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Immunity बढ़ाने में उपयोगी, कमर दर्द में भी देता है राहत, जानें अर्ध मत्स्येन्द्रासन के अन्य फायदे

कोरोना महामारी रूप बदल-बदल कर चुनौती दे रही है. बीते वर्ष में डेल्टा वैरिएंट ने कहर ढाया और इस बार ओमिक्रोन का संक्रमण तेजी से फैल रहा है. ऐसे में बेहद जरूरी हो जाता है कि हम अपने उचित खान-पान, व्यायाम व स्वस्थ जीवनशैली को बिल्कुल बनाये रखें.

बेहतर स्वास्थ्य हमें योग और पौष्टिक आहार से प्राप्त हो सकता है. आसन और प्राणायाम योग के वह अंग हैं, जिनसे हमारी रोग-प्रतिरोधी शक्ति बढ़ती है और हम कोरोना का प्रतिकार करके मुक्त हो सकते हैं. गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर प्रचलित है अर्ध मत्स्येन्द्रासन. इसका अर्थ है आधा घुमा हुआ और मत्स्येन्द्र यानी मछली. इसे ‘हाफ स्पाइनल ट्विस्ट पोज’ भी कहते हैं. इसके नियमित अभ्यास से पूरा शरीर लचीला एवं सुदृढ़ होता है. मधुमेह में भी यह आसन बहुत प्रभावशाली है व रोगनाशक है.

आसन की विधि

पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं. दाहिने पैर को मोड़ें और तलवे को जमीन पर बायें घुटने के बाहर की ओर रखें. दाहिने पैर की उंगलियां सामने की ओर रहें. अब बायें पैर को मोड़ें और तलवे को दाहिने नितंब के पास लाएं. पंजे का ऊपरी बाहरी भाग जमीन के संपर्क में रहे.

बायीं भुजा को वक्ष और दायें घुटने के बीच के स्थान से निकाल कर उसे दायें पैर के बाहरी भाग पर रखें. दायें पंजे या टखने को बायें हाथ से पकड़ें. जितना अधिक संभव हो, सीधे बैठें.

दायीं भुजा को शरीर के सामने ऊपर उठाएं और उंगलियों के पोरों पर दृष्टि केंद्रित करें. धीरे-से दाहिनी ओर मुड़ें, साथ ही भुजाओं, धड़ एवं सिर को भी घुमाएं.

बायीं भुजा से दायें पैर को अंदर की ओर दबाएं, जिससे कि धड़ को पीठ की मांसपेशियों का उपयोग किये बिना अधिक-से-अधिक मोड़ा जा सके.

दृष्टि को दाहिने हाथ की उंगलियों के पोरों के साथ घुमाएं और दाहिने कंधे के ऊपर से पीछे देखें.

पीठ को तनाव रहित रखें

दायीं कोहनी को मोड़ें और भुजा को कमर के पीछे रखें. दायें हाथ के पिछले भाग को कमर के बायीं ओर लपेट कर रखें.

वैकल्पिक रूप से उंगलियों को ऊपर की ओर रखते हुए, हाथ को जितना संभव हो, ऊपर रखें. भुजा को इस स्थिति में रहने से मेरुदंड का सीधा रहना सुनिश्चित हो जाता है.

अब विपरीत क्रम से गतियों को दोहराते हुए पूर्व की स्थिति में आएं और दूसरी तरफ से अभ्यास को दोहराएं.

सलाह : प्रारंभिक अभ्यासी सहजता के लिए जो पैर नितंब के बगल में रखा गया है, उसे सीधा रहने दें और टखने को पकड़ने वाले हाथ से घुटने को दबाकर वक्ष के निकट लाते हुए हाथ को जांघ के चारों ओर लपेट लें.

आसन के मुख्य लाभ

हमारी रोग-प्रतिरोधी शक्ति बढ़ाने में इसका विशेष महत्व है. यह मेरुदंड की तंत्रिकाओं को शक्ति प्रदान करता है, पीठ की मांसपेशियों को लचीला बनाता है, कमर दर्द तथा मांसपेशियों के ऐंठन में आराम पहुंचाता है. सावधानीपूर्वक अभ्यास करने पर स्लिप डिस्क की साधारण स्थिति में यह लाभकारी सिद्ध हुआ है. अर्ध मत्सेन्द्रासन उदर के अंगों की मालिश करता है तथा पाचन क्रिया दुरुस्त करता है. एड्रिनल तथा पित्त के स्राव को नियमित करता है. मधुमेह, साइनोसाइटिस, ब्रोंकाइटिस, कब्ज, कोलाइटिस, मूत्र नली के रोगों तथा सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस में भी लाभकारी है.

क्रम

इसका अभ्यास आगे तथा पीछे झुकने वाले आसनों की शृंखला पूरी करने के पश्चात करें.

श्वसन

सामने की ओर रहते समय श्वास अंदर लें. धड़ को अंदर मोड़ते समय श्वास छोड़ें. अंतिम स्थिति में बिना जोर लगाये धीरे-धीरे गहरा श्वसन करें.

प्रारंभिक स्थिति में वापस आते समय श्वास अंदर लें.

अवधि

दोनों तरफ से एक-एक बार अभ्यास करें, प्रत्येक ओर श्वास रोक कर रखने की अवधि को क्रमशः 1 या 2 मिनट तक या 30 श्वासों तक बढ़ाएं.

सजगता

शारीरिक-मेरुदंड को सीधा रखने पर या अंतिम स्थिति में श्वास द्वारा उत्पन्न उदर की गति पर.

अध्यात्मिक-आज्ञा चक्र पर.

सीमाएं

गर्भवतियों, पेट का ऑपरेशन करा चुके लोगों को यह आसन नहीं करना चाहिए. जो पेप्टिक अल्सर, हर्निया या हाइपर थायराइड के रोगी हैं, उन्हें इसका अभ्यास कुशल योग प्रशिक्षक के निर्देशन में ही करना चाहिए. जिनको साइटिका या स्लिप डिस्क की शिकायत है, उन्हें इससे लाभ हो सकता है, किंतु इस अभ्यास में पूरी सावधानी रखनी होगी.

Posted by: Pritish Sahay

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

Prabhat Khabar News Desk
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