रूसी कंपनियों पर अमेरिकी बैन से रिलायंस को झटका, व्यापारियों के जरिये तेल खरीदती रहेंगी सरकारी रिफाइनरियां

Russia Oil Ban: अमेरिका की ओर से रूस की तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर लगाए गए प्रतिबंधों से रिलायंस इंडस्ट्रीज को झटका लग सकता है. कंपनी रूस से सीधे कच्चा तेल खरीदती है, जबकि सरकारी रिफाइनरियां व्यापारियों के माध्यम से खरीद जारी रखेंगी. विशेषज्ञों का कहना है कि रिलायंस को अपने आयात मिश्रण को दोबारा संतुलित करना पड़ सकता है. वहीं, भारत ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखने के लिए रूसी तेल आपूर्ति और वैकल्पिक स्रोतों के बीच संतुलन साधने की कोशिश करेगा.

By KumarVishwat Sen | October 23, 2025 4:03 PM

Russia Oil Ban: अमेरिका द्वारा रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों से भारत की ऊर्जा सप्लाई चेन पर असर पड़ने के संकेत मिल रहे हैं. विशेष रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के लिए यह फैसला चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि कंपनी रूस से सीधे कच्चा तेल खरीदती है. हालांकि, सरकारी रिफानरियां व्यापारियों के माध्यम से रूसी तेल की खरीद जारी रखेंगी.

अमेरिकी प्रतिबंधों का असर

अमेरिकी वित्त मंत्रालय के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों (रोसनेफ्ट ऑयल कंपनी और लुकोइल ओएओ) पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए हैं. वॉशिंगटन का आरोप है कि ये कंपनियां यूक्रेन पर रूस के हमले को वित्तीय रूप से समर्थन दे रही हैं. दोनों कंपनियां मिलकर रोजाना करीब 31 लाख बैरल तेल का निर्यात करती हैं. इनमें से केवल रोसनेफ्ट ही वैश्विक उत्पादन का करीब 6% और रूस के कुल उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा एक्सपोर्ट करती है.

रिलायंस के लिए बढ़ी मुश्किलें

उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक, अमेरिकी प्रतिबंधों का सबसे सीधा असर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर पड़ सकता है. मुकेश अंबानी की कंपनी भारत में रूसी कच्चे तेल की सबसे बड़ी खरीदार है और देश के कुल आयातित 17 लाख बैरल प्रतिदिन के तेल का लगभग आधा हिस्सा रूस से लाती है. रिलायंस ने दिसंबर 2024 में रोसनेफ्ट के साथ 25 वर्षों के लिए एक लंबी अवधि का समझौता किया था. इस समझौते के तहत कंपनी को प्रतिदिन 5 लाख बैरल कच्चा तेल रूस से आयात करना था.

रिलायंस को लगाना होगा दूसरा जुगाड़

अब जब रोसनेफ्ट पर अमेरिकी बैन लग गया है, तो रिलायंस को अपने आयात मिश्रण को दोबारा संतुलित करना पड़ सकता है. सूत्रों ने बताया कि कंपनी बिचौलियों से तेल खरीदने की संभावना पर विचार कर सकती है, ताकि सीधी खरीद पर लगे जोखिम को कम किया जा सके. हालांकि, रिलायंस ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.

सरकारी रिफाइनरियों पर असर सीमित

जहां रिलायंस को अपने आयात ढांचे में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है, वहीं भारतीय सरकारी रिफाइनरियों पर इसका असर सीमित रहेगा. इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां आमतौर पर कच्चा तेल मध्यस्थ व्यापारियों के माध्यम से खरीदती हैं. इन रिफाइनरियों ने अमेरिकी बैन के बाद संभावित अनुपालन जोखिमों का मूल्यांकन शुरू कर दिया है, लेकिन तत्काल रूसी तेल आयात रोकने की कोई योजना नहीं है. अधिकांश व्यापारी यूरोप या मध्य पूर्व में स्थित हैं, जो अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे से बाहर हैं. इसलिए सरकारी कंपनियां फिलहाल सामान्य व्यापार जारी रख सकती हैं.

रूस-भारत ऊर्जा संबंधों की पृष्ठभूमि

साल 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाए थे. इसके बाद भारत रूस का सबसे बड़ा ग्राहक बनकर उभरा. पश्चिमी खरीदारों के हटने से रूस ने भारत और चीन को भारी डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेचना शुरू किया, जिससे भारत को अपनी ऊर्जा लागत कम करने में मदद मिली. पिछले दो वर्षों में भारत ने रूसी तेल पर निर्भरता काफी बढ़ाई है. कई प्राइवेट और सरकारी कंपनियां रूसी ग्रेड्स जैसे उरल्स और ईएसपीओ ब्लेंड को आयात कर रही हैं.

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भारत को संतुलन बनाने में हो सकती है कठिनाई

अमेरिकी बैन के बाद भारत के लिए संतुलन बनाना कठिन हो सकता है. एक ओर उसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखनी है, दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के दायरे से बाहर रहना भी जरूरी है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपने तेल आयात स्रोतों में विविधता बढ़ाने की दिशा में कदम उठा सकता है. रिलायंस जैसी निजी कंपनियां स्पॉट मार्केट या मध्यस्थों के जरिए खरीद जारी रख सकती हैं, जबकि सरकारी रिफाइनरियां अनुपालन नियमों का पालन करते हुए रूसी तेल प्रवाह बनाए रखेंगी.

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भाषा इनपुट के साथ

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