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ब्रेस्टफीड करा बीमारियों को रखें दूर

मां बनना महिलाओं के लिए प्रकृति का सबसे बड़ा तोहफा है और बच्चे को स्तनपान कराना अनूठा अनुभव है. स्तनपान कराने से मां-शिशु के बीच बीच न सिर्फ भावनात्मक रिश्ता बनता है, बल्कि यह दोनों के स्वास्थ्य के लिए अमृत का काम करता है. नियमित स्तनपान कराने से एक तरफ जहां बच्चे का इम्यून सिस्टम […]

मां बनना महिलाओं के लिए प्रकृति का सबसे बड़ा तोहफा है और बच्चे को स्तनपान कराना अनूठा अनुभव है. स्तनपान कराने से मां-शिशु के बीच बीच न सिर्फ भावनात्मक रिश्ता बनता है, बल्कि यह दोनों के स्वास्थ्य के लिए अमृत का काम करता है. नियमित स्तनपान कराने से एक तरफ जहां बच्चे का इम्यून सिस्टम बेहतर होता है, वहीं प्रेग्नेंसी के दौरान बढ़ा हुआ मां का वजन कम होने में मदद मिलती है. मां का दूध छह माह तक के बच्चे के लिए पूर्ण आहार है, इसलिए इस अवधि तक शिशु को कुछ और न दें.
तालू में छेद हो, तो ब्रेस्ट पंप कर पिलाएं दूध : कुछ मामलों में शिशु के तालू में छेद होने के कारण दूध नाक में चला जाता है. उसे सांस लेने में तकलीफ होती है और वह दूध नहीं पीता. ऐसी स्थिति में मां ब्रेस्ट पंप की मदद से बच्चे को फीड करा सकती है. प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक भोजन की कमी का असर भी ब्रेस्ट फीडिंग पर पड़ता है.
ब्रेस्ट में सूजन या घाव होने से मां बच्चे को स्तनपान नहीं करा पाती, जिससे दूध में कमी आ जाती है. मां को अगर कैंसर, हार्ट, किडनी, हाइपो-थाॅयराइड जैसी गंभीर बीमारी हो और वह मेडिसिन ले रही हो, तो ऐसी स्थिति में डाॅक्टर भी स्तनपान कराने से मना करते हैं. हालांकि, ऐसे मामले 0.01 फीसदी ही हैं.
इस स्थिति में बच्चे को टाॅप डाइट देते हैं. ऐसी स्थिति में बोतल का हाइजीन और डाइट की मात्रा का ध्यान रखना चाहिए. कई मांएं फिगर खराब होने या ब्रेस्ट लटकने के डर से भी स्तनपान नहीं कराती हैं, जो एकदम हानिकारक है जच्चा और बच्चा दोनों के लिए.
बातचीत : रजनी अरोड़ा
मां के फिगर को करता है मेंटेन
कई बार आस-पास के लोगों से सुनने के कारण मां को यह लगता है कि स्तनपान कराने से उनका फिगर खराब हो जायेगा और ब्रेस्ट लटक जायेगा, पर सच्चाई ये है कि मां जब प्रेग्नेंट होती है, तो प्रोलैक्टिन हार्मोंस के कारण उनके स्तन का विकास होता है और वे पूर्ण रूप से महिला के रूप में नजर आती है.
वहीं, स्तनपान कराने से प्रेग्नेंसी के दौरान उन्होंने जो वेट बढ़ाया होता है, वह कंट्रोल में आने लगता है. इसके अलावा हार्ट, लंग्स, किडनी जैसे अंगों को भी स्तनपान से फायदा मिलता है. कई लोग यह भी कहते हैं कि शुरुआती दिनों में मां का दूध बच्चे के लिए पूरा नहीं होता, पर सच ये है कि मां का दूध छह माह तक बच्चे के लिए पूर्ण आहार है.
नेचुरल प्रोसेस है दूध का बनना
डॉ अंकित श्रीवास्तव
एमडी, डीएम, आरोग्य डायबिटीज एंड इंडोक्राइन सेंटर, रांची
फोन : 06516006060
नवजात शिशु की समुचित देखरेख के लिए मां के शरीर में ब्रेस्ट फीडिंग प्रक्रिया ईश्वर के वरदान है. यह प्रक्रिया बच्चे के जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाती है. दूध बनना एक हार्मोनिक क्रिया है. महिलाएं जब प्रेग्नेंट होती हैं, तो उनके स्तन के विकास का काम शुरू हो जाता है. यह मुख्यत: प्रोलैक्टिन(Prolactin) और ऑक्सीटोसिन(Oxytocin) हार्मोन के कारण होता है.
प्रोलैक्टिन हार्मोंस के कारण स्तन का विकास होता है और ऑक्सीटोसिन स्तन में दूध बनने में मदद करता है. दोनों की मौजूदगी से ही ब्रेस्ट में दूध का निर्माण होता है.
दूध का निर्माण डिलिवरी के दो माह पहले ही शुरू हो जाता है, पर प्रेग्नेंसी के दौरान पोजेस्ट्रॉन हार्मोंस दूध बनने की प्रक्रिया को कंट्रोल करती है. जब डिलिवरी होती है, तो प्रोलैक्टिन और ऑक्सीटोसिन हार्मोंस का लेवल बढ़ने लगता है, जबकि पोजेस्ट्रॉन का लेवल कम हो जाता है, जिस कारण दूध का निर्माण होने लगता है और डिलिवरी के बाद से ही मां दूध पिलाने के लिए शारीरिक रूप से तैयार होती है. ऑक्सीटोसिन हार्मोंस के लेवल के बढ़ने के कारण ही डिलिवरी होती है, यह यूट्रस काे कॉन्ट्रैक्ट करने में सहायक होता है. ऑक्सीटोसिन डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग को रोकने में भी मददगार होता है.
