उर्मिला कोरी
रिलीज को तैयार ‘पानीपत’ अर्जुन कपूर की पहली पीरियड फ़िल्म है. आशुतोष गोवारिकर के निर्देशन में काम करना अर्जुन बहुत सम्मानित मानते हैं. वह कहते हैं कि उनके जेहन में कई बार ये बात शूटिंग के वक़्त चलती रही कि क्या सच में ये वही इंसान हैं, जिसने फिल्म लगान बनायी. पेश है उनसे हुई खास बातचीत.
Q ‘पानीपत’ ने आपके सामने क्या चुनौतियां रखीं?
इस फिल्म की खासियत तो इसकी कहानी है. वह इतिहास के पन्नों में पूरी नहीं आयी है. बहुत गहरी और गाढ़ी कहानी है. मैं इस फ़िल्म को देशभक्ति की फिल्म भी करार दूंगा. पहली बार हिंदुस्तान में हिंदुस्तानियों ने संयुक्त होकर बलशाली सेना बनायी थी, ताकि वे बाहरी आक्रमणकारियों को रोक सकें. उससे पहले तक आक्रमणकारी आते रहते थे और हिंदुस्तान से चीजें लूट के ले जाया करते थे, लेकिन इस लड़ाई में हिंदुस्तानी सेना एकजुट होकर लड़ी थी.
Q सदाशिव भाऊ के किरदार के लिए आपने क्या तैयारियां कीं?
मेहनत हर फिल्म में होती है. यहां पर शुरुआत बाल मुड़वाने से हुई. यह कोई पांच-दस दिन की फिल्म तो थी नहीं, इसलिए अगर मैं विग लगाता और एक्शन करते हुए बाल इधर से निकलता उधर से निकलता, तो अच्छा नहीं लगता न. यह फिल्म और पेशवा समुदाय के साथ भी गलत होता. मुझे लगता है अगर आप पेशवा का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हो, तो ऑनस्क्रीन दर्शकों को प्राउड फील होना चाहिए. सिर मुंडवाने के बाद मुझे घुड़सवारी पर काम करना था. दो महीने हर दिन घुड़सवारी करने के लिए जाता था. मेरे घोड़े का नाम जबार था. मैंने भाला फेंकना भी सीखा, क्योंकि सदाशिव भाऊ को भाला चलाने में महारत हासिल थी. फिर तलवारबाजी सीखी. मराठी मुझे हमेशा से आती है. जो थोड़ी कमी थी, उसे आशुतोष गोवारिकर सर (निर्देशक) सही कर देते थे.
Q आप खुद इतिहास के विषय में कैसे स्टूडेंट थे?
इस फिल्म के लिए सारी रिसर्च आशुतोष सर ने ही की है. मैंने बस उन्हें फॉलो किया है. मेरी बात को सुन कर आपको लगेगा कि मैं फेंक रहा हूं, लेकिन सच्चाई यही है कि इतिहास विषय मेरा अच्छा था. पानीपत को हां कहने की एक वजह यह भी थी कि मुझे इतिहास बहुत पसंद था. भूगोल गोल था मेरा. साइंस क्लास वन और टू तक तो समझ में आता था, पर जब उसमें बायोलॉजी, केमिस्ट्री आ गयी, तो सब सिर के ऊपर से जाने लगा. हां, भाषा हमेशा से अच्छी थी. आपलोग इस बात के गवाह हो.
Q चर्चा है कि आशुतोष जी ने आपको जेहन में रख कर ही इस फिल्म की कहानी लिखी थी?
आशुतोष सर से मैं दो-तीन बार पार्टीज में मिला था. बस ऐसे ही डिस्कस हुआ कि उनका काम मुझे अच्छा लगता है. उन्होंने शाहरुख खान, आमिर खान, रितिक रोशन के साथ काम किया है. वो खुद भी बहुत अच्छे एक्टर हैं. उनकी सिनेमा की समझ कमाल की है. उन्होंने इस फिल्म को आफर करने से पहले मेरी सारी फिल्में फिर से देखी. उन्होंने मेरे सिर के शेप पर भी रिसर्च की थी. उन्होंने मुझे बताया कि हेड गियर पहन कर मैं कैसा दिखूंगा. उन्होंने मई में मेरा लुक टेस्ट करवाया. शूटिंग दिसंबर में शुरू होनी थी. उन्होंने कहा कि मुझे लड़का नहीं आदमी चाहिए, जो संजय दत्त के सामने पर्दे पर खड़ा हो सके..
Qसंजय दत्त के साथ शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
सच कहूं तो शुरुआत में मैं यह सोच कर बहुत डरा हुआ था कि मुझे पर्दे पर संजू सर के सामने खड़ा होना है. आशुतोष सर ने समझाया कि तुम्हे अर्जुन को संजय दत्त के सामने नहीं खड़ा होना है, बल्कि सदाशिव भाऊ को अहमद शाह अब्दाली के सामने खड़ा होना है. बस अपने किरदार पर फोकस करो. उनकी इस बात को फॉलो करके मैं नॉर्मल हुआ. अनुभव की बात करूं, तो मैं संजू सर से फिल्म इंडस्ट्री में जुड़ने के एक-दो साल बाद मिला था. मेरी फिल्म ‘इश्कजादे’ देखने के बाद संजू सर और मान्यता मैम ने मुझे डिनर पर बुलाया था. हम सभी उनकी ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के बारे में काफी कुछ जानते हैं. हम दोनों में समानताएं भी हैं. उन्होंने भी अपनी मां को अपनी पहली फिल्म की रिलीज के दो महीने पहले कैंसर से खोया था और मैंने भी. हम दोनों डिनर पर हाथ से ही खाना खा रहे थे. इसे देख मान्यता मैम ने भी कहा कि तुम दोनों एक जैसे हो. संजू सर भी दिल से बच्चे की तरह हैं.
Qअब तक की जर्नी में कितना बदलाव खुद में पाते हैं?
मैं हमेशा से ही बहुत सुलझा हुआ आदमी था. मैंने फिल्मों में आने से पहले ही जिंदगी के बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं. पहले मुस्कुराता कम था. गुमशुम रहता था. लोगों को लगता था कि अड़ियल हूं, लेकिन था नहीं. अब कोशिश है कि लोगों को शिकायत का मौका न दूं. मैं एक्टर के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक इंसान के तौर पर कहना चाहूंगा कि मैं पहले से बेहतर और पहले से ज्यादा शांत हो गया हूं.
Qआप वजन को लेकर हमेशा चर्चा में बने रहते हैं?
ऐसा नहीं था कि वजन को लेकर मैं कभी फिक्रमंद नहीं रहा, लेकिन मुझे चोटें लगीं. बचपन में मैं डेढ़ सौ किलो का था, लेकिन फिर फिट हो गया. मैं स्ट्रॉन्ग विल पावर का इंसान हूं, लेकिन कभी-कभी चोट तो, कभी स्ट्रेस के वजह से इंटेंस वर्कआउट नहीं कर पाया. मैं नहीं मानता कि वजन की वजह से मेरी फिल्में नहीं चली. मैंने बहुत लोगों को देखा है, जिनकी बॉडी बहुत अच्छी थीं, लेकिन फिर भी उनकी फिल्में नहीं चलीं. फिल्में कंटेंट की वजह से चलती है, हीरो के वजन से नहीं. मैंने हमेशा अलग-अलग तरह की फिल्में करने की कोशिश की है. कभी खुद को किसी विशेष इमेज में नहीं बांधा. अलग-अलग किरदार करने के लिए ही हीरो बना था, नंबर 1 या 2 बनने के लिए नहीं.
Qपानीपत के फर्स्ट लुक के बाद से ही फिल्म की तुलना ‘बाजीराव मस्तानी’ से हो रही है. क्या यह तुलना आपको प्रेशर में डालती है?
यह तो वही बात हो गयी कि धोनी की बायोपिक बन गयी, तो युवराज की न बनें. ‘उरी’ के बाद क्या हमें वॉर फिल्में नहीं बनानी चाहिए. बाजीराव और पानीपत का समय एक है, लेकिन कहानी अलग है. आशुतोष सर ने पूरी ईमानदारी के साथ इस फिल्म को बनाया है. कोई और निर्देशक होता, तो मर्द मराठा गाने में मुझे भी नाचने को बोलता, लेकिन उन्होंने बोला राजा के साथ बैठे हो. प्रजा में नहीं नाच सकते. पूरे गाने की शूटिंग में मैं गद्दी पर ही बैठा था.
Qहाल में सोशल मीडिया पर आपने एक लेटर साझा किया था, जो आपने अपनी मां को 12 साल की उम्र में लिखा था?
वह लेटर मेरी बहन ने मुझे लाकर दिया था. तब मेरी लिखावट अच्छी थी. आपकी फिल्म रिलीज हो रही है. आपके बारे में अच्छा-बुरा काफी कुछ कहा जा रहा हो. घर आकर मैं वो सब किसको बताऊं. अकेलापन नहीं कहूंगा, पर इसे अधूरापन जरूर कहूंगा. मेरे पास जिंदगी में सब कुछ है, बस मां नहीं है, जिनसे मैं बहुत कहना चाहता था. मेरे करियर की इतनी बड़ी फिल्म आ रही है. मैं उनकी राय जानना चाहता था, पर ऐसा पॉसिबल नहीं है, इसलिए बस अपना मन हल्का करने के लिए पुराने लेटर को शेयर किया.
अर्जुन के मन का डर
अर्जुन कपूर को सीलिंग फैन से बहुत डर लगता है. वे सीलिंग फैन के नीचे बैठ नहीं सकते हैं. उन्हें लगता है कि पंखा उनके ऊपर गिर जायेगा. यही वजह है कि अर्जुन ने अपने घर में एक भी सीलिंग फैन नहीं लगवाये हैं. कई बार उन्होंने इस डर से बाहर निकलने की कोशिश की, मगर नाकामयाब रहे.