विदिशा बालियान, मिस डीफ वर्ल्ड
किसी लक्ष्य को तय करने और उसे हासिल करने में निसंदेह हमारी मेहनत सबसे अधिक मायने रखती है. लेकिन, हमारी मेहनत से पहले आत्मविश्वास अहम होता है, जिससे हमें लगातार मेहनत करते रहने की प्रेरणा मिलती है. इरादे बुलंद हों, तो अक्षमता कभी आड़े नहीं आती. ऐसी ही मिसाल पेश की है लॉन टेनिस कोर्ट से लेकर सौंदर्य प्रतियोगिता तक कामयाबी की इबारत लिखनेवाली विदिशा बालियान. विदिशा मिस डेफ वर्ल्ड का खिताब जीतनेवाली पहली भारतीय हैं.
शीर्ष स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व : विदिशा बालियान ने न केवल मिस डेफ वर्ल्ड का खिताब जीतकर सौंदर्य प्रतियोगिता के सबसे बड़े मंच पर अपनी पहचान बनायी, बल्कि डेफ ओलिंपिक्स में भी देश का प्रतिनिधित्व किया. विदिशा सुन नहीं सकतीं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने दो बड़े मंचों पर अपनी कामयाबी की मिसाल लिखी है, निश्चित ही युवाओं के लिए प्रेरणादायक है.
राह बनती गयी : विदिशा जब छह साल की थीं, तो पता चला कि वे सुन नहीं सकतीं. परिजनों ने उन्हें मूक बधिरों के स्कूल में भेजने की बजाय सामान्य स्कूल में प्रवेश दिलाने का फैसला किया. लेकिन, सामान्य स्कूल में पढ़ाई कर पाना विदिशा के लिए कतई आसान नहीं था. क्लास में लेक्चर सुनने में उन्हें दिक्कत होती थी, तो वे ब्लैकबोर्ड से नोट कर लेती थीं. धीरे-धीरे विदिशा आम छात्रों की तरह पढ़ाई करने लगीं. विदिशा ने 10 साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू कर दिया.
खेलों में मिली पहचान : बचपन से ही विदिशा का खेलों के प्रति स्वाभाविक रुझान था. बेजोड़ खेल प्रतिभा की बदौलत विदिशा नेशनल गेम्स में दो रजत पदक जीतने में कामयाबी रहीं. साल 2017 में उन्होंने डेफ ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया. स्लिप डिस्क की समस्या की वजह से उन्हें अपने खेल करियर को विराम देना पड़ा.
ब्यूटी कॉन्टेस्ट में सफलता : विदिशा ने खेल से विराम लेने के बाद ब्यूटी कॉन्टेस्ट में शामिल होने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने आठ महीने तैयारी की. इस दौरान उन्होंने मिस डेफ वर्ल्ड में भाग लेने के लिए सांकेतिक भाषा भी सीखी. बेहतर तैयारी से वे इस टाइटल को जीतने में सफल भी रहीं. विदिशा फिलहाल, दिव्यांग बच्चों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए काम कर रही हैं. वे ऐसे बच्चों के लिए स्कूल खोलना चाहती हैं.