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ASER : केरल में 64.5 तो UP में 59.6 फीसदी बच्चों ने सरकारी स्कूलों में लिया प्रवेश, रिपोर्ट में खुलासा

बीते वर्षों से यदि तुलना करें, तो छह से 14 वर्ष आयुवर्ग के ग्रामीण बच्चों के स्कूलों में नामांकन में राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि दर्ज हुई है. हालांकि बीते 15 वर्षों से ग्रामीण भारत में नामांकन का स्तर बहुत उच्च रहा है.

बच्चे चाहे ग्रामीण क्षेत्र के हों या शहरी, उनकी शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण होती है. विशेषज्ञों की मानें, तो बच्चों की नींव मजबूत किये बिना केवल पाठ्यक्रम खत्म कर देने का कोई अर्थ नहीं है. जब बच्चों की नींव मजबूत होगी, तभी वे अगली कक्षा के पाठ को सही तरीके से समझ पायेंगे. देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा की स्थिति, उनके पढ़ने और गणितीय प्रश्न हल करने की योग्यता कैसी है, सरकारी स्कूलों में नामांकन का क्या हाल है, इसे जानने के लिए हाल ही में प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट जारी की गयी है. विशेषज्ञ की राय के साथ प्रस्तुत है इस रिपोर्ट से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें….

बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का प्रारंभिक भाग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. यही वह समय होता है जब सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के जरिये बच्चों के मन में न केवल शिक्षा के प्रति ललक पैदा की जाती है, बल्कि उन्हें शिक्षित करने की दशा व दिशा भी तय की जाती है. इसी शिक्षा के बूते बच्चे अपनी आगे की स्कूली पढ़ाई तय कर पाते हैं. यदि नींव मजबूत है, तो बच्चे प्राथमिक के बाद मिडिल यानी पूर्व माध्यमिक और फिर सेकेंडरी यानी माध्यमिक स्कूलों में बेहतर कर पाते हैं.

असर ने 3 से 16 साल के बच्चों का जाना हाल 

ग्रामीण शिक्षा की स्थिति की पड़ताल करते हुए चार वर्ष के अंतराल के बाद एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2022 जारी हुआ है. तीन से 16 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की शिक्षा का हाल जानने के लिए 616 ग्रामीण जिलों के 19,060 गांवों और 3,74,554 घरों का सर्वे किया गया. सितंबर 2022 से नवंबर 2022 के बीच किये गये सर्वे में कई ऐसी बातें निकलकर सामने आयी हैं, जो एक तरफ यह आशा जगाती हैं कि आज के माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर जागरूक हो रहे हैं, तो दूसरी ओर यह भी अहसास कराती हैं कि बुनियादी शिक्षा की नींव मजबूत करने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है. देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए ग्रामीण शिक्षा के क्षेत्र में ठोस प्रयासों की दरकार है, यह रिपोर्ट इस ओर भी संकेत करती है.

राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा नामांकन का प्रतिशत

बीते वर्षों से यदि तुलना करें, तो छह से 14 वर्ष आयुवर्ग के ग्रामीण बच्चों के स्कूलों में नामांकन में राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि दर्ज हुई है. हालांकि बीते 15 वर्षों से ग्रामीण भारत में नामांकन का स्तर बहुत उच्च रहा है. वर्ष 2008 में जहां यह स्तर 95 प्रतिशत था, वह 1.6 प्रतिशत प्वाइंट की बढ़त के साथ 2010 में 96.6 प्रतिशत हो गया. यह 2014 में मामूली बढ़त के साथ 96.7 प्रतिशत पर आ गया और 2018 में 97.2 प्रतिशत हो गया. कोविड के कारण 2020 में सर्वे नहीं हुआ. पर 2022 में हुआ सर्वे बताता है कि इस वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में नामांकन का प्रतिशत 2018 की तुलना में 1.2 प्रतिशत प्वाइंट बढ़कर 98.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है.

इन राज्यों के सरकारी स्कूलों में सबसे अधिक बच्चों ने लिया प्रवेश

राज्यवर्षवृद्धि

(2018 – 2022)

केरल – 48.0 – 64.5 – 16.5

उत्तर प्रदेश – 44.3 – 59.6 – 15.3

तेलंगाना – 57.4 – 70.1 – 12.7

पंजाब – 46.7 – 58.8 – 12.1

हरियाणा – 42.6 – 51.9 – 9.3

स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या घटी

महामारी के कारण लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने के बावजूद 2018 से 2022 के बीच स्कूलों में प्रवेश नहीं लेने वाले बच्चों के अनुपात में कमी आयी है. इस मामले में लड़के-लड़कियों के बीच का अंतर भी कम हुआ है. जिन राज्यों में 15-16 वर्ष आयुवर्ग की 20 प्रतिशत लड़कियों स्कूलों से बाहर थी, ज्यादातर राज्यों में वह अंतर कम होकर 10 प्रतिशत के आसपास आ गया है.

आंगनवाड़ी में बढ़ी बच्चों की संख्या

प्री-प्राइमरी यानी तीन वर्ष के बच्चों के नामांकन की बात करें, तो 2022 में ग्रामीण भारत के 78.3 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी प्री-प्राइमरी शिक्षा केंद्रों में नामांकित थे, इसमें आंगनवाड़ी, सरकारी व निजी स्कूल आदि शामिल हैं. यह 2018 की तुलना में 7.1 प्रतिशत प्वाइंट ज्यादा है. वहीं आंगनवाड़ी में भी 2018 की तुलना में 2022 में नामांकन में वृद्धि हुई है.

  • 66.8 प्रतिशत बच्चे, तीन वर्ष की आयु के आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित थे 2022 में, जबकि 2018 में यह प्रतिशत 57.1 था.

  • 61.2 प्रतिशत बच्चे (चार वर्ष की आयु के) आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित थे 2022 में, 2018 के 50.5 प्रतिशत की तुलना में.

  • 35.3 प्रतिशत बच्चे, पांच वर्ष की आयु के आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित थे 2022 में, जबकि 2018 में इसी आयु के 28.1 प्रतिशत बच्चे इस केंद्र में थे.

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