैड के इस्तेमाल और इसे लघु उद्योग के तौर पर शुरू करना है.
मुहिम से जुड़ीं पांच हजार महिलाएं
अब तक उनके इस मुहिम से पांच हजार से अधिक महिलाएं एवं किशोरियां जुड़ चुकी हैं. यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. महिला महाविद्यालय (बीएचयू) की छात्रा रही स्वाती ने साल 2013 में सोशियोलॉजी ऑनर्स में बीए करने के बाद बीएचयू से जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन में साल 2015 में मास्टर्स किया. इसके बाद, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन राइट्स (नयी दिल्ली) से मानवाधिकार की पढ़ाई की.
मिले कई सामाजिक सम्मान
इंडियन एक्सप्रेस और शुक्रवार जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम करने के बाद स्वाति ने जनवरी, 2017 में अपनी पहली किताब ‘कंट्रोल Z’ लिखी. स्वाति के लेखन व सामाजिक कार्य के लिए उन्हें काका कालेलकर सामाजिक सम्मान, उत्तर प्रदेश कन्या शिक्षा एवं महिला कल्याण तथा सुरक्षा सम्मान, सरस्वती सम्मान और लाडली मीडिया अवॉर्ड जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है. मौजूदा समय में स्वाति फेमिनिज्म इन इंडिया में संपादक भी हैं.