नयी दिल्ली : अभियोजन द्वारा विशेष 2जी अदालत को मारन बंधुओं (दयानिधि और कलानिधि) की कुर्क संपत्तियों को मुक्त करने तथा उनके जमानत बांड के क्रियान्वयन से रोकने की अर्जी दाखिल करने वाले विशेष लोक अभियोजक से आज उच्चतम न्यायालय ने कई पैने सवाल पूछे. 742.58 करोड़ रुपये के एयरसेल-मैक्सिस सौदे से जुड़े मामले में विशेष सुनवाई अदालत ने कल मारन बंधुओं को दोषमुक्त करने निर्णय सुनाया था.
उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की पीठ अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक आनंद ग्रोवर द्वारा प्रस्तुत तर्क से संतुष्ट नहीं थी.
शीर्ष अदालत ने ग्रोवर को इस मामले में विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) नियुक्त किया है, जो सीबीआई तथा प्रवर्तन निदेशालय की ओर से अभियोजन की अगुवाई कर रहे हैं. पीठ ने कहा कि आरोपियों को दोषमुक्त किये जाने से स्पष्ट है कि यह मनी लांड्रिंग का मामला नहीं है, जैसा कि ईडी ने आरोप लगाया है.
पीठ ने कहा कि सीधा सा तर्क यह है कि 742.58 करोड़ रुपये की इस राशि को लांड्रिंग का पैसा बताया गया है लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि यह अपराध की कमाई है. पीठ ने सुनवाई के दौरान एसपीपी से कहा कि सुबह याचिका में जिन खामियों के बारे में उन्हें बताया गया था उन चीजों को दुरस्त नहीं किया गया है.
हालांकि जब ग्रोवर ने सीबीआई या ईडी की ओर से उचित अपील के अभाव में राहत की बात उठाई तो पीठ ने कहा कि विशेष अदालत के आदेशानुसार यह पैसा ‘अपराध की कमाई का हिस्सा नहीं है’ जैसा कि अभियुक्तों के खिलाफ आरोप में कहा गया था. और इस तरह ‘कोई मनी लांड्रिंग नहीं हुई.’
पीठ ने एसपीपी को अपने मामले को तैयार करने और बुधवार को दलील आगे बढाने का मौका दिया है. मामले की सुनवाई की अगली तारीख आठ फरवरी तय किये जाने से पहले ग्रोवर ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि क्यों विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ ईडी द्वारा अपील दायर करने का इंतजार किये बिना उन्होंने खुद उच्चतम न्यायालय में अर्जी डालने का कदम उठाया.
विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि इस मामले में किसी भी अभियुक्त के खिलाफ साजिश का मामला नहीं बनता है. ग्रोवर ने कहा कि इस मामले में तुरंत आगे बढ़ने की जरुरत को देखते हुए ईडी विचार विमर्श तथा मंजूरी के बाद उचित अपील दायर करेगा. इसीलिए वह सिर्फ दो अपीलों जमानत बांड का क्रियान्वयन न करने तथा कुर्क संपत्तियों को मुक्त नहीं करने की अपील को लेकर शीर्ष अदालत आये.
उन्होंने कहा कि सीबीआई उनकी राय लेगी और उनके कनिष्ठ मसौदा तैयार करेंगे जिसे विधि मंत्रालय के पास जांच के लिए भेजा जाएगा. पीठ ने ग्रोवर से यह भी पूछा कि क्यों उन्होंने पुनरीक्षा याचिका के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय से संपर्क नहीं किया क्योंकि जमानत बांड का मुद्दा काफी छोटा है.
ग्रोवर ने कहा कि शीर्ष अदालत के पूर्व के आदेशों के अनुसार 2जी मामलों में अंतिम आदेश के बाद ही संबंधित पक्ष उच्च न्यायालय में जा सकते हैं और मुकदमा पूरा होने तक सभी अंतरिम आदेशों का मामला उच्चतम न्यायालय देखेगा.
हालांकि शीर्ष अदालत ने उनकी इस दलील को खारिज कर दिया कि इस मामले में दोषमुक्त किया जाना अंतिम आदेश नहीं माना जा सकता. पीठ ने कहा, ‘हम आपसे सहमत नहीं हैं. यह अंतिम आदेश है और यह कहा जा सकता है कि मुकदमा समाप्त हो गया है.’
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