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सरकार ने तैयार की कंपनी विवादों के जल्द निपटारे के लिये मध्यस्थता सुविधा

नयी दिल्ली : कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनियों से जुड़े विवादों के जल्द निपटारे के लिये ‘मध्यस्थता और समाधान’ सुविधा की रुपरेखा का ढांचा तैयार किया है. इसके नियमों को अधिसूचित किया गया है. कंपनियों के विवादों में मध्यस्थता का काम करने वाला तीन महीने के भीतर बातचीत और आखिरकार विवादों के समाधान में […]

नयी दिल्ली : कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनियों से जुड़े विवादों के जल्द निपटारे के लिये ‘मध्यस्थता और समाधान’ सुविधा की रुपरेखा का ढांचा तैयार किया है. इसके नियमों को अधिसूचित किया गया है. कंपनियों के विवादों में मध्यस्थता का काम करने वाला तीन महीने के भीतर बातचीत और आखिरकार विवादों के समाधान में मदद करेगा. मध्यस्थता से विवादों का समाधान ज्यादा तेजी से और कम खर्च में हो जाएगा लेकिन यह कंपनियों पर बाध्यकारी नहीं होगा. आपराधिक और गैर-समाधेय अपराधों, समय पर भुगतान नहीं कर पाने, गंभीर तथा धोखाधड़ी से जुड़े विशेष आरोपों के मामले में मध्यस्थता प्रक्रिया को नहीं अपनाया जाएगा.

मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा है कि क्षेत्रीय निदेशक ऐसे विशेषज्ञों की एक सूची तैयार करेंगे जो संबंधित क्षेत्र में मध्यस्थ तथा समाधानकर्ता के तौर पर नियुक्त किये जाने के इच्छुक हैं. इस सूची को मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला जाएगा. क्षेत्रीय निदेशक हर साल फरवरी में मध्यस्थों और समाधानकर्ताओं की सूची बनाने के लिए आवेदन आमंत्रित करेंगे और इसे अद्यतन करेंगे जो हर साल एक अप्रैल से प्रभावी होगी.

विशेषज्ञों की पात्रता के संबंध में सरकार ने कहा कि इसमें रुचि रखने वाले उम्मीदवारों के पास 10 साल तक वकालत का अनुभव हो और या फिर 15 साल तक चार्टर्ड अकाउंटेंट के तौर पर काम किया हो. उम्मीदवार व्यक्ति उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय या जिला अदालत के पूर्व न्यायाधीश भी हो सकते हैं. ऐसे उम्मीदवार को खारिज कर दिया जाएगा यदि वह दिवालिया हो तथा आरोपमुक्त न हुआ हो या फिर जिसे किसी अपराध में दोषी करार दिया गया है या फिर जिसे सरकार की राय में नैतिक भ्रष्टता माना जाता हे.

ऐसा व्यक्ति जिसे किसी अनुशासनात्मक प्रक्रिया के तहत दंडित किया गया हो. मध्यस्थ और समाधानकर्ता विभिन्न पक्षों के साथ मिलकर हर सत्र के लिए तारीख और समय तय करेंगे जिसमें सभी पक्ष मौजूद होंगे. वे विभिन्न पक्षों के साथ संयुक्त या अलग-अलग बैठकें कर सकते हैं. इसके अलावा हर पक्ष सत्र से 10 दिन पहले विवाद के बारे में संक्षिप्त ब्योरा भेजेगा.

मध्यस्थ मामले के निपटान के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम या दीवानी प्रक्रियाओं के अनुपालन के लिए बाध्य नहीं होंगे लेकिन उन्हें निष्पक्ष और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना होगा. नियमों के तहत प्रक्रिया विशेषज्ञों की नियुक्ति की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर पूरी होगी.

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