नयी दिल्ली : कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई को लेकर भारत के आगामी बजट में स्वास्थ्य और संबंधित बुनियादी ढांचे पर अधिक धन आवंटित किये जाने की संभावना है. पिछले साल एक फरवरी को पेश किये गये बजट और पिछले वित्त वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में ही उल्लेख था. मालूम हो कि देश में कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि 30 जनवरी, 2020 को केरल में हुई थी.
इतनी जल्दी में कोरोना महामारी के भयावहता का पता लगाना मुश्किल था. पिछले साल वित्तीय और प्रशासनिक संसाधन कोरोना वायरस के कारण गड़बड़ा गये. संभावना है कि एक फरवरी को पेश होनेवाले बजट में कोरोना वायरस पर सबसे अधिक धन आवंटित किया जा सकता है.
इस बार बजट में नौकरी-रोजगार, अर्थव्यवस्था बचाने और बजट घाटे, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के व्यापक अंतर को प्रबंधित करने की चुनौती और वैक्सीनेशन बजट में प्रमुख मुद्दा होगा. संभावना है कि इस साल का बजट 30 ट्रिलियन के आंकड़े को भी पार कर सकता है.
संसद की स्थायी समिति ने भी स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने की बात कही है. अर्थशात्रियों ने भी बजट में विशेष व्यय प्रावधान किये जाने की संभावना जतायी है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के तेजी से विकास के लिए बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश जरूरी है.
सवाल यह है कि कोरोना महामारी में अर्थव्यवस्था को झकझोर देनेवाले और स्वास्थ्य क्षेत्र के बोझ पर वित्त मंत्री किस तरह अधिक धन खर्च करेंगे. कोरोना महामारी के पहले सरकार ने साल 2020-2021 मे जीडीपी का 3.5 फीसदी यानी करीब आठ लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटे का बजट पेश किया था. अप्रैल-अक्तूबर 2020 में ही राजकोषीय घाटा 9.5 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो बजट अनुमान का 120 फीसदी था.
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के मुताबिक, भारत में प्रति एक हजार व्यक्ति पर अस्पताल में .55 बिस्तर है. देश अब भी प्रति एक हजार की आबादी पर एक बिस्तर के लिए संघर्ष कर रहा है. मालूम हो कि डब्ल्यूएचओ प्रति एक हजार की आबादी पर पांच बिस्तर की सिफारिश करता है.
बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे अधिकतर आबादी वाले राज्यों में सरकारी अस्पताल के बिस्तर राष्ट्रीय औसत से भी कम हैं. चिकित्सकों के मामले में भी भारत में प्रति एक हजार की आबादी पर मात्र .8 चिकित्सक हैं. जबकि, प्रति एक हजार की आबादी पर डब्ल्यूएचओ कम-से-कम एक चिकित्सक की सिफारिश करता है.
स्वास्थ्य का पुनरुद्धार एक दीर्घकालिक परियोजना है. हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और आयुष्मान भारत के तहत हेल्थ फॉर ऑल की घोषणा इस दिशा में बड़ी पहल है. आर्थिक विकास दर पिछले 70 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर गिरने के बावजूद यह बजट सामान्य मंदी का बजट नहीं होगा.