मां का स्वस्थ रहना जरूरी : दूध बनने के लिए सबसे जरूरी है मां का स्वस्थ होना. यदि किसी कारणवश मां बीमार हो जाये या वो डिप्रेशन में हो, तो दूध बनने में कमी आती है. इसलिए मां की देखभाल बहुत आवश्यक है. कई बार घर के लोग डिलिवरी तक तो होनेवाली मां का पूरा ख्याल रखते हैं पर डिलिवरी के बाद उसके प्रति उदासीन रवैया अपनाते हैं. पर असल में मां को प्रेग्नेंसी में और उसके बाद भी ख्याल रखने की जरूरत होती है, क्योंकि बच्चे के जन्म के बाद छह माह तक मां का दूध पीना अनिवार्य है और मां का खान-पान संतुलित न हो, तो बच्चे का पोषण भी सही से नहीं हो पाता है.
बच्चे के छूने से ब्रेस्ट होता है स्टीमुलेट : आमतौर पर मां के ब्रेस्ट में डिलिवरी से पहले से ही दूध बनने लगता है और जैसे ही बच्चा ब्रेस्ट को मुंह लगाता है, मां का ब्रेस्ट स्टीमुलेट हो जाता है और दूध स्रावित होने लगता है, पर कई बार यदि महिला को ब्रेस्ट को बार-बार छूने की आदत हो, तो भी हार्मोनिक डिसआर्डर के कारण बिना प्रेग्नेंसी के भी दूध आ सकता है. इस अवस्था को ‘प्रोलैक्टिनोमा’ कहते हैं.
यदि ऐसा हो, तो डॉक्टर जांच के बाद उसके हार्मोनिक डिसआर्डर की दवा देकर ठीक करना होता है. हाइपोथायराइड में भी दूध खुद से निकलने लगता है. ऐसे में दूध आने पर ब्रेस्ट में पेन हो सकता है और दूध यदि नहीं निकाला जाये, तो इससे इन्फेक्शन हो जाता है और पस भी निकलने लगता है. इसलिए यदि ऐसा हो, तो डॉक्टर से दिखाना जरूरी है.
प्रस्तुति : सौरभ चौबे
सही पोजीशन भी है जरूरी
डाॅ सीमा शर्मा,
स्त्री रोग, सृष्टि द गाइनी क्लिनिक, दिल्ली
डाॅक्टर मानते हैं कि नवजात को 2-2 घंटे और छह माह से ऊपर के बच्चों को 3-3 घंटे के गैप में ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहिए. यदि बच्चा सो रहा हो, तो उसे उठा कर फीड कराना चाहिए. ब्रेस्ट फीडिंग के लिए मां का पोजीशन सही होना जरूरीहै. सीधा बैठ कर फीड कराना अच्छा होता है. यदि लेट कर दूध पिला रही हों, तो आप तकिये को सिर के नीचे रख कर गरदन को सपोर्ट दें. ध्यान रखे कि फीड कराते हुए बच्चे की नाक ब्रेस्ट से न दबे. इससे उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.
ब्रेस्ट फीडिंग करानेवाली मां को डाइट का विशेष ध्यान रखना चाहिए. उन्हें डाइट में एक्स्ट्र कैलोरी और पौष्टिक तत्वों को शामिल करना चाहिए. जो भोजन वे प्रेग्नेंसी में करती हैं, उतना ही भोजन उसके बाद भी करना चाहिए. फल-सब्जी और डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल करे. लिक्विड डाइट भी ले सकती हैं. इससे दूध उतरने में आसानी होती है. कैल्शियम और विटामिंस के सप्लीमेंट का उपयोग करें.
ब्रेस्ट फीडिंग से मां को फायदे :
– बच्चे के साथ भावनात्मक जुड़ाव, जिससे डिप्रेशन में कमी आती है.
– डिलिवरी के बाद मेटाबाॅलिज्म रिसेट होता है.
– डिलिवरी के बाद होनेवाले रक्तस्राव बंद हो जाता है. एनीमिया का खतरा कम रहता है.
– नियमित ब्रेस्ट फीडिंग कराने से मासिक धर्म देर से होता है, जिससे शरीर में आयरन की कमी नहीं होती.
– परिवार नियोजन का प्राकृतिक उपाय है. इससे 80 प्रतिशत तक प्रेग्नेंसी के चांसेज कम होते हैं.
– ब्रेस्ट फीडिंग से रोजाना 300-600 कैलोरी बर्न होती है व शरीर वापस शेप में आता है.
– ब्रेस्ट फीडिंग से आॅक्सीटोसिन हार्मोन का लेवल बढ़ता है और यूट्रस पुनः अपनी अवस्था में आ जाता है.
– अल्जाइमर, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि में कमी आती है.
बच्चे के लिए फायदेमंद :
– शिशु के लिए संपूर्ण आहार है.
– डिलिवरी के बाद निकलनेवाला गाढ़ा दूध बच्चे के इम्यून सिस्टम को 90 फीसदी तक मजबूत बनाता है.
-इसमें अनेक लाइफ सेविंग तत्व होते हैं, जो संक्रामक बीमारियों से बचाते हैं.
-जो मां नवजात को 6 महीने तक ब्रेस्ट फीडिंग कराती है, उन बच्चों को पांच साल तक इन्फेक्शन से दूर रखने में मदद करता है.

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