नयी दिल्ली : बैंक खातों के परिचालन पर लगी रोक के बीच ‘ग्रीनपीस इंडिया’ ने कहा कि यह संगठन के लिए अपमानजनक साल है और उसे अपेक्षा नहीं थी कि कोई निर्वाचित सरकार उसकी तरह के किसी ‘वैध एनजीओ’ के साथ इस तरह का बर्ताव करेगी. सरकारी कार्रवाई की वजह से आसन्न बंदी की घोषणा करने के कुछ ही दिन बाद पर्यावरण के क्षेत्र में सक्रिय एनजीओ ने कहा कि वह अपने अभियान को न्यूनतम करके एक और माह तक अपने क्रियाकलाप जारी रखेगा क्योंकि उसे नागरिक समाज, दानदाताओं और स्टाफ से भरपूर समर्थन मिल रहा है.
कर्मचारियों ने बिना वेतन के काम करने की पेशकश की है. ग्रीनपीस ने अपना एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है जिसपर 26 मई को सुनवाई होगी. संगठन को उससे सकारात्मक नतीजे निकलने की उम्मीद है. ग्रीनपीस ने अपने समर्थकों से आग्रह किया है कि वे भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून के नाम पत्र पर दस्तखत करें.
ग्रीनपीस ने कहा है कि उसके 200 से ज्यादा कर्मियों ने कार्यकारी निदेशक समित आइच को पत्र लिख कर जून में बिना किसी तनख्वाह के काम करने का वादा किया है जबकि नागरिक समाज के लोगों ने अन्य किस्म की मदद और सहयोग की पेशकश की है. आइच ने पत्रकारों से कहा, ‘पिछले कुछ हफ्तों के दौरान हमने ग्रीनपीस इंडिया के समर्थन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी. आज मेरे स्टाफ ने एक बेहद भावुक पत्र भेजा जिसमें उन्होंने एक माह तक के लिए बिना किसी वेतन के काम करने का वादा किया है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी कार्रवाई संगठन के इतिहास में अभूतपूर्व है जिसने उसे बंदी के कगार पर ला दिया है. आइच से जब नयी सरकार के एक साल के दौरान की नीतियों पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि उनके संगठन के लिए एक अपमानजनक साल रहा है और उसने किसी निर्वाचित सरकार से अपेक्षा नहीं की थी कि वह ग्रीनपीस जैसे किसी वैध एनजीओ के साथ इस तरह का बर्ताव करेगी.
उल्लेखनीय है कि सरकार ने ग्रीनपीस इंडिया का लाइसेंस छह माह के लिए निलंबित कर दिया है और उसके बैंक खातों के परिचालन पर रोक लगा दी है. इस तरह उसने ग्रीनपीस इंडिया को विदेशी कोष प्राप्त करने से रोक दिया है. सरकार का आरोप है कि ग्रीनपीस इंडिया ने देश के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है.
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