Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 Per Speech, Parakram Diwas Wishes, Essay, Nibandh, Bhashan, Poem, Kavita, Slogan, Quotes in Hindi: देश की आजादी में अनेक शूरवीरों ने अपना योगदान दिया है, उनमें से एक हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ और इनका निधन 18 अगस्त 1945 में हुआ था. जब इनकी मृत्यु हुयी तो ये केवल 48 वर्ष के थे. नेताजी 1920 और 1930 के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वच्छंदभाव, युवा और कोर नेता थे. यहां से देखें नेताजी पर निबंध
नहीं सिर्फ जश्न मनाना, नहीं सिर्फ झंडे लहराना
ये काफी नहीं है वतन पर, यादों को नहीं भुलाना
जो कुर्बान हुए उनके लफ़्ज़ों को आगे बढ़ाना
खुद के लिए नही ज़िन्दगी वतन के लिए लुटाना
पराक्रम पर्व की शुभकामनाएं...
चलो फिर से आज वो नजारा याद कर लें
शहीदों के दिल में थी वो ज्वाला याद कर ले
जिसमे बहकर आज़ादी पहुची थी किनारे पे
देशभक्तों के खून की वो धरा याद कर लें
पराक्रम पर्व की शुभकामनाएं
देशभक्तों के खून में प्रेरणा बनकर आग लगाई है,
आजादी के खातिर ही नेताजी ने अपनी जान गवाई है.
बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
चलो फिर से आज वो नजारा याद कर लें
शहीदों के दिल में थी वो ज्वाला याद कर ले
जिसमे बहकर आज़ादी पहुची थी किनारे पे
देशभक्तों के खून की वो धरा याद कर लें
पराक्रम पर्व की शुभकामना
वो पराधीनता का दौर था,
जब युवा आजादी को
अपना लक्ष्य मानते थे.
अब देश आजाद है.
अब युवाओ का लक्ष्य
देश की तरक्की होनी चाहिए.
Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti Ki Shubhakamnayen
भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जो त्याग और बलिदान दिया.
उस बलिदान का हर भारतीय ताउम्र ऋणी रहेगा.
नेताजी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
आजादी की कभी शाम नहीं होने देंगे
शहीदों की कुर्बानी बदनाम नहीं होने देंगे
बची हो जो एक बूंद भी लहू की
तब तक भारत माता का आँचल नीलाम नहीं होने देंगे
पराक्रम पर्व की शुभकामना
करता हूं भारत माता से गुजारिश
की तेरी भक्ति के सिवा कोई बंदगी ना मिले
हर जन्म मिले हिन्दुस्तान की पावन धरा पर
या कभी जिंदगी न मिले
लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आयेगा
मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लायेगा
मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा
पराक्रम पर्व की शुभकामना
गुलामी जिन्दा इंसान को भी लाश बना देती है
इसलिए अपनी व्यक्तिगत आजादी और
देश की आजादी के लिए
हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए
केंद्र सरकार ने हाल में ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती यानी हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था. दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेताजी की जयंती को ‘देश नायक दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी. दरअसल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. इनका जन्म आज ही के दिन हुआ था. इनके योगदान से ही भारत आजाद हुआ था. इन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए अपनी आजाद हिंद फौज नाम की सेना तैयार कर ली थी.
भावना के बिना चिंतन असंभव है. यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता. बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते'
23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता जी का नाम प्रभावती देवी था, जिनके कुल 14 बच्चे थे. इसमें से 8 बेटे और 6 बेटियां थी. नेताजी अपने माता-पिता की नौवी संतान और पांचवे बेटे थे.
शिक्षा के दौरान ही देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र करने के लिए देश के कई तत्कालीन दिग्गज स्वतंत्रता सेनानियों के जिंदगी से प्रेरित होकर देश की आजादी की मुहिम में खुद को शामिल किए थे. नेताजी देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए दूसरों से अलग सोच विचार रखते थे और वह अपने ही बलबूते पर देश के युवाओं को शामिल करते हुए आजाद हिंद फौज का गठन भी किया था. 9 भाई बहनों में से नेताजी सुभाष चंद्र बोस मां-बाप की छठी संतान थे. बचपन से ही नेता जी पढ़ाई में काफी होशियार थे और देशभक्ति से काफी प्रेरित हुए थे. देश को स्वतंत्र कराने में उनकी भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा.
सुभाष चन्द्र बोस जी अरविन्द घोष और गाँधी जी के जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थे. सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन चलाया हुआ था जिसमें बहुत से लोग अपना-अपना काम छोडकर भाग ले रहे थे. इस आन्दोलन की वजह से लोगों में बहुत उत्साह था। सुभाष चन्द्र बोस जी ने अपनी नौकरी को छोडकर आन्दोलन में भाग लेने का दृढ निश्चय कर लिया था. सन् 1920 के नागपुर अधिवेशन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। 20 जुलाई , 1921 में सुभाष चन्द्र बोस जी गाँधी जी से पहली बार मिले थे.
‘नेताजी’ के नाम से विख्यात सुभाष चंद्र बोस एक महान नेता थे जिनके अंदर देश-भक्ति का भाव कूट-कूट कर भरा हुआ था.नेताजी का जन्म सन् 1897 ई॰ के जनवरी माह की तेईस तारीख को एक धनी परिवार में हुआ था । देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने का सपना संजोए नेता जी कांग्रेस के सदस्य बन गए. वे गाँधी जी के अहिंसा के मार्ग से पूरी तरह सहमत नहीं थे. ” तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा ” का प्रसिद्ध नारा नेता जी द्वारा दिया गया था. जर्मनी से पर्याप्त सहयोग न मिल पाने पर नेताजी जापान आए. यहाँ उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह एवं रासबिहारी बोस द्वारा गठित आजाद हिंदी फौज की कमान सँभाली. वे पुन: जापान की ओर हवाई जहाज से जा रहे थे कि रास्ते में जहाज के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उनकी मृत्यु हो गई.
“सुभाष चन्द्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे। इनका जन्म एक अमीर हिन्दू कायस्थ परिवार में 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ. ये जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभावती देवी (माता) के पुत्र थे. अपनी माता-पिता के 14 संतानों में से ये 9वीं संतान थे। इन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कटक से ली जबकि मैट्रिकुलेशन डिग्री कलकत्ता से और बी.ए. की डिग्री कलकत्ता यूनिवर्सिटी (1918 में) से प्राप्त की.
“नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ और इनका निधन 18 अगस्त 1945 में हुआ था. जब इनकी मृत्यु हुयी तो ये केवल 48 वर्ष के थे. वो एक महान भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत की आजादी के लिये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़ी हिम्मत से लड़ा था। नेताजी 1920 और 1930 के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वच्छंदभाव, युवा और कोर नेता थे. वो 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष बने हालांकि 1939 में उन्हें हटा दिया गया था. नेताजी भारत के एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बहुत संघर्ष किया और एक बड़ी भारतीय आबादी को स्वतंत्रता संघर्ष के लिये प्रेरित किया.”
23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है. इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचंद्र बोस का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के यहां हुआ. उनके पिता ने अंगरेजों के दमनचक्र के विरोध में 'रायबहादुर' की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। अब सुभाष अंगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर. आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया.