25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

Lata Mangeshkar Birthday: जब उस्‍ताद बड़े गुलाम अली खां ने कहा था- ”कम्बख्त, कभी बेसुरी नहीं होती…”

भारत की सबसे प्रसिद्ध और सम्‍मानित गायिका लता मंगेशकर का जन्‍म मध्‍य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 में हुआ था. उनके पिता रंगमंच के जानेमाने कलाकार थे इसी कारण लता मंगेशकर को संगीत की कला विरासत में मिली. उन्‍होंने बचपन से ही बहुत संघर्ष किये. उन्होंने मात्र 5 वर्ष की आयु में अपने […]

भारत की सबसे प्रसिद्ध और सम्‍मानित गायिका लता मंगेशकर का जन्‍म मध्‍य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 में हुआ था. उनके पिता रंगमंच के जानेमाने कलाकार थे इसी कारण लता मंगेशकर को संगीत की कला विरासत में मिली. उन्‍होंने बचपन से ही बहुत संघर्ष किये. उन्होंने मात्र 5 वर्ष की आयु में अपने शास्त्रीय गायक और रंगकर्मी पिता दीनानाथ मंगेशकर से गायन सीखना शुरू कर दिया था. उन्‍होंने बचपन से ही मंच पर गीत संगीत के कुछ कार्यक्रम करके अपनी प्रतिभा का लोहा से सभी का मन मोहा. वह किस कोटि की गायिका हैं, यह बात सभी जानते हैं. वे पिछले कई सालों से पार्श्‍व गायन से दूर हैं लेकिन उनकी वाणी की मिठास बरकरार है.

लता मंगेशकर ने अपने पार्श्‍वगायन की शुरूआत वर्ष 1942 की मराठी फिल्‍म ‘कीती हसाल’ से की थी लेकिन बाद में इस गाने को फिल्‍म से काट दिया गया था. इसके बाद कुछ लोगों ने लता मंगेशकर को यह कहकर रिजेक्‍ट कर दिया कि उनकी ‘आवाज पतली’ है. हालांकि, लता मंगेशकर ने सुरों का जो इतिहास लिखा वह किसी से छिपा नहीं है.

लता मंगेशकर की खनकती आवाज की तारीफ तो ठुमरी के एक बड़े गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खां ने भी की थी. जिस दौर में लता मंगेशकर और मोहम्‍मद रफी जैसे गायक 1 हजार रुपये फीस लेते थे, उस दौर में उस्‍ताद गुलाम अली खां ने एक गाने के 40 हजार रुपये की डिमांड की दी थी. फिल्‍म ‘मुगल-ए-आजम’ के डायरेक्‍टर के आसिफ बड़े गुलाम अली खां साहब से इस फिल्‍म के लिए एक गाना गंवाना चाहते थे. जब आसिफ ने उनसे कहा तो उन्‍होंने मना कर दिया. जब आसिफ जिद करते रहे तो गुलाम अली साहब ने यह कह दिया कि वे 40, 000 फीस लेंगे. उन्‍होंने 10,000 रुपये एडवांस दिये और 25,000 रुपये में ‘मुगल-ए-आजम’ का गीत ‘प्रेम जोगन बन के’ रिकॉर्ड करवाया.

एक बार उस्‍ताद बड़े गुलाम अली खां बंबई में लक्ष्‍मी बाग, गिरगांव में एक कॉन्‍सर्ट में गानेवाले थे. वे यमन का रियाज़ कर रहे थे. इसी बीच एक घटना घटी. जहां वे ठहरे थे, उसके बगल वाली बिल्डिंग के फ्लैट से रेडियो पर बज रहा लता मंगेशकर का एक गीत उस्‍ताद बड़े गुलाम अली खां के कानों में पड़ा. इस गाने के बोल थे- ‘जा रे बदरा बैरी जा रे जा रे…’ बड़े गुलाम अली साहब अपना रियाज़ भूल गये. कहा जाता है कि जब त‍क रेडिया पर वह गाना बजता रहा, वह ध्‍यान मग्‍न होकर सुनते रहे. उन्‍होंने अपने शिष्‍यों को बुलाकर कहा था, ‘मैंने जब से लता को सुना है, मैं अपना यमन भूल गया हूं.’

यतींद्र मिश्र अपनी किताब ‘लता : सुर-गाथा’ में लिखते हैं,’ पिछले लगभग पांच-सात वर्षों के दौरान जब भी मैंने लता मंगेशकर से उनकी अभिलाषा के बारे में जानना चाहा, तो हर बार उनकी तरफ से यही जवाब आया कि ‘ काश मैं उस्‍ताद बड़े गुलाम अली खां साहब की तरह गा पाती’. सबसे खास बात यह रही है उसी उस्‍ताद ने उन्‍हें सबसे बड़ी संगीतिक परिभाषा यह कहकर स्‍थापित कर दी थी कि, ‘कम्बख्त, कभी बेसुरी नहीं होती…’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